Edited By Punjab Kesari,Updated: 06 Feb, 2018 09:38 AM
हाल ही में राजस्थान में हुए विधानसभा उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी को काफी नामोशी का सामना करना पड़ा जबकि कांग्रेस को यहां पर सफलता मिली। भाजपा के पुराने गढ़ में कांग्रेस की इस सेंध को भारतीय जनता पार्टी तथा उसकी मेंटर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पचा...
जालंधर(पाहवा): हाल ही में राजस्थान में हुए विधानसभा उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी को काफी नामोशी का सामना करना पड़ा जबकि कांग्रेस को यहां पर सफलता मिली। भाजपा के पुराने गढ़ में कांग्रेस की इस सेंध को भारतीय जनता पार्टी तथा उसकी मेंटर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पचा नहीं पा रहे हैं। इस हार के कारण भाजपा तथा संघ ने तुरंत पैचवर्क के तौर पर इस व्यवस्था का हल तलाशने के लिए योजना पर काम शुरू कर दिया है जिसके तहत बैठकों का सिलसिला जोरशोर से जारी है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच इस हार को लेकर काफी मंत्रणा भी हुई है।
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा की सत्ता है और इन राज्यों में आने वाले समय में विधानसभा चुनाव होने हैं। राजस्थान उपचुनाव जैसा माहौल इन राज्यों में न बने इसके लिए भारतीय जनता पार्टी के अंदर बैठकों और मंत्रणा का सिलसिला शुरू हो चुका है। जानकारी के अनुसार पार्टी ने सभी प्रदेशों में सभी मोर्चों की बैठकों का क्रम आरंभ कर दिया है। यही नहीं दिल्ली में भी संगठन की मजबूती को लेकर प्रशिक्षण शिविर लगाए जा रहे हैं। इसमें भारतीय जनता पार्टी का युवा मोर्चा, अल्पसंख्यक मोर्चा, अनुसूचित जाति मोर्चा, महिला मोर्चा, पूर्वांचल मोर्चा तथा अन्य सैल व मोर्चों की बैठकें कर वर्करों को मैदान में जुट जाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। राजस्थान उपचुनाव के बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों को वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों का सैमीफाइनल बताया जा रहा है। इस सैमीफाइनल में जीत हासिल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने हर तरह से व्यवस्था बनाने के लिए काम शुरू कर दिया है।
भाजपा के लिए जहां सबसे बड़ी जिम्मेदारी इन 3 राज्यों में अपनी सत्ता को बरकरार रखना है वहीं वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले अपने सहयोगी शिवसेना तथा पी.डी.पी. को अपने साथ जोड़ कर रखना पार्टी के लिए बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। शिवसेना के बागी सुर तथा टी.डी.पी. में पैदा हुई हलचल ने भाजपा के लिए परेशानी पैदा कर दी है। इससे पहले शिरोमणि अकाली दल पंजाब के तरफ से भी मोदी सरकार की नीतियों को लेकर किंतु-परंतु किया जा चुका है। पार्टी के नेता, पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के पुत्र नरेश गुजराल ने केंद्र सरकार की सहयोगी दलों के प्रति नीतियों पर सवाल उठाए थे। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एन.डी.ए. को एक साथ जोड़ कर रखना सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा है। बात यहीं खत्म नहीं होती बल्कि हाल ही में पेश हुए आम बजट में मध्यम वर्ग को दरकिनार रखने को लेकर भी विरोध के स्वर उठने लगे हैं। एक तरफ मध्यम वर्ग सरकार से नाराज है तो दूसरी तरफ पार्टी के सहयोगी दल अपने राज्यों में फंड जारी न होने से नाराज हैं।भाजपा के लिए मुश्किल यह है कि जहां एक तरफ कई सहयोगी दल बजट में उचित फंड जारी न होने से रुष्ठ हैं वहीं दूसरी तरफ कुछ अन्य राज्यों से पार्टी को सहयोगी दलों की ओर से आंखें तरेरी जा रही हैं। भाजपा के राज्य में इस प्रकार की पैदा हो रही खींचतान का फायदा लेने के लिए कांग्रेस पार्टी तथा विपक्षी अन्य दल भी अपने स्तर पर कोशिश में लगे हैं ताकि मौजूदा मोदी सरकार को घेरने के लिए राज्य में सेंध लगाई जाए।