‘रिफ्यूजी’ कैंपों में सिसक रही थी सांसे, रो रही थी ‘रूह’

Edited By swetha,Updated: 20 Jun, 2018 10:33 AM

refugee camp

1892 में ‘अखंड भारत’ में शिक्षा का उजियारा लेकर आया खालसा कालेज आजादी का जश्न भी मनाया। वहीं बंटवारे के दर्द का मूक गवाह भी बना। रिफ्यूजियों का दर्द कॉलेज की ‘दीवारों’ ने देखा भी और सुना भी। लाशों से भरी ट्रेन जब लाहौर से खालसा कालेज के समीप 22 नंबर...

अमृतसर (स.ह, नवदीप): 1892 में ‘अखंड भारत’ में शिक्षा का उजियारा लेकर आया खालसा कालेज आजादी का जश्न भी मनाया। वहीं बंटवारे के दर्द का मूक गवाह भी बना। रिफ्यूजियों का दर्द कॉलेज की ‘दीवारों’ ने देखा भी और सुना भी। लाशों से भरी ट्रेन जब लाहौर से खालसा कालेज के समीप 22 नंबर फाटक पर पहुंची तो ट्रेन के डिब्बों पर खून से लिखा था ‘गिफ्ट फ्रॉम पाकिस्तान’।

लाशों से भरी ट्रेन को जवाब भी भारत के तरफ से पाकिस्तान को दिया गया। अमृतसर से लाहौर के लिए लाशों से भरी ट्रेन भेजी गई, जिस पर लिखा गया ‘प्रैजैंट फ्रॉम इंडिया’। लाशों से भरी ट्रेनों के अदला-बदली के बाद दोनों तरफ हालात इतने गड़बड़ हुए कि करीब 10 लाख पंजाबियों को जान से हाथ धोना पड़ा, 2 करोड़ से अधिक लोग ‘बेघर’ हो गए। पाक से सटा अमृतसर जिले के सभी शिक्षण संस्थानों को बंद कर दिया गया, वहां पर रिफ्यूजी कैंप लगा दिए गए। PunjabKesari

अमृतसर के खालसा कालेज, इस्लामिया कालेज (डी.ए.वी. कॉलेज) में रिफ्यूजी कैंप लगाए गए। हर तरफ चीख पुकार और चीत्कार सुनाई पड़ रही थी। 5 नंङ्क्षदयो का ‘अखंड पंजाब’ के बीच भारत-पाकिस्तान की सरहद बन गई। 5 नदियों (सतलुज, झेलम, चिनाब, रावी व ब्यास) का पानी लाखों लोगों के कत्लेआम से ‘लाल’ हो गया। रिफ्यूजी कैंपों में शरण पाने वाले शरणार्थियों की दशा इतनी बदत्तर थी, कि बिना रिश्तें के रिफ्यूजी कैंपों में शरणार्थियों की सेवा में शहर उमड़ पड़ा। घरों में लंगर तैयार करके रिफ्यूजी कैंपों तक लोगों ने पहुंचाया। कत्लेआम के बीच शरणार्थियों की मदद में कोई कमी नहीं थी। 

‘पंजाब केसरी’ ने ‘वर्ल्ड रिफ्यूजी डे’ पर बंटवारे का दर्द ऐसे लोगों से जानने की कोशिश की जिन्होंने अपनी आंखों से यह मंजर देखा था। कैसे हंसते-खेलते परिवार रिफ्यूजी कैंपों में पहुंचे, यह सच्चाई जानी। आंखों देखा हाल सुनाते व सुनते आंखें गीली होती रही। आंखों के सामने एक बार फिर ‘वल्र्ड रिफ्यूजी डे’ पर उन्हें बीता हुआ वो ‘काला सच’ आंखों के सामने नाच उठा, जिसे चाह कर भी आज तक दिमाग ‘निकाल’ नहीं सका। PunjabKesari

मौत के ‘मंजर’ में जिंदगी मांग रही थी ‘पनाह’ : प्रो. दरबारी लाल

मैं उस वक्त करीब 8 साल का था। मेरा परिवार गुजरात (पाकिस्तान) के गुलेटी गांव में रहता था। गांव में कई घर मुसलमानों के थे। बंटवारे के करीब ढाई-3 महीने पहले हमारा परिवार ट्रक में गुजरात से लाहौर पहुंचा और वहां से अमृतसर हाल गेट छोड़ दिया गया। उस समय खालसा कालेज, डी.ए.वी. कालेज सहित सभी सरायों में रिफ्यूजी कैंप चल रहे थे। रिफ्यूजी कैंपों में रहने वाले अधिकांश लोगों के साथ कोई न कोई हादसा हुआ था।

हर सांसें आंसुओं के साथ लोग ले रहे थे, किसी का सुहाग तो किसी की कोख उजड़ी थी। महिलाओं के साथ जितनी बेरहमी व बेईज्जती भारत-पाक बंटवारे में हुई वो आज तक की सबसे बड़ी त्रासदी है। मैं खुद रिफ्यूजी कैंपों में जाता रहा, रिफ्यूजियों की मदद के लिए लोग चंदा लगाते थे। यह बंटवारा किसी देश का नहीं बल्कि ‘प्रजा’ का बंटवारा था। मैं आज भी रिफ्यूजी कैंप को सोच कर सिहर उठता हूं। बता दें, प्रो. दरबारी लाल इस्लामिया कॉलेज में रिफ्यूजियों की मदद की और उसी कालेज के प्रोफेसर बने। राजनीति में आए तो शिक्षा मंत्री व पंजाब के डिप्टी स्पीकर भी रहे।

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