प्रमुख महिला चेहरों का चुनाव न लड़ना भाजपा के लिए खतरे की घंटी

Edited By swetha,Updated: 06 Dec, 2018 10:36 AM

sushma and uma bharti

: 2019 लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के 2 प्रमुख महिला चेहरों के चुनाव न लड़ने के ऐलान से पार्टी में हलचल तेज हो गई है। कयास लगाए जा रहे हैं कि या तो दोनों प्रमुख भाजपा नेत्रियों की यह अपनी राय है या पर्दे के पीछे से कुछ और खेल खेला जा रहा है। सुषमा...

जालंधर(रविंदर): 2019 लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के 2 प्रमुख महिला चेहरों के चुनाव न लड़ने के ऐलान से पार्टी में हलचल तेज हो गई है। कयास लगाए जा रहे हैं कि या तो दोनों प्रमुख भाजपा नेत्रियों की यह अपनी राय है या पर्दे के पीछे से कुछ और खेल खेला जा रहा है। सुषमा स्वराज के बाद उमा भारती के चुनाव न लड़ने की घोषणा ने पार्टी के थिंक टैंक को भी तगड़ा झटका दिया है । पार्टी के भीतर अगर महिला शक्ति की बात की जाए तो दोनों ही चेहरे पार्टी के लिए बेहद महत्वपूर्ण थे। ऐसे में 2019 लोकसभा चुनाव के लिए अब भाजपा को नए सशक्त महिला चेहरों की तलाश रहेगी। 

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सुषमा और उमा को माना जाता है अडवानी के खेमे की
 
खास बात यह है कि सुषमा स्वराज व उमा भारती को पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण अडवानी के खेमे की माना जाता है। जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अडवानी को सरकार बनने के बाद खुड्डे लाइन लगाया उससे अडवानी खेमा खासा मायूस चल रहा था, मगर क्योंकि मोदी अपने बल पर पहली बार भाजपा को पूर्ण बहुमत दिलाने में सफल रहे थे तो कोई भी अपना रोष व्यक्त नहीं कर पा रहा था। अब भाजपा के अंदर ही इस बात को लेकर बहस छिड़ गई है कि अगर 2019 में भाजपा अपने दम पर बहुमत में नहीं आती और क्षेत्रीय पार्टियों की सपोर्ट से भाजपा सरकार बनाती है तो क्या मोदी ही दोबारा प्रधानमंत्री होंगे या फिर किसी अन्य चेहरे पर आर.एस.एस. दाव खेलेगा। 

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पार्टी के प्रमुख चेहरों में से एक है दोनों नेत्रियां

पार्टी के भीतर ही एक गुट इस बात को हवा देने में जुट गया है कि मोदी को अगली टर्म में चलता किया जाए। दोनों भाजपा नेत्रियों का लोकसभा चुनाव न लड़ने का ऐलान भी इसी रणनीति के तहत देखा जा रहा है। सुषमा स्वराज व उमा भारती न केवल अच्छी वक्ता हैं बल्कि पार्टी के भीतर उन्हें एक विद्वान के तौर पर देखा जाता है। हां, दोनों में फर्क यह है कि सुषमा स्वराज जहां शांत स्वभाव की हैं तो उमा भारती कई बार गुस्से में आकर अपने रंग दिखा चुकी हैं। मगर पिछले 30 साल से दोनों पार्टी का प्रमुख चेहरा रही हैं। मौजूदा समय में उमा भारती की उम्र केवल 59 साल है और इस उम्र में उनके राजनीति से दूरी बनाने के ऐलान से पार्टी के भीतर हर कोई भौंचक्का है। इससे पहले जब 66 की उम्र में सुषमा स्वराज ने चुनाव न लड़ने का ऐलान किया था तो उसे भी पार्टी के भीतर हैरानीजनक नजरों से देखा जा रहा था। 
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पार्टी में छिड़ी बहस

हालांकि सुषमा स्वराज ने किडनी ट्रांसप्लांट के बाद अपनी सेहत की बात सामने रखते हुए चुनाव न लड़ने का ऐलान किया था।  मगर उमा भारती ने जिस तेवर में चुनाव न लड़ने और सिर्फ श्रीराम मंदिर व गंगा पर फोकस करने की बात कही है, उसने पार्टी के भीतर एक अलग बहस छेड़ दी है। क्या उमा भारती किसी छुपे हुए एजैंडे के तहत काम कर रही हैं। 90 के दशक में श्रीराम मंदिर मूवमैंट में उमा भारती एक प्रमुख चेहरा रही थीं। बाबरी मस्जिद गिराने की साजिश में उमा भारती को सी.बी.आई. ने चार्जशीट भी किया था। अंदरखाते कहा जा रहा है कि लो प्रोफाइल पोर्टफोलियो मिलने से उमा भारती नाराज चल रही थीं इसलिए उन्होंने चुनाव न लड़ने का महत्वपूर्ण फैसला लिया है। 

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पहले भी उमा कह चुकी है पार्टी को अलविदा
गौर हो कि इससे पहले भी उमा भारती एक बार भाजपा को अलविदा कह कर अपनी अलग पार्टी बना चुकी हैं। 2 प्रमुख चेहरे गंवाने के बाद अब भाजपा की पूरी नजरें राजस्थान पर लगी हुई हैं क्योंकि अगर राजस्थान भी भाजपा के हाथ से जाता है तो तीसरा प्रमुख महिला चेहरा विजय राजे सिंधिया भी भाजपा की राजनीति से आऊट हो जाएगा। फिलहाल सुषमा स्वराज व उमा भारती के चुनाव न लड़ने के ऐलान से पार्टी के भीतर मंथन शुरू हो गया है। 

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