Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Jul, 2017 03:09 PM
पंजाब विधान सभा में विरोधी पक्ष के नेता एच.एस. फुल्का की तरफ से अपनी कुर्सी छोड़े जाने को लेकर 1984 के दंगों का केस लड़ने का तर्क दिया जा रहा है।
चंडीगढ़: पंजाब विधान सभा में विरोधी पक्ष के नेता एच.एस. फुल्का की तरफ से अपनी कुर्सी छोड़े जाने को लेकर 1984 के दंगों का केस लड़ने का तर्क दिया जा रहा है।वहीं आम आदमी पार्टी की अंदरूनी सियासत विधानसभा में फुल्का की तरफ से सक्रिय तरीकों से पक्ष न रखे जाने की तरफ इशारा कर रही है। आम आदमी पार्टी के सूत्रों मुताबिक फुल्का की कुर्सी को उसी दिन ही खतरा पैदा हो गया था जब सदन में एक विधायक की पगड़ी उतारी गई थी। तब पार्टी के विधायक शिरोमणी अकाली दल के प्रमुख सुखबीर बादल की कार में बैठ कर गए थे।
सुखबीर के इस राजनीतिक 'शॉट' ने विरोधी पक्ष की कुर्सी वाली गेम को बाउंडरी के पार मारा है। पार्टी में फुल्का के विरोधी उनकी तरफ से किए जाने वाली राजनीतिक गलती का इंतज़ार कर रहा था। जैसे ही ऐसा कुछ हुआ तो उनके विरोधी सक्रिय हो गए।
यहां तक कि आम आदमी पार्टी की सहयोगी पार्टी लोक इंसाफ पार्टी के प्रमुख सिमरजीत सिंह बैंस ने भी फुल्का के इस कदम को बड़ी राजनीतिक गलती बताया था। बैंस के बयान के बाद पार्टी के प्रमुख नेता सुखपाल सिंह खैहरा ने भी इशारों-इशारों में आम आदमी पार्टी के विधायकों के सुखबीर बादल की गाड़ी में बैठने को राजनीतिक भूल बताया था। इस घटना के बाद आम आदमी पार्टी हाईकमान फुल्का से परेशान थी।
उसके इशारे के बाद फुल्का ने 1984 के सिख विरोधी दंगों के केस लड़ने को आधार बना कर मीडिया में पद छोड़ने की चर्चा शुरू करवा दी। इससे पहले फुल्का खुद ही एक इंटरव्यू में कह चुके थे कि दंगों पीडितों को इंसाफ दिलाने के लिए उन्होंने अपनी बेटी के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर दिया है। यह टीम ही सभी मामले की पैरवी करेगी। वह खुद पंजाब विधानसभा में पंजाब के लोगों की आवाज पहुंचाएंगे परन्तु विधानसभा के पहले सैशन दौरान ही फुल्का राजनीतिक तौर पर बुरी तरह फेल साबित हुए। इसका खमियाजा उनको अपनी कुर्सी छोड़ कर भुगतना पड़ रहा है।