खुदकुशी पीड़ित 2 किसान परिवार की विधवाएं चुनाव हार कर क्या संदेश दे गई?

Edited By Vaneet,Updated: 25 May, 2019 05:32 PM

suicide of the two farmers families losing elections

पंजाब के बठिंडा लोकसभा हलके से पहली बार किसी खुदकुशी पीड़ित दो किसान परिवार की विधवाओं वीरपाल कौर और मंजी...

जालंधर(सूरज ठाकुर): पंजाब के बठिंडा लोकसभा हलके से पहली बार किसी खुदकुशी पीड़ित दो किसान परिवार की विधवाओं वीरपाल कौर और मंजीत कौर ने हिम्मत जुटा कर हरसिमरत कौर और राजा वडिंग जैसे दिग्गजों के खिलाफ इसलिए चुनाव लड़ा था कि वह अपने जैसे परिवारों की आवाज संसद तक पहुंचा सके। इन दोनों महिलाओं को इस बात का अंदाजा तो था कि देश का आम चुनाव करोड़पति उम्मीदवारों का तानाबाना है और चुनाव में जीत को दस्तक देना आसान नहीं है। स्थानीय किसान संगठनों ने दोनों महिलाओं को समर्थन देने से इनकार कर दिया और नोटा का बटन दबाने का ऐलान कर दिया। इसके बावजूद दोनों महिलाओं ने चुनाव हार कर भी एक बात का संदेश तो किसानों को दे ही दिया कि जब तक गरीब किसानों में कोई सांसद नहीं बनेगा तब तक उनकी आवाज सरकार के कानों तक नहीं पहुंचेगी। हालांकि यह महिलाएं दिल्ली और संसद से ज्यादा महरूम नहीं है। 

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संसद तक आवाज पहुंचाने के लिए लड़ा चुनाव 
एक सर्वे के मुताबिक बठिंडा लोकसभा हलके में ही 1272 परिवार ऐसे हैं जिनको सरकार की तरफ से कोई सहायता नहीं दी गई। इसमें बठिंडा के 544, मानसा के 506 व लंबी क्षेत्र के 222 परिवार ऐसे हैं, जो लंबे अरसे से सरकारी मदद के मोहताज हैं। ये परिवार लाखों के कर्ज में डूबे हुए हैं। ऐसा पहली बार हुआ है कि दोनों महिलाओं इस कांसेप्ट पर चुनाव लड़ गईं कि जब तक उनके जैसे परिवारों के सदस्य लोकसभा का सशक्त हिस्सा नहीं बनेंगे। उनका दर्द किसी को भी सुनाई नहीं देगा। यहां तक चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र के किसानों को हरसिमरत कौर ने धन्यावाद ही किया है। 

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दोनों विधवाओं की आप बीती
वीरपाल कौर के ससुर नछत्तर ने 1990 में फंदा लगाकर अपनी इहलीला समाप्त कर ली थी। वर्ष 1995 में पिता कृष्ण ने सल्फास निगल कर अपने आप को खत्म कर लिया। इसी दौरान पति ने धर्मवीर ने अपने आप को आग लगा ली। सरकार से मदद की गुहार लगाई मगर सुनवाई न होने के कारण आर्थिक हालत और बिगड़ गई। आत्महत्या करने वाले किसानों के लिए दी जाने वाली सहायता राशि भी नहीं मिली और न ही मौजूदा सरकार की कर्ज माफी नीति का वीरपाल को कोई लाभ मिला। इसी तरह मनजीत कौर के पति सुखदेव सिंह ने भी कई साल पहले आत्महत्या की थी। उन पर पांच लाख रुपसे का कर्ज था, जो सरकारी मदद न मिलने के कारण आज भी ढाई लाख के करीब है। 

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किसान संगठनों का उल्टा रुख
नामांकन दाखिल करने के लिए जमानत के तौर पर जमा करवाई जाने वाली 25 हजार रुपए की राशि दोनों विधवाओं की जब्त हो चुकी है। मनजीत को 1072 वोट मिले और वीरपाल 2078 वोट ही हासिल कर पाई। यह राशि दोनों ने खुदकशी पीड़ित परिवार कमेटी के सहयोग से गांव-गांव जाकर 10-10 रुपए कर के जुटाए थे। जब यह सब चल रहा था तो वीरपाल कौर को स्थानीय किसान संगठनों से समर्थन की काफी उम्मीद थी। इस दौरान स्थनीय संगठन मूक दर्शक बने रहे। अचानक वोटिंग से पहले तीन दिन पहले भाकियू व खेत मजदूर यूनियन ने चुनाव बायकाट को लेकर प्रर्दशन कर डाला।  दोनों संगठनों ने चुनावी सिस्टम की आस छोड़ किसानों के मुद्दों में शामिल खुदकुशियां, जमीनों की कमी, बेरोजगार व नशे के हल के लिए संघर्ष का ऐलान किया। यही वजह रही कि नोटा के खाते में 13220 वोट चले गए।

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गरीब के बस का नहीं है चुनाव लडऩा 
देश में भाजपा सरकार को दोबारा बहुमत मिलने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि  21वीं सदी में भारत में दो ही जातियां रहेंगी। एक गरीब और दूसरी गरीबी हटाने वाली। देश इन दो जातियों पर ही केंद्रित होने वाला है। पीएम मोदी की बात भी सही है। समाप्त हुए लोकसभा चुनाव पर ही नजर डाली जाए तो संसद में जीत कर पहुंचे 88 फीसदी सदस्य करोड़पति हैं। बाकी बचे लखपति होंगे। इनके चुनावी हलकों में आम आदमी के पास इतना पैसा नहीं है कि वह संसद का हिस्सा बन सके। 21वीं सदी में दो जातियों में समानता लाने से क्या यह संभव हो पाएगा यह तो वक्त ही बताएगा।

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