Edited By swetha,Updated: 17 May, 2018 10:10 AM
‘मैं आज खुद से मजबूर हूं। सोशल नैटवर्किंग ने मेरी रौनक ही बेरंग कर दी। किसी समय समाज के सभ्य घरों के आगे मुझे लगाने के लिए मंत्रियों तक की सिफारिशें आती थी। नवविवाहिता हों या बुजुर्ग सभी की निगाहें मुझ पर होती थी। बालीवुड में तमाम फिल्मे ‘लाल...
अमृतसर (स.ह., नवदीप): ‘मैं आज खुद से मजबूर हूं। सोशल नैटवर्किंग ने मेरी रौनक ही बेरंग कर दी। किसी समय समाज के सभ्य घरों के आगे मुझे लगाने के लिए मंत्रियों तक की सिफारिशें आती थी। नवविवाहिता हों या बुजुर्ग सभी की निगाहें मुझ पर होती थी। बालीवुड में तमाम फिल्मे ‘लाल डिब्बे’ से आने वाली चिट्ठियों पर गीत फिल्मा कर सुपरहिट हो गई, लेकिन मुझे ‘फ्लाप’ कर दिया गया। खुशियों का ‘मसीहा’ हमें माना जाता था। मैं अपनी शिकायत किस पते पर भेजूं।’ शायद लैटर बाक्स अपनी ‘व्यथा’ चिट्ठी में लिख पाता तो यही लिखता।
यह लैटर बाक्स गुरु नानक देव अस्पताल के मुख्य गेट पर लगा है। वर्षों से यह चिट्ठियां भेजता रहा लेकिन अब शायद खुलता ही नहीं। ‘पंजाब केसरी’ संवाददाता को लैटर बाक्स में कुछ चिट्ठियां भी दिखी, लेकिन लैटर बाक्स में ताला नहीं दिखा। लैटर बाक्स में पड़ी चिट्ठियां कब अपने पते पर पहुंचेगी, यह शायद किसी को नहीं पता। हालात तो फोटो बयां कर ही रही हैं, बड़ा सवाल यह है कि क्या शहर में ‘लैटर बाक्स’ का रखरखाव गर्वमैंट ऑफ इंडिया का मिनिस्ट्री ऑफ कम्यूनिकेशन डिर्पाटमैंट ऑफ पोस्टस ऐसे ही करता है।