नेताओं का सियासी ख्वाब, प्रदूषण मुक्त पंजाब

Edited By swetha,Updated: 25 Apr, 2019 12:40 PM

pollution free punjab

पंजाब की सियासी हवाओं के बीच ‘साफ-सुथरी आबोहवा’ का चुनावी नारा भी तेजी से बुलंद हो रहा है। नेता दावा कर रहे हैं कि अगर जनता जीत दिलवाती है तो वह प्रदूषण मुक्त पंजाब का सपना साकार करेंगे, ताकि बाशिंदों को स्वच्छ आबोहवा, स्वच्छ जल, पर्यावरण मिल सके।

चंडीगढ़(अश्वनी कुमार):पंजाब की सियासी हवाओं के बीच ‘साफ-सुथरी आबोहवा’ का चुनावी नारा भी तेजी से बुलंद हो रहा है। नेता दावा कर रहे हैं कि अगर जनता जीत दिलवाती है तो वह प्रदूषण मुक्त पंजाब का सपना साकार करेंगे, ताकि बाशिंदों को स्वच्छ आबोहवा, स्वच्छ जल, पर्यावरण मिल सके। इस बार यह मुद्दा इसलिए भी चर्चा में है क्योंकि पिछले कुछ सालों में पंजाब में प्रदूषण एक गंभीर चुनौती बनकर उभरा है। नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने तो नदियों में बढ़ते प्रदूषण पर सरकार को 50 करोड़ का जुर्माना भी ठोका था। यही वजह है कि नेता इस मुद्दे को पूरी तरह भुनाने की फिराक में हैं। ‘आप’ की नेता बलजिंद्र कौर ने तो प्रदूषण को लेकर पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के खिलाफ मोर्चा भी खोल दिया है। इसी कड़ी में शिरोमणि अकाली दल अमृतसर के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान ने रैलियों में पंजाब में प्रदूषित हो रहे पानी और भूजल की समस्या पर चिंता जताई है। इससे पहले पंजाब एकता पार्टी के अध्यक्ष सुखपाल खैहरा भी गाहे-बगाहे प्रदूषण पर आवाज बुलंद करते रहे हैं। खैहरा ने तो सतलुज-ब्यास में प्रदूषण पर सरकार के खिलाफ ट्रिब्यूनल में याचिका भी दायर की थी। जाहिर है, ज्यों-ज्यों चुनावी गर्मी बढ़ेगी, त्यों-त्यों सियासी मंचों पर पर्यावरण प्रेम का राग भी खूब सुनाई देगा।

नदियों पर धड़ल्ले से हो रहे कब्जे 
स्वच्छ हवा-पानी के दावों से उलट हकीकत यह है कि पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाया जा रहा है। शिवालिक फुटहिल्स से निकलकर मैदानी इलाकों में जाने वाले बरसाती नदी-नालों पर अतिक्रमण हावी है। मोहाली-रोपड़ के इलाके में सबसे ज्यादा नदियों-नालों की जमीन पर कब्जे हो रहे हैं। सैटेलाइट मैप में देखा जाए तो कई जगहों पर अतिक्रमण ने नदी-नालों की दिशा बदल दी है। न्यू चंडीगढ़ में सिसवां नदी इसका उदाहरण है। शिवालिक फुटहिल्स से निकलकर सतलुज में मिलने वाली यह नदी कई जगह अतिक्रमण की मार झेल रही है। यही हालत अन्य बरसाती नदी-नालों की है। 

सतलुज-ब्यास के आसपास फैल रहे रोग
पंजाब में पर्यावरण प्रदूषण बीमारी का कारण बन रहा है। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट में कहा गया है कि सतलुज-ब्यास में प्रदूषण के कारण आसपास रहने वाले बाशिंदे चर्मरोग, पेट, श्वांस, फेफड़े और उच्चरक्तचाप का शिकार हो रहे हैं। जनवरी से अगस्त 2018 तक नदी के आसपास के जिला अस्पतालों में मरीजों की संख्या में वृद्वि हुई है। अकेले लुधियाना में चर्मरोग, पेट खराब, श्वांस, फेफड़े की समस्या के साथ उच्चरक्तचाप के शिकार मरीजों की बहुतायत पाई गई है। इसी कड़ी में रोपड़, फाजिल्का जिले में भी चर्मरोग व पेट खराब होने की शिकायतों में वृद्धि दर्ज की गई है। 

नाकारा सीवरेज ट्रीटमैंट प्लांट बड़ा सिरदर्द 
नेता कुछ भी कहें लेकिन हकीकत में पर्यावरण संरक्षण की कोशिशें कागजों तक सीमित हैं। कुछ माह पहले एक रिपोर्ट में सामने आया था कि गंदे पानी को साफ करने के लिए प्रदेश में जो सीवरेज ट्रीटमैंट प्लांट लगाए गए हैं, उनमें से ज्यादातर कंडम हैं। जो चल भी रहे हैं, उनसे निकलने वाला पानी बिना शुद्धीकरण के ही नदियों में धकेला जा रहा है। 

15 फीसदी हरियाली का सपना भी अधूरा 
चुनावी वायदों के विपरीत सत्तासुख भोगने वाली सरकारें पंजाब की हरियाली में कोई योगदान नहीं दे पाई हैं। पूर्व सरकार ने वन नीति की घोषणा करते हुए दावा किया था कि 2017 और फिर 2022 तक 15 फीसदी पंजाब हरा-भरा हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। पंजाब में आज भी हरियाली का आंकड़ा 6 फीसदी के आसपास तक ही सीमित है।

16 मई 2018 : पंजाब का सबसे बड़ा पर्यावरण हादसा
पंजाब के इतिहास में 16 मई 2018 का दिन बड़े पर्यावरण हादसे के तौर पर याद किया जाएगा। इस दिन गुरदासपुर जिले के गांव कीड़ी अफगाना में स्थित चड्ढा शूगर मिल कॉम्पलैक्स में गन्ने की पिराई से निकला सीरा ब्यास नदी में घुल गया था, जिसके कारण लाखों जलीय जीव-जंतुओं की मौत हो गई थी और पर्यावरण को नुक्सान हुआ था। नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अक्तूबर 2018 में मामले पर सुनवाई करते हुए मॉनीटरिंग कमेटी का गठन किया था। अब तक कमेटी इस मामले में दो बार रिपोर्ट सबमिट कर चुकी है, जिसमें सरकार की सुस्त कार्यप्रणाली को कटघरे में खड़ा किया गया है। इसी के चलते नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पंजाब सरकार पर 50 करोड़ का जुर्माना भी लगाया था। कमेटी ने रिपोर्ट में सरकार द्वारा नदियों के किनारे औद्योगिक इकाइयों की मंजूरी देने की नीति पर सवाल खड़े किए थे। कमेटी ने सुझाव दिया था कि सरकार प्रदेश के किसी भी नदी-नाले के किनारे प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाई को चलने की मंजूरी प्रदान न करे। मॉनीटरिंग कमेटी के स्तर पर आज भी इस मामले की जांच जारी है।

कांग्रेस की घोषणा, प्रदूषण मुक्त पर्यावरण 
कांग्रेस ने  अपने घोषणा पत्र में प्रदूषण मुक्त पर्यावरण की बात कही है। घोषणा पत्र में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ लड़ाई और पर्यावरण संरक्षण के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम को बेहद मजबूती से लागू किया जाएगा। बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों जैसे जंगल, वन्य जीव, जल निकाय, नदियां, स्वच्छ वायु और तटीय क्षेत्रों का संरक्षण किया जाएगा। पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना होगी।

भाजपा का वायदा, जल शक्ति मंत्रालय 
भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में जल शक्ति मंत्रालय बनाने की बात कही है, जिसके जरिए ग्राऊंड वाटर रिचार्ज पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। भाजपा का वायदा है कि अगले 5 साल के दौरान प्रत्येक शहर में प्रदूषण का स्तर कम से कम 35 फीसदी नीचे लेकर आएंगे। नदियों के प्रदूषण पर नजर रखने के लिए तकनीकी तौर पर रणनीति तैयार की जाएगी। राष्ट्र को हरा-भरा बनाने के लिए प्रयास किए जाएंगे। हिमालयी राज्यों के लिए ग्रीन बोनस के रूप में विशेष वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी। 

शिरोमणि अकाली दल भी करता है चुनावी वायदा  
शिरोमणि अकाली दल भी पंजाब में नदियों को प्रदूषण मुक्त करने का वायदा करता रहा है। 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में शिअद ने नदियों की साफ-सफाई का वायदा किया था। हालांकि 2017 तक सत्ता में रहते हुए शिअद ने नदियों की जलगुणवत्ता के सुधार में राज्य स्तर पर कोई ठोस प्रयास नहीं किए, केंद्र सरकार के स्तर पर जो स्कीम लांच हुई, उसी के तहत कार्यों पर ध्यान दिया गया।

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