पंजाब सहित उत्तर भारत में बिजली संकट के आसार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Feb, 2018 09:26 AM

power crisis in northern india including punjab

राज्य में समय रहते बर्फबारी न हुई तो हिमाचल सहित पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व दिल्ली में भी गर्मियों के दौरान विद्युत संकट गहरा जाएगा।

जालंधरः राज्य में समय रहते बर्फबारी न हुई तो हिमाचल सहित पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व दिल्ली में भी गर्मियों के दौरान विद्युत संकट गहरा जाएगा। राज्य सरकार को विद्युत क्षेत्र से मिलने वाला करोड़ों का राजस्व कम हो जाएगा। इसकी ज्यादा मार छोटे-छोटे पावर प्रोड्यूसर पर पड़ेगी। प्रदेश में बर्फबारी न होने से विद्युत उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है।  जो पहाड़ नवम्बर व दिसम्बर माह में बर्फकी सफेद चादर ओढ़ लेते थे, वे फरवरी में भी नंगे नजर आ रहे हैं। इससे गर्मियों में भी विद्युत उत्पादन आधा रह जाएगा। बिजली पैदा करने के लिए नदी-नालों में पानी नहीं मिलेगा। इन दिनों भी बर्फबारी न होने और ग्लेशियरों के जम जाने से 86.54 फीसदी से अधिक विद्युत उत्पादन गिर गया है। यही वजह है कि हिमाचल केज्यादातर घरों में पड़ोसी राज्य की बिजली लेकर उजाला हो रहा है।

 


बिजली बोर्ड के एम.डी. जे.पी. काल्टा कहते हैं कि प्रदेश के पावर प्रोजैक्ट में 86 फीसदी तक विद्युत उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई है लेकिन उपभोक्ताओं को बिजली की कमी नहीं होने दी जाएगी। इन दिनों 140 लाख यूनिट बिजली बैंकिंग के माध्यम से पड़ोसी राज्य और 98 लाख यूनिट सैंट्रल सैक्टर की परियोजनाओं से ली जा रही है। अपना उत्पादन 37 लाख यूनिट में सिमट गया है।  उत्पादन गिरने से विद्युत राज्य हिमाचल पड़ोसी राज्य की बिजली पर निर्भर हो गया है। राज्य का विद्युत बोर्ड बैंकिंग सिस्टम से पड़ोसी राज्य से बिजली लेकर उपभोक्ताओं को आपूर्ति कर रहा है। 140 लाख यूनिट बिजली बैंकिंग के माध्यम से पड़ोसी राज्य से ली जा रही है जबकि 98 लाख यूनिट सैंट्रल सैक्टर की परियोजनाओं से खरीदी जा रही है।

 

इस कारण पड़ा मौसम पर असर


विशेषज्ञों के अनुसार ब्रह्मांड के तापमान में पिछले कुछ दशकों से बढ़ौतरी हुई है तथा यह बढ़ौतरी अब तक औसतन 0.74 डिग्री सैल्सियस तक दर्ज की गई है। स्थानीय स्तर पर यह और भी अधिक हो सकती है। ऐसे में इसका प्रभाव बारिश तथा हिमपात पर भी पड़ा है। बारिश का प्रमुख कारण पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता रहती है। पश्चिमी विक्षोभ के कारण मैडीटेरियन सी से उठने वाली हवाएं कुछ दिनों के अंतराल के पश्चात क्षेत्र में पहुंच तो रही हैं परंतु लो प्रैशर न हो पाने के कारण एक्टिव नहीं हो पा रही हैं जिस कारण बारिश तथा हिमपात नहीं हो पा रहा है।     -डा. एस.पी. शर्मा, पूर्व शोध निदेशक कृषि विश्वविद्यालय 


इस बार 92 फीसदी कम बरसे मेघ
 देवभूमि हिमाचल में सूखे जैसे हालात पैदा हो गए हैं। इससे पहले साल 2007 में ऐसे हालात देखने को मिले थे। उस दौरान जनवरी माह में मात्र एक मिलीमीटर बारिश रिकार्ड की गई थी। इस बार भी हिमाचल में एक जनवरी से 5 फरवरी तक मात्र 9.2 मिलीमीटर बारिश-बर्फबारी हुई है। यानी प्रदेश में 92 फीसदी कम मेघ बरसे हैं। इस अवधि में औसत सामान्य बारिश-बर्फबारी 114.5 मिलीमीटर होनी चाहिए थी। फरवरी माह की बात करें तो प्रदेश में पहले सप्ताह में 99.5 फीसदी कम बारिश हुई है।

 

इतनी है बिजली की मांग 
सर्दियां होने के कारण बिजली की मांग बढ़कर 275 लाख यूनिट पहुंच गई है लेकिन नदी-नाले बारिश-बर्फबारी न होने से सूख चुके हैं। कुछ बड़ी नदियों में भी ग्लेशियरों के जम जाने से नदी-नालों में पानी का स्तर बहुत गिर गया है। इस कारण विद्युत उत्पादन कम हुआ है। गर्मियों में जब हिमाचल सरप्लस बिजली तैयार करता है तो उन दिनों पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश को बैंकिंग आधार पर बिजली प्रदान करता है। सॢदयों में जब प्रदेश में विद्युत उत्पादन गिर जाता है तो इन्हीं राज्य से हिमाचल बैंकिंग के माध्यम से बिजली वापस लेता है। दिसम्बर माह से विद्युत उत्पादन गिरना शुरू हो गया है। तब से लेकर हर रोज उत्पादन गिरता जा रहा है। बोर्ड की अपनी परियोजनाओं के अलावा कड़छम वांगतू, कोल डैम, नाथपा-झाखड़ी, रामपुर व भाखड़ा में भी बिजली का उत्पादन बहुत ज्यादा गिरा है। बिजली बोर्ड विद्युत उत्पादन में आए शॉर्टफॉल को कम करने का प्रयास कर रहा है।


उधर भाखड़ा में 31 फुट बढ़ा जलस्तर
उधर भाखड़ा बांध का जलस्तर पिछले वर्ष के मुकाबले 31 फुट बढ़ा है। भले ही इस बार सूखे का मौसम रहा हो लेकिन जलस्तर में कोई कमी नहीं आई है। पिछले साल 6 फरवरी को 1578.42 था जबकि आज के दिन 1609 है। भाखड़ा बांध में स्थित चीफ इंजीनियर जैनरेशन कार्यालय ने इस बात की पुष्टि की है। अधिकारियों के मुताबिक बिजली के उत्पादन में भी कोई कमी नहीं है बल्कि बिजली का उत्पादन पहले से बढ़ा है।
छोटे पावर प्रोजैक्ट चलाना मुश्किल होगा : राजेश
पावर डिवैल्पर एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश शर्मा ने बताया कि बर्फबारी न हुई तो छोटे-छोटे पावर प्रोड्यूसर का प्रोजैक्ट चला पाना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने बताया कि ज्यादातर प्रोजैक्ट में अब 10 फीसदी तक ही उत्पादन रह गया है जबकि प्रोजैक्ट को चलाने पर लागत पूरी देनी पड़ रही है। यदि बर्फबारी व बारिश नहीं होती है तो गर्मियों में भी विद्युत उत्पादन बहुत ज्यादा गिर जाएगा।


इतना नहीं घटता था पानी
कुल्लू के सेऊबाग निवासी विक्रांत, संजीव उपाध्याय, वीर सिंह, राज कुमार, सुरेंद्र, तलोगी निवासी रवि, कुबेर सिंह, जिया निवासी चांद, संजीव शर्मा, सुरेश कुमार शर्मा, नितिन व अरविंद  ने कहा कि इन दिनों ब्यास नदी का पानी काफी घट गया है। सॢदयों में ब्यास नदी का पानी कम होता था लेकिन इस बार जलस्तर काफी ज्यादा घटा है। ऐसा पहली बार हुआ है। यह बारिश और बर्फबारी न होने की वजह से हुआ होगा। दिसम्बर और जनवरी में ऊंची चोटियों पर जमकर बर्फबारी होती थी। निचले इलाकों तक भी हिमपात होता रहा है। इस बार न तो बारिश हो रही है और न ही बर्फबारी हो पा रही है।

 

कारण बरसात कम होना
बताया जाता है कि बरसात कम होने से पहले ही चमेरा-2 जल विद्युत परियोजना अपने निर्धारित बिजली उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करने में कामयाब नहीं हो पाई थी तो अब सॢदयां भी उस पर भारी पडऩे लगी हंै। उक्त जल विद्युत परियोजना को हर दिन करोड़ों रुपए का नुक्सान उठाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। चमेरा-1 खैरी पावर स्टेशन अपने निर्धारित लक्ष्य से 10 मिलिनयन यूनिट बिजली कम पैदा कर सका। एन.एच.पी.सी. का कहना है कि अगर यही स्थिति बनी रही तो लीन पीरियड का यह अब तक का सबसे कम बिजली पैदा करने वाला वर्ष बन जाएगा।


छोटे प्रोजैक्टों की मुश्किलें बढ़ीं;  
चेतावनी : पर्यावरण वैज्ञानिक बोले-घटेगा भू-जल व सूखेंगे प्राकृतिक जलस्रोत


संभल जाइए
सूखे जैसी स्थिति के लिए हम लोग स्वयं भी काफी हद तक उत्तरदायी हैं। सभी को अपना फर्ज समझते हुए पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाने के क्रम को रोकना चाहिए। सूखे की वजह से यदि विद्युत परियोजनाओं में विद्युत उत्पादन के लिए पानी कम पड़ रहा है तो अन्य बातों के लिए भी पानी नहीं मिलेगा। इससे भू-जल भी घटेगा और प्राकृतिक जलस्रोत भी सूख जाएंगे। सिंचाई के लिए और पीने के लिए भी पानी की किल्लत झेलनी पड़ सकती है। सूखा पडऩे के पीछे कुल मिलाकर पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाने के क्रम को ही मुख्य वजह माना जा सकता है।                                                    -डा. जे.सी. कुनियाल, वरिष्ठ वैज्ञानिक, जी.बी. पंत राष्ट्रीय तथा सतत विकास संस्थान हिमाचल क्षेत्रीय केंद्र, मौहल कुल्लू

 

 

उत्पादन घटा है लेकिन लक्ष्य पूरा करेंगे : महाप्रबंधक
पार्वती परियोजना चरण 3 के महाप्रबंधक सी.बी. सिंह कहते हैं कि पार्वती परियोजना चरण 3 ने बीते वर्ष निर्धारित समय से पूर्व ही उत्पादन के लक्ष्य को पूरा किया है। इन दिनों विद्युत उत्पादन में गिरावट जरूर है लेकिन डी.पी.आर. के मुताबिक अनुमान से अधिक उत्पादन है। इस वर्ष भी पार्वती परियोजना उत्पादन लक्ष्य को भेदने से नहीं चूकेगी।


 

पार्वती-ब्यास के कई सहायक नाले सूखे
कुल्लू जिला में टार्गेट अचीव करने के लिए जल विद्युत परियोजनाओं को जितने पानी की जरूरत है उतना पानी नहीं मिल पा रहा है। बारिश और बर्फबारी न होने से अन्य कई चीजें भी प्रभावित हुई हैं। पंडोह डैम व लारजी डैम सहित अन्य बांधों से अतिरिक्त पानी तय हिस्से के अनुसार छोड़ा जा रहा है लेकिन बरसात में ओवरफ्लो की स्थिति में सभी द्वार खोलने पड़ते हैं। दिसम्बर और जनवरी के महीने में ऊंची चोटियों पर जमकर बर्फबारी होने के बाद इन दिनों अमूमन नदी-नालों में पानी बढ़ जाता था। हालांकि सॢदयों में नदी-नालों का जलस्तर घट जाता है लेकिन यदि बारिश और बर्फबारी का क्रम जारी रहे तो ऐसी दुर्दशा नहीं होती थी। इन दिनों में कुल्लू में पार्वती और ब्यास नदी के कई सहायक नाले तो पूरी तरह सूख गए हैं। ब्यास नदी में पानी काफी कम हो गया है।


 

विद्युत परियोजनाओं की ये हालत
पार्वती जल विद्युत परियोजना सैंज बांध से इन दिनों प्रतिदिन अधिकतम 15 क्यूबिक मिलीलीटर पानी डिस्चार्ज किया जा रहा है जिसकी क्षमता करीब एक मिलियन यूनिट विद्युत उत्पादन की है जबकि जून-जुलाई में 150 से 200 मिलीलीटर पानी प्रतिदिन डिस्चार्ज होता है। इसका औसतन विद्युत उत्पादन 12 से 15 मिलियन यूनिट रहता है। हिमाचल पावर निगम के 126 मैगावाट लारजी परियोजना में पानी की कमी से इन दिनों 25 से 30 मैगावाट तथा ट्रायल पर चलाई गई 100 मैगावाट सैंज परियोजना में 20 से 25 मैगावाट औसत विद्युत उत्पादन हो रहा है। इसी प्रकार पार्वती परियोजना के अन्य चरणों, ए.डी. हाइड्रो व मलाणा प्रोजैक्ट सहित अन्य जल विद्युत परियोजनाओं में भी बिजली उत्पादन में भारी गिरावट आई है।


पंजाब पर पड़ेगा असर 
इस बार हिमाचल में कम बारिश व बर्फबारी होने से पंजाब पर भी असर पड़ेगा। बारिश और बर्फबारी के बिना पहाड़ भी सूखे पड़े हुए हैं। नदियों और नालों का भी जलस्तर घटा है। नदियों के सहायक कई नाले तो बिल्कुल ही सूख गए हैं। ऐसे में आने वाली गर्मियों में जल संकट गहराने के आसार बने हुए हैं।  पहाड़ों पर बर्फबारी न होने से नदियों नालों में पर्याप्त पानी नहीं होगा, इनके जलस्तर पर गिरावट आएगी। पंजाब में ब्यास, सतलुज, रावी, चिनाब और झेलम आदि प्रमुख नदियां हैं। इनका जलस्तर कम होने से सिंचाई व विद्युत उत्पादन पर असर पड़ेगा। पंजाब में जलस्तर पर भी प्रभाव पड़ सकता है।

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