पीने वाले पानी के मामले में भटिंडा नं.-1

Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Jun, 2017 03:41 PM

swach water in bathinda

आमतौर पर बीमारियों के लिए पानी को ही दोषी ठहराया जाता है लेकिन भटिंडा एक ऐसा शहर है जहां शुद्ध पानी की उपलब्धता जरूरत से कहीं अधिक है

भटिंडा (विजय): आमतौर पर बीमारियों के लिए पानी को ही दोषी ठहराया जाता है लेकिन भटिंडा एक ऐसा शहर है जहां शुद्ध पानी की उपलब्धता जरूरत से कहीं अधिक है परन्तु पूर्व सरकार ने निजी कम्पनी को पूरे क्षेत्र में पानी पहुंचाने का ठेका दिया था लेकिन निजी कम्पनी की कारगुजारी हमेशा फेल साबित हुई है। एक समय था जब भटिंडा व आसपास के क्षेत्रों में कैंसर के लिए हमेशा पानी पर ही उंगली उठाई जाती थी क्योंकि भू-जल में यूरेनियम की अधिक मात्रा अधिक होने से कैंसर ने अपने पांव पसारे। भटिंडा के कई गांव इसकी चपेट में आए। धीरे-धीरे पूरा मालवा में कैंसर ने पांव पसार लिए। कैंसर के बढ़ते रोग के चलते पूर्व अकाली सरकार-भाजपा सरकार ने शुद्ध पीने वाले पानी की समस्या को हल करते हुए पूरे पंजाब में आर.ओ. सिस्टम स्थापित करवाए। माना जाए तो पीने वाले पानी की समस्या एक बार तो हल हो गई और लोगों को केवल 2 रुपए में 20 लीटर पानी मिलने लगा जिससे आम लोगों की आधी से अधिक बीमारियां खत्म हुईं। आर.ओ. पानी से लोगों की मानसिकता पर असर पड़ा। लोग इस पानी का प्रयोग ऐसे करने लगे जैसे वे दूध का प्रयोग करते हैं। जिले के विभिन्न क्षेत्रों में स्वच्छ पानी की आपूर्ति के लिए लगाए 53 आर.ओ. प्लांट लगवाए गए हैं।

100 लाख गैलन पानी उपलब्ध जरूरत 85 लाख गैलन की
पंजाब की पूर्व सरकार ने कैंसर जैसी भयानक बीमारी से निजात दिलवाने के लिए पानी की शुद्धता पर जोर दिया। विशेषतौर पर भटिंडा पहला ऐसा जिला बना जिसमें सबसे पहले आर.ओ. लगाकर तजुर्बा किया और सफल होने पर पंजाब में इसे लागू किया गया। भटिंडा से गुजरनी वाली सरहिंद नहर से भटिंडा वासियों को पानी मुहैया करवाया गया जिसके लिए नहर के पास ही वाटर ट्रीटमैंट प्लांट लगाया गया जिसकी क्षमता रोजाना 100 लाख गैलन की है। खपत की ओर देखा जाए तो केवल 85 लाख पानी की ही जरूरत है। जब कभी नहर बंद हो जाती है तो कुछ समय पानी की दिक्कत आती थी जिसके लिए जॉगर पार्क में 4 बड़ी झीलों का निर्माण कर उसमें अगले 5 वर्ष तक पानी का भंडार उपलब्ध है। भटिंडा स्थित ट्रीटमैंट प्लांट में 0 टी.डी.एस. मानक से पानी को शुद्ध किया जाता है जबकि नहर से मिलने वाला पानी 1,500 से लेकर 2,000 टी.डी.एस. तक दूषित है। पंजाब सरकार ने एक निजी कम्पनी को ठेका देकर 53 आर.ओ. शहर के विभिन्न क्षेत्रों में लगवाए जिस पर 10 लाख रुपए तक का खर्चा आया व कम्पनी 7 वर्ष तक उसकी देखभाल करेगी।

पानी की कमी नहीं, स्टाफ की कमी
शहर में पानी की कमी नहीं लेकिन इसके उपलब्ध करवाने के लिए स्टाफ की कमी जरूर खलकती है। आमूमन रात्रि 2.30 बजे पानी को छोड़ा जाता है जो सुबह 7 बजे तक चलता है। सायं को 4 बजे से 7 बजे तक पानी चलता है। कुल मिलाकर 8 घंटे पानी देना होता है परन्तु स्टाफ की कमी के चलते कभी-कभी 2 या 3 घंटे पानी दिया जाता है। पानी सप्लाई करने के लिए मैनुअल तरीका अपनाया जाता है। रोजगार्डन के ट्रीटमैंट प्लांट से पानी को पाइपों द्वारा टैंकियों में भरा जाता है फिर आगे सप्लाई किया जाता है। टैंकियों के लगे बाल खोलने के लिए कर्मचारियों को तैनात किया गया है लेकिन उनकी लापरवाही के चलते कभी पानी छोड़ा जाता है और कभी नहीं छोड़ा जाता। इस संबंध में वाटर सप्लाई विभाग का कहना है कि स्टाफ की कमी के कारण यह दिक्कत आती है क्योंकि छुट्टी पर चले आने की एवज में उन्हें आर्जी तौर पर कर्मचारी रखने पड़ते हैं जिससे समस्या पैदा होती है। 

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