पंजाब में बिजली सरप्लस करने का वायदा किया गया था। आज पंजाब में सरप्लस बिजली होने के कारण यह दूसरे राज्यों को बेची जा रही है। सरकार के इस कदम ने इंडस्ट्री को भी आकर्षित किया है।
अकाली दल
पक्ष में बातें
-पंजाब में बिजली सरप्लस करने का वायदा किया गया था। आज पंजाब में सरप्लस बिजली होने के कारण यह दूसरे राज्यों को बेची जा रही है। सरकार के इस कदम ने इंडस्ट्री को भी आकर्षित किया है।
-पंजाब में भाईचारक सांझ नहीं टूटने दी। प्रदेश में लगातार हुए बेअदबी के मामलों को लेकर जहां माहौल तनावपूर्ण हो गया था, वहीं सरकार ने अपनी सूझ-बूझ के चलते साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति नहीं बनने दी।
-गठबंधन ने पंजाब में सरकार बनने के बाद किसान की उपज धान और गेहूं को निर्विघ्न उठाने का वायदा किया था जो लगभग पूरा हो चुका है। सरकार एम.एस.पी. में बढ़ौतरी को लेकर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश लागू करने के लिए केंद्र सरकार को बार-बार कह चुकी है परंतु इसे पूरी तरह से लागू नहीं किया गया।
-पंजाब पुलिस सहित प्रदेश में जितनी भी और भर्तियां हुई हैं सभी में पारदर्शिता बरती गई। करप्शन के आरोप नहीं लगे। वहीं सरकार ने इन भर्तियों के जरिए पंजाबियों पर लगे नशे के कलंक को गलत साबित किया है।
-प्रदेश में सड़क व्यवस्था को उत्तम बनाना। केंद्र सरकार के सहयोग के चलते सरकार मुख्य सड़कों के साथ-साथ शहरों के अंदरूनी हिस्सों में भी नई सड़कें बिछाकर जनता की वाहवाही लूट चुकी है। इसके अलावा करोड़ों के कई अन्य प्रोजैक्ट जल्द शुरू होने वाले हैं।
-उत्तरी भारत में नए हवाई अड्डे बनाना सरकार की उपलब्धी है जैसे कि मोहाली, भटिंडा, अमृतसर, लुधियाना, चंडीगढ़ और पठानकोट। इसी श्रृंखला में जालंधर के आदमपुर में भी जल्द ही हवाई अड्डा बनने जा रहा है।
-लोअर लैवल में होने वाले भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की बात भी सरकार के पक्ष में जाती है। सुविधा सैंटर और सांझ केंद्र इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। अब जनता एजैंटों को रिश्वत दिए बिना अपने जरूरी कार्य करवा रही है।
-सरकार बनने से पहले वायदा किया गया था कि प्रकाश सिंह बादल ही पूरी टर्म मुख्यमंत्री रहेंगे जो पूरा हुआ। अब 2017 के चुनाव में भी पार्टी की तरफ से प्रकाश सिंह बादल को ही मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया जा रहा है।
-अमृतसर को पवित्र शहर होने के नाते टूरिस्ट हब के तौर पर डिवैल्प किया। सरकार की इस नीति के चलते विकास कार्यों में पिछड़ा हुआ अमृतसर कम समय में विकसित हो गया।
-इंडस्ट्री पर इंस्पैक्टरी राज को हावी नहीं होने दिया। इस पर अंकुश लगाने के लिए सुविधा केंद्र व सांझ केंद्रों की स्थापना की गई।
विरोध में तथ्य
-बॉर्डर पार से ड्रग्स आ रही हैं। यदि अकाली दल का इसमें हाथ नहीं है तो पंजाब सरकार ने इसे पूरी तरह से रोका भी नहीं है। ड्रग्स मामले में पंजाब सरकार बी.एस.एफ. पर बार-बार आरोप लगाकर अपना पल्ला छुड़ाने की कोशिश करती रही है।
-अकाली दल के कुछ बाहुबली विधायकों की तरफ से जनता को प्रताडि़त किया जाना पार्टी के खिलाफ जाता है। विरोधी पक्ष भी आरोप लगाते रहे हैं कि सरकार के विरोध में बोलने वालों के खिलाफ झूठे पर्चे दर्ज करवा दिए जाते हैं।
-केंद्र में भाजपा की सरकार होने पर भी अकाली दल पंजाब में कोई बड़ा प्रोजैक्ट नहीं ला पाया। 2014 के लोकसभा चुनाव दौरान मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का यह ऐलान कि मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद पंजाब में ट्रक भर-भर कर पैसा भेजेंगे जोकि लगभग गलत साबित हुआ। वहीं इसके विपरीत मोदी अन्य रा४यों की चुनावी रैलियों में राज्य सरकारों को गफ्फे बांटते हुए देखे गए।
-कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने जब शासन छोड़ा था तब पंजाब पर 35000 करोड़ का कर्ज था परंतु आज पंजाब पर 125000 करोड़ के करीब कर्ज है। पंजाब सरकार को राजग सरकार से कर्ज माफी मिलने की बहुत उम्मीद थी परंतु केंद्रीय वित्त मंत्रालय स्पष्ट कर चुका है कि केंद्र द्वारा कर्ज माफ करने के किसी भी मामले पर विचार नहीं किया जा रहा है। वित्त मंत्री अरुण जेतली की तरफ से सरकार को पत्र लिखकर भी इससे इंकार किया जा चुका है। इसके अलावा मुख्यमंत्री कई बार दिल्ली दरबार में हाजिरी लगा चुके हैं लेकिन नतीजा शून्य रहा।
-पंजाब के पुराने मसले हल न होना (चंडीगढ़ को पंजाब में शामिल न कर पाना और अबोहर व फाजिल्का में पानी की किल्लत दूर न कर पाना। सरकार की बेरुखी के चलते कांग्रेसी नेता सुनील जाखड़ की तरफ से धरने-प्रदर्शन कर इस सम्स्या को दूर करवा कर जनता की वाहवाही लूटी।
-हरियाणा में अकाली दल की सहयोगी पार्टी की तरफ से पंजाब में प्रचार न करना। लोकसभा चुनाव में पंजाब कांग्रेस ने इस मुद्दे को खूब भुना कर भाजपा को भी आड़े हाथ लिया।
-अकाली दल में ‘काकावाद’। टकसाली नेताओं की अनदेखी कर नेताओं द्वारा अपने सुपुत्रों को आगे लाना। कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाने वाले अकाली दल ने ऐसा करके जमीनी स्तर पर नए नेता बनाने में असफलता हासिल की।
-रेत-बजरी की माइनिंग के मामले में प्रदेश सरकार पर लगातार आरोप लगते रहे परन्तु अपने 10 साल के कार्यकाल में सरकार खुद को पारदर्शिता के ढांचे में साबित नहीं कर पाई।
-अकाली मंत्रियों द्वारा भाजपा विधायकों के क्षत्रों में विकास के काम न करवाना। इसका ज्यादातर खमियाजा गठबंधन सरकार को भुगतना पड़ा। इसी के चलते भाजपा विधायक नवजोत कौर सिद्धू व अकाली विधायक इंद्रबीर सिंह बुलारिया ने पार्टी को अलविदा कह दिया।
कांग्रेस
पक्ष में बातें
-पी.एम. मोदी द्वारा नोटबंदी के ऐलान के बाद कांग्रेस ने देशव्यापी प्रदर्शन करके जनता की हक की आवाज उठाई। नोटबंदी के बाद देश में 80 मौतें हुईं। काला धन तो खत्म नहीं हुआ पर लोगों की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं।
-कांग्रेस ने देश में सबसे अधिक समय राज किया है। कांग्रेस द्वारा जो भी मुद्दे उठाए जाते हैं, उनको जनता भरपूर सहयोग देती है। कांग्रेस नैशनल पार्टी होने के कारण इसका वोट बैंक अपनी जगह कायम है।
-कांग्रेसी लगातार विधानसभा में मुद्दे उठाते रहे हैं। विपक्ष सुनील जाखड़ ने पंजाब में हुए घोटालों को सदन व सदन के बाहर उजागर करने का साथ शिअद द्वारा अनाज के ट्रांसपोर्टेशन में हुए 22 हजार करोड़ के घोटाले का पर्दाफाश किया।
-देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवि पंजाबियों के मन में बसी हुई है। मनमोहन सिंह ने 10 साल के कांग्रेस के कार्यकाल में पंजाब को सेहत सेवाओं, उज्ज शिक्षा व सड़कों के निर्माण के लिए फंड जारी किए।
-प्रताप सिंह बाजवा व कैप्टन अमरेंद्र सिंह पंजाब में फैले हुए नशे के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। कैप्टन अमरेंद्र सिंह सुखबीर बादल व मजीठिया को नशे के मुद्दे पर घेरते रहे हैं। हालांकि कैप्टन अमरेंद्र सिंह सरकार बनने के बाद एक महीने के अंदर पंजाब से नशा खत्म करने की कसम खा चुके हैं।
-केन्द्र में जब यू.पी.ए. सरकार थी तो पंजाब से सांसद अम्बिका सोनी, संतोष चौधरी, परनीत कौर और मनीष तिवारी को मंत्रिमडल में स्थान दिया गया। इन्होंने पंजाब के मुद्दों को पहल के आधार पर सदन में उठाया।
-अल्पसंख्यकों और कम्युनिस्टों का कांग्रेस की तरफ झुकाव होना, यह कांग्रेस के लिए पॉजीटिव प्वाइंट है। पंजाब के कम्युनिस्ट लोग अकाली दल को पसंद नहीं करते। यह वोट बैंक इस बार चुनाव में अकाली दल को प्रभावित कर सकता है।
-पंजाब के कांग्रेसी पंजाब में बदलाव चाहते हैं। कैप्टन के रोड शो में उमड़ा जनसैलाब इस बात की गवाही देता है। कैप्टन किसानों के मुद्दों को प्रमुखता से उठा रहे हैं, जिससे पंजाब के किसान उनकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं।
-कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने कांग्रेस को मजबूत किया। जहां पी.पी.पी. प्रधान मनप्रीत सिंह बादल को कांग्रेस में शामिल करवाया, वहीं सुरजीत सिंह बरनाला के परिवार को कांग्रेस में शामिल करवाया। अब भाजपा की विधायक नवजोत कौर सिद्धू को भी कांग्रेस में शामिल करके पार्टी को दमदार बनाया है।
-कैप्टन की पंजाब में जीत को लेकर नए नए आइडिया जैसे कि कैप्टन स्मार्ट कनैक्ट स्कीम, कॉफी विद कैप्टन और कैप्टन किसान यात्रा इत्यादि अप्लाई किए जा रहे हैं।
विरोध में तथ्य
-पंजाब कांग्रेस में अंदरूनी क्लेश जगजाहिर है। पंजाब कांग्रेस के प्रधान कैप्टन अमरेंद्र सिंह के खिलाफ कांग्रेस पार्टी के सीनियर नेता ही साजिश रचते रहते हैं। हंसराज हंस के कांग्रेस छोडऩे का भी यही कारण रहा है क्योंकि कैप्टन उनको राज्यसभा का मैंबर बनाना चाहते थे पर दूलो ने उनको हाईकमान से बात करके राज्यसभा मैंबर नहीं बनने दिया। नवजोत सिंह सिद्धू को कैप्टन अमरेंद्र सिंह कांग्रेस में शामिल नहीं होने दे रहे। यही कारण है कि नवजोत सिद्धू सीधा हाईकमान से बात कर रहे हैं। इसी कारण अभी तक कई सीटों पर उम्मीदवारों का चयन नहीं हो पाया है।
-पंजाब कांग्रेस के प्रधान कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने कॉफी विद कैप्टन प्रोग्राम के तहत पंजाब के नौजवानों को तो अपनी तरफ आकर्षित कर लिया लेकिन दलित वोट बैंक को लुभाने के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठा पाए।
-सोशल मीडिया पर कांग्रेस प्रचार जोरों-शोरों पर कर रही है लेकिन कांग्रेस जीत के बाद प्रदेश में विकास को लेकर सबसे पहला कार्य क्या करेगी, इसे लेकर कोई ऐलान नहीं किया गया। हालांकि विधानसभा में कांग्रेस के विधायक चरणजीत चन्नी ने जब विधानसभा में सुखबीर बादल से विकास के नाम पर बहस की थी तो चन्नी कोई भी आंकड़े पेश नहीं कर पाए थे। इस बात को लेकर उनका काफी मजाक भी उड़ा था।
-अमृतसर में सरकार चाहे जो भी आए कांग्रेस विरोधी पक्ष निभाने में हमेशा नाकाम रही है। कांग्रेस ने अमृतसर में बी.आर.टी.सी. प्रोजैक्ट को लेकर कभी भी आवाज बुलंद नहीं की है। लुधियाना में बुड्ढा नाला का मुद्दा हर बार चुनाव में छाया रहता है पर इस बार कांग्रेस इस मुद्दे पर बिल्कुल चुप है।
-कैप्टन अमरेंद्र सिंह सांसद होने के बावजूद संसद में पंजाब का कोई मुद्दा नहीं उठा पाए। सुखबीर सिंह बादल उन पर हमेशा निशाना साधते हैं कि कैप्टन अमरेंद्र सिंह चुनाव के बाद नजर नहीं आएंगे।
-कांग्रेस प्रचार को लेकर पीछे जा रही है। कैप्टन ने शुरूआत में सिर्फ भटिंडा में रैली करने के बाद प्रदेश में कोई भी रैली नहीं की है। इसके साथ ही न कोई नुक्कड़ बैठक कांग्रेस की तरफ से हो रही है। आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को नुक्कड़ बैठकों में पीछे छोड़ दिया है। अमरेंद्र राजा बड़िंग के अलावा कांग्रेस का कोई भी नेता सोशल मीडिया पर एक्टिव नहीं है।
-इनबैलेंस ऑफ, दलित, हिन्दू एंड अर्बन। कांग्रेस में अभी तक सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है जिस कारण ऐसी बातें चल रही हैं कि पार्टी में दलित व हिंदू समुदाय को प्रतिनिधित्व को उचित सम्मान नहीं मिल रहा।
-पंजाब में विधानसभा चुनाव का समय दिन-ब-दिन कम होता जा रहा है पर सभी विधानसभा हलकों में कांग्रेस के दफ्तरों में चुनाव को लेकर तैयारियों का कोई नामोनिशान नहीं है। आम आदमी पार्टी ने हर शहर, हर गांव में अपने दफ्तरों में चुनाव की रणनीतियां बनानी शुरू कर दी हैं। प्रदेश कांग्रेस अभी हाईकमान के आदेशों का इंतजार कर रही है। पटियाला की बात करें तो वहां पर भी कांग्रेस के दफ्तर में कोई ज्यादा चहल-पहल नहीं है।
भाजपा
पक्ष में बातें
-मोदी का वोटरों पर अच्छा प्रभाव। हिन्दू वोट कैचर 2012 के चुनावों में कई हिन्दू बहुल सीटें जीतने के बाद पार्टी का मनोबल बढ़ा है। वहीं, नोटबंदी के बावजूद चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में भाजपा की अप्रत्याशित जीत ने पार्टी के लिए टॉनिक का काम किया है।
-भाजपा का स्ट्रक्चर कैडर अच्छा होने के कारण पार्टी का कोई नेता भाजपा को छोड़ दूसरी पार्टी में नहीं गया। अमृतसर पूर्वी से नवजोत कौर सिद्धू को छोड़कर पार्टी अपने कैडर को संभालने में सफल साबित हुई है, जिसके चलते 2017 के चुनावों को लेकर भाजपा की टिकट हासिल करने के लिए नेताओं की होड़ लगी हुई है।
-भाजपा सीटों पर आर.एस.एस. की गहरी पकड़ होना। कैडर का जाल बिछा होना। कट्टर हिन्दू वोटर को प्रभावित करने वाली भाजपा शहरी वोट हासिल करने में इसलिए सफल साबित होती रही है।
-केन्द्रीय लीडरशिप की तरफ से लगातार प्रचार करना और एन.आर.आइज से बैठकें। 2017 चुनावों को लेकर अभी से ही केन्द्रीय नेताओं को पंजाब में भेजा जा रहा है। अरुण जेतली की अमृतसर में होने वाली रैली को लेकर पंजाब भाजपा काफी उत्साहित हुई है।
-मोदी के अभियान की अच्छी पब्लिसिटी का लाभ मिलना। केन्द्रीय नेताओं द्वारा बार-बार पंजाब का दौरा कर स्थानीय इकाइयों को गुर देना फायदेमंद साबित हुआ है।
-एस.वाई.एल. के मुद्दे पर अपना स्टैंड स्पष्ट रखना: पड़ोसी राज्य हरियाणा में अपनी सरकार होने के बावजूद प्रदेश इकाई द्वारा हरियाणा को पानी न देने की वचनबद्धता ने पार्टी का कद बढ़ाया है।
-मोहाली एयरपोर्ट को अंतर्राष्ट्रीय बनाना। जालंधर के आदमपुर में एयरपोर्ट का नींव पत्थर रखना व भटिंडा एयरपोर्ट को चालू करना। दोआबा के आदमपुर में एयरपोर्ट को परवानगी दिलाकर भाजपा एन.आर.आई. वोटरों को लुभाने में सफल साबित होती नजर आ रही है।
-गुजरात व चंडीगढ़ के चुनावों में अच्छा प्रदर्शन। 2017 के चुनावों से पूर्व गुजरात व चंडीगढ़ के चुनाव नतीजों का निश्चित तौर पर पंजाब चुनावों पर भी असर पड़ेगा। भारतीय जनता पार्टी इन नतीजों से काफी खुशी है।
-एन.आर.आई. के बीच प्रधानमंत्री मोदी के आने-जाने का पॉजीटिव असर : एन.आर.आई. खुश हैं। विदेशों में जाकर भारतवंशियों के लिए योजनाएं घोषित करके मोदी आप्रवासी भारतीयों के पसंदीदा बन गए हैं, चूंकि पंजाब के चुनावों में आप्रवासी भारतीयों का अहम रोल रहा है इसलिए पार्टी ‘आप’ के वोट बैंक में बड़ी सेंध लगा सकती है।
-परिवारवाद को कम बढ़ावा देना। अन्य पाॢटयों की अपेक्षा भाजपा ने परिवारवाद को प्राथमिकता न देकर आम कार्यकत्र्ता की हौसला-अफजाई की है।
विरोध में तथ्य
-गठबंधन द्वारा भाजपा हलकों में कम विकास करवाना। इसका खमियाजा पार्टी को अपने केन्द्रीय स्टार नेता नवजोत सिंह सिद्धू व उसकी विधायक पत्नी नवजोत कौर सिद्ध को खोकर चुकाना पड़ा।
-पंजाब में नेताओं का अनुशासित न होना। नवजोत कौर सिद्धू द्वारा गठबंधन सरकार पर बार-बार विरोधाभासी बयान जारी करने के बावजूद तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष कमल शर्मा द्वारा सख्त कार्रवाई न करने का पार्टी में गलत संदेश गया। पार्टी की ढीली कार्यप्रणाली को देख अन्य नेताओं ने भी पार्टी के खिलाफ खूब भड़ास निकाली।
-पंजाब के मुख्य मुद्दों को दरकिनार करना। पंजाब की सियासत में अहम मुद्दों को लेकर भाजपा फ्रंट मोर्चे पर नजर नहीं आई। धार्मिक बेअदबी तथा पानी के मुद्दों को लेकर भाजपा का रवैया लगभग सुस्त ही रहा।
-5 मंत्री और एक प्रधान होने के बावजूद लोगों से दूर रहना। सत्ता में रहने के बावजूद भाजपा जनता से सीधा सम्पर्क बनाने में असफल साबित हुई। अपने 10 साल के कार्यकाल के दौरान भाजपा कोई भी बड़ा इवैंट आयोजित नहीं कर पाई।
-बैलेंस लीडरशिप नहीं होना। सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व न कर पाना व एक विशेष गुट का पार्टी पर हावी रहना पार्टी को नुक्सान पहुंचा सकता है। लम्बे समय तक सरकार में रहने के बावजूद पार्टी में गुटबंदी अभी तक समाप्त नहीं हो पाई है।
-इंडस्ट्री की अनदेखी के कारण उद्योगपतियों द्वारा अन्य राज्यों में पलायन किया गया। इससे प्रदेश की इंडस्ट्री खत्म होने की कगार पर है। वैट रिफंड न मिलने से भी उद्योगपति निराश हैं।
-कार्पोरेशन में अच्छा प्रदर्शन न होना। नगर निगम में भाजपा का कब्जा होने के बावजूद क्षेत्र में उचित विकास नहीं कर पाने के कारण जनता की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है। हैरानी की बात यह है कि निगम कार्यों को लेकर भाजपा नेताओं को अपने ही सहयोगी अकाली दल के नेताओं से दो-चार होना पड़ा है।
-अपने मंत्रियों पर अंकुश न लगा सकना। इसके चलते मंत्री अपने आप में ही व्यस्त रहे। इनका ध्यान विकास कार्यों में कम ही रहा और इन पर कई तरह के आरोप लगते रहे।
-सटिंग एम.एल.ए. के खिलाफ विरोधाभास। इन विधायकों की टिकट के खिलाफ कई अन्य पार्टी नेता मैदान में उतरे हैं, जिससे दूसरी पार्टियों को लाभ मिल सकता है।
ठआम लोगों के बारे में बातें न करना। भाजपा के नेताओं ने लोकल मुद्दों पर स्टैंड नहीं लिया।
‘आप’
पक्ष में बातें
-सबसे स्ट्रॉन्ग अपोजिशन अकाली दल पर किया सीधा अटैक। अकाली सरकार के समय भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी और माफिया जैसे मुद्दों को उठाकर ‘आप’ को मिला बल।
-निरन्तर और योजनाबद्ध तरीके से कैम्पेन चलाना, बूथ लैवल पर आम आदमी पार्टी के पास है स्ट्रॉन्ग मैन पावर। इससे उनको प्रचार में मिल रहा है फायदा।
-एन.आर.आइज से कलैक्शन और हर तरह से फाइनांशियल एड। एन.आर.आइज लगातार अकाली दल और कांग्रेस को अजमा चुके थे। इस बार उन्होंने नई नवेली आम आदमी पार्टी पर दाव खेलने की सोची।
-दिल्ली में जब सत्ता में आई तो गरीबों में अपनी अच्छी छवि और प्रताडि़त लोगों के मसीहा की छवि बनाई। इससे पंजाब में आम लोग समझने लगे हैं कि जब आम आदमी पार्टी सत्ता में आएगी तो वह हमारे हकों के लिए लड़ेगी।
-भाजपा के साथ फाइट और मीडिया में बिना पब्लिसिटी बने रहना ‘आप’ के लिए हो सकता है फायदे की बात। क्योंकि आम आदमी पार्टी लगातार केन्द्र सरकार से झगड़े की वजह से लोगों की नजरों में रही है। इससे लोगों को लगता है कि आम आदमी पार्टी जनता से किए गए वायदों को पूरा करेगी।
-पंजाब में बदलाव लाने का दिया नारा, पंजाब में नशा, बेरोजगारी को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया और लोगों को सरकार आने पर इनसे निजात दिलाने का वायदा किया।
ठदिल्ली में सिख बहुल 5 विधानसभा सीटें जीतने से पंजाब में सिख वोटरों को भी अपनी ओर आकर्षित करने में मिल सकता है फायदा।
-केजरीवाल का पंजाब में खुद आकर डेरों में जाना और सिख धार्मिक स्थलों पर नतमस्तक होना। इससे आम आदमी पार्टी पंथक वोटों में सेंध लगाकर अपने पक्ष में कर सकती है।
-श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के दौरान आम आदमी पार्टी ने पंजाब में अपनी अच्छी छवि बनाई और आरोपियों को सरकार आने पर सख्त से सख्त सजा देनी बात कही है।
-अकाली क्षेत्रों में अच्छी सदस्यता कैम्पेन चलाना और उन्होंने लोगों को अन्य पाॢटयों के अलावा आम आदमी पार्टी को आगे लाने के लिए अपील की।
विरोध में तथ्य
-इन-फाइटिंग : आम आदमी पार्टी की अंदरूनी लड़ाई भी ‘आप’ की छवि खराब कर सकती है।
-शहरों की मुकम्मल तौर पर अनदेखी: दरअसल अकाली दल गांवों में एक मजबूत पार्टी है इसलिए ‘आप’ ने ज्यादातर ध्यान भी गांवों की तरफ ही दिया हुआ है।
-दिल्ली में सरकार बनाने के बाद भी दिल्ली की तरफ ध्यान न देने से आम आदमी पार्टी को पंजाब में इसका नुक्सान उठाना पड़ सकता है क्योंकि पंजाब में अकाली दल व भाजपा ने इस मुद्दे को खूब उछाला तथा उन्होंने यहां तक कह दिया था कि केजरीवाल दिल्ली का भगौड़ा है।
-सिख लीडरशिप की गैर-मौजूदगी आप के लिए एक बड़ी सिरदर्द बनी हुई थी जिससे निजात पाने के लिए कई हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।
-आए दिन केंद्र सरकार के खिलाफ कोई न कोई मुद्दा लेकर राजनीति करना भी आप को भारी पड़ सकता है। केजरीवाल ने हमेशा ही मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि वह उनको दिल्ली में काम करने से रोकते हैं। अगर केजरीवाल सरकार पंजाब की सत्ता में आती है तो सोचने वाली बात है कि केंद्र सरकार की मदद के बिना पंजाब का विकास कर पाएंगे।
-दिल्ली की लीडरशिप को पंजाब में चुनाव लड़ाने को लेकर आप कार्यकत्र्ताओं में जहां नामोशी दिख रही है वहीं इसका नुक्सान झेलने के लिए आम आदमी पार्टी को तैयार रहना होगा।
-भगवंत मान का संबोधन अच्छा पर नशे के मामले में अपने ही सांसदों का ये कहना कि इनके साथ बैठना मुश्किल है इससे कहीं आप की नशे विरोधी होने पर प्रश्रचिन्ह लग सकता है।
-2014 लोकसभा चुनाव में आप से जहां पंजाब में 4 सांसद जीतकर संसद में गए उसके बाद करीब डेढ़ वर्ष बाद दो सांसद को निकाला जाना भी पंजाब विधानसभा चुनावों में कई दुश्वारियों को पैदा कर सकता है।
-जिन लोगों ने आम आदमी पार्टी को पंजाब में स्टैंड किया था उन लोगों खासकर सुच्चा सिंह छोटेपुर को पार्टी से निकाल दिया गया, इससे पार्टी कार्यकत्र्ताओं में उत्साह की कमी आई और कई वर्कर और नेता पार्टी छोड़ कर दूसरे दलों में चले गए।
-बार्डर एरिया होने के कारण पंजाब को अशांत न होने देना आम आदमी पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती है क्योंकि बार्डर पार से लगातार नशे की सप्लाई और आतंकी वारदातों में इजाफा राज्य में असुरक्षा का माहौल पैदा करता है।