किसानों के तराजू पर खरा नहीं उतर रही कोई भी राजनीतिक पार्टी

Edited By Vatika,Updated: 05 Apr, 2019 01:49 PM

punjab farmer

इस बार लोकसभा चुनावों के दौरान यहां अन्य कई मुद्दे हावी रहने की संभावना जताई जा रही है, वहीं पूरे देश के अलावा पंजाब में किसानों के ऋण और आत्महत्याओं का मामला भी हावी रहने की संभावना है।

गुरदासपुर (हरमनप्रीत): इस बार लोकसभा चुनावों के दौरान यहां अन्य कई मुद्दे हावी रहने की संभावना जताई जा रही है, वहीं पूरे देश के अलावा पंजाब में किसानों के ऋण और आत्महत्याओं का मामला भी हावी रहने की संभावना है। 
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इस मौके पर प्रमुख सियासी दल इस रास्ते पर चलता नजर आ रहा है कि पंजाब में सत्तासीन कांग्रेस की सरकार के विभिन्न रा’यों में किसानों की आत्महत्याओं के आंकड़ों का हवाला देकर केंद्र सरकार पर कार्पोरेट सैक्टर को उत्साहित करने का आरोप लगा रही है, जबकि पंजाब में कांग्रेस सरकार के विरोधी गुट इस राज्य में किसानों का पूरा कर्जा माफ न करने के आरोप लगाकर सरकार को घेरने का प्रयत्न कर रही है। इस संदर्भ में सबसे बड़ी व दिलचस्प बात यह उभर कर सामने आ रही है कि किसानों के हित की लड़ाई लड़ रहे किसान संगठनों के तराजू पर कोई भी सियासी दल खरा नहीं उतर रहा है और आए दिन सड़कों पर उतरने वाले किसान संगठन केंद्र सरकार के साथ-साथ पंजाब सरकार को भी कोस रहै हैं।

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2 बार ऋण माफ कर चुकी है केंद्र सरकार
देश में किसानों के कर्ज का बोझ कम करने की शुुरुआत 1990 के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने की थी, जिन्होंने उस समय 10 हजार करोड़ रुपए के ऋण माफ किए थे। उसके बाद 2008 के दौरान प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली पहली यू.पी.ए. सरकार के दौरान भी प्रधानमंत्री ने 60 हजार करोड़ के किसानी ऋण माफ करने का ऐलान किया था, जिसे बढ़ाकर सरकार 71,680 करोड़ कर दिया था, मगर कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक उस समय करीब 2.9 करोड़ किसानों के 52,516 करोड़ रुपए के ऋण माफ हुए थे। उसके बाद किसान और किसान संगठनों के अलावा विरोधी सियासी दल लगातार देश के किसानों का ऋण माफ करने के लिए केंद्र सरकार से मांग करते रहे, मगर किसानों को ऋण माफी का पैकेज देने का मामला हवा में ही लटका रहा, जिसे इस बार चुनाव मुद्दा बनाकर उछाला जा रहा है। 

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खेतीबाड़ी से दूर हो गए 90 लाख किसान 
अगर 2011 की जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से उस समय अब तक एक दशक के दौरान देश के करीब 90 लाख किसानों ने खेतीबाड़ी से मुंह मोड़ लिया था, जबकि पंजाब में 12 फीसदी किसानों और 21 फीसदी खेत मजदूरों ने खेतीबाड़ी से मुंह मोड़ कर अन्य धंधों की ओर रुख कर लिया था। राज्य में किसानों की दुर्दशा किसी से छुपी नहीं है। करीब 98 फीसदी खेती मजदूर ऐसे हैं, जो गरीबी रेखा के नीचे हैं। इन लोगों के खेतीबाड़ी से मुंह मोडऩे के रुझान से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि खेतीबाड़ी का धंधा लोगों की आर्थिक जरूरतें पूरी करने से दूर होता जा रहा है।

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कैप्टन सरकार के दौरान आत्महत्या कर गए 925 किसान
पिछली दिनों भारतीय किसान यूनियन उगराहा ने जारी किए आंकड़ों के अनुसार कै. अमरेन्द्र सिंह की सरकार के करीब 2 वर्षों के कार्यकाल के दौरान करीब 925 किसान आत्महत्या कर चुके हैं, जिनमें से 359 किसान तो इस सरकार बनने के बाद पहले 9 महीनों के दौरान 2017 के अंत तक ही मौत के मुंह में चले गए थे। पिछले वर्ष 528 किसान आत्महत्या कर चुके थे, जबकि इस वर्ष 31 जनवरी तक यह संख्या 32 बताई गई थी। इसके बाद भी अब तक यह सिलसिला जारी है, जिस कारण इस सरकार के कार्यकाल के दौरान आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या सवा 925 के करीब पहुंच चुकी है। उधर, कैप्टन ने सत्ता में आते ही पहले 2 वर्षों के दौरान करीब 5.25 लाख किसानों के 5500 करोड़ रुपए के ऋण माफ कर दिए। 

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