धान: किसान के मुद्दे पर ‘राजनीतिक आत्महत्या’ नहीं चाहते सियासी दल

Edited By Vaneet,Updated: 10 May, 2019 04:42 PM

political suicide do not want to fight political party

पंजाब में किसान आम तौर पर धान की बिजाई जून के अंतिम सप्ताह में करते हैं क्योंकि उनकी खेती अधिकतर मानसून पर निर्भर करती है जो पंजाब...

जालंधर(सोमनाथ): पंजाब में किसान आम तौर पर धान की बिजाई जून के अंतिम सप्ताह में करते हैं क्योंकि उनकी खेती अधिकतर मानसून पर निर्भर करती है जो पंजाब में 30 जून तक दस्तक देती है मगर किसान इतने उतावले हैं कि निर्धारित समय से पहले ही धान की बिजाई करना चाहते हैं, जिसे अगेती धान कहा जाता है। इसकी फसल भी जल्दी तैयार हो जाती है। पंजाब में पानी के गिरते स्तर के मद्देनजर 20 जून तक धान की बिजाई का फैसला किया गया था मगर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने किसानों की परेशानी को दूर करते हुए कहा कि वे एक सप्ताह पहले 13 जून से धान की बिजाई कर सकते हैं। 

किसान पाबंदी मानने को तैयार नहीं
20 जून से धान की बिजाई को लेकर बने कानून को किसान मानने को तैयार नहीं हैं। पिछले दिनों किसान यूनियनों ने 1 जनवरी से धान की बिजाई करने की घोषणा कर दी थी। यूनियनों ने चेतावनी दी कि यदि किसानों ने धान की पनीरी बीजने से रोका तो गांव में आने वाले सरकारी अधिकारियों का घेराव किया जाएगा। किसानों का कहना है कि 20 जून को धान की बिजाई का आदेश नादिरशाही फरमान है। देर से धान की बिजाई करने से धान पकने में देरी हो जाती है। अक्तूबर महीने में मौसम ठंडा होने के कारण धान में नमी बढ़ जाती है जिस कारण किसानों को अपनी फसल बेचने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा देर से फसल बीजने से उपज भी कम मिलती है। 2009 में पंजाब देश का एक पहला राज्य बना था जिसने निर्धारित समय से पहले धान की बिजाई पर पाबंदी लगाने का कानून लागू किया। मकसद पानी के गिर रहे स्तर को रोकना था। बहुत-सा मकसद हल हो गया मगर किसानों में असंतोष बढ़ गया। 

पंजाब में असली भू-जल संकट पैदा हुआ 1993-94 के दौरान जब पंजाब के किसानों ने चावल की किस्म गोविन्दा को उगाना शुरू किया क्योंकि यह धान 60 दिनों में पककर तैयार हो जाता था इसलिए आम भाषा में साठी चावल कहा गया। इसका किसानों ने यह फायदा उठाया कि एक फसल चक्र (अप्रैल से अक्तूबर) में साठी चावल की 2 फसल उगाना शुरू कर दिया। इससे किसानों की आय में बढ़ौतरी हुई लेकिन राज्य में पानी का संकट खड़ा होना शुरू हो गया। पंजाब भू-जल बोर्ड और पंजाब विश्वविद्यालय ने जब इस ओर सरकार का ध्यान आकॢषत किया तो इस संकट से निपटने के लिए 2005 में पंजाब राज्य किसान आयोग का गठन किया गया। 1980 के दशक में जहां भू-जल स्तर 18 सैंटीमीटर सालाना की दर से नीचे गिर रहा था वहीं 2000 से 2005 के बीच भू-जल स्तर 88 सैंटीमीटर सालाना की दर से नीचे गिरने लगा। इस संकट से निपटने के लिए गठन के तत्काल बाद पंजाब राज्य किसान आयोग ने किसानों को जागरूक करने के लिए पानी बचाओ, पंजाब बचाओ अभियान शुरू किया।

2006 में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की सरकार को अभूतपूर्व स्थिति का सामना करना पड़ा था। एक तरफ उन्हें राज्य में पानी के गिरते स्तर के संकट का सामना करना पड़ रहा था दूसरी तरफ उन्हें राज्य में पानी के स्तर को रोकने के लिए कानून पास करना था जिससे समय पर धान की बिजाई का अधिकार किसानों से छिन जाएगा। 2006 में किसान आयोग के अध्यक्ष गुरचरण सिंह कालकट पंजाब भू-जल संरक्षण अधिनियम कानून का प्रस्ताव लेकर सरकार के पास गए। उसमें कहा था कि सरकार अप्रैल के महीने में धान की रोपाई पर रोक लगा दे। देश के दूसरे हिस्सों में भले ही धान की रोपाई जून-जुलाई में होती है लेकिन पंजाब में तो अप्रैल-मई का महीना धान की खेती का महीना बन गया था। 

मुख्यमंत्री भी समझते थे कि इस नई तरह की खेती से जमीन का पानी सूख रहा है लेकिन वह क्या कर सकते थे? किसान को कैसे कहा जाए कि आपने खेती के लिए गलत मौसम का चुनाव कर लिया है लेकिन किसानों को कोई नाराज नहीं करना चाहता इसलिए उन्होंने इस प्रस्ताव को मानने से इंकार कर दिया। 2007 में पंजाब में सरकार बदली तो गुरचरण सिंह दोबारा अपने प्रस्ताव लेकर पंजाब के नए मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल से मिले लेकिन मुख्यमंत्री नहीं माने। इसका एक कारण यह भी है कि पंजाब में किसान सबसे सशक्त मतदाता समूह है और कोई भी राजनीतिक दल इनकी अवहेलना नहीं कर सकता।

पंजाब में कोई भी राजनीतिक दल किसान के मुद्दे पर ‘राजनीतिक आत्महत्या’ नहीं करना चाहता। 2008 की शुरूआत में एक बार फिर गुरचरण सिंह कालकट ने बादल सरकार से संपर्क किया।  अप्रैल, 2008 में अध्यादेश जारी हो गया। अध्यादेश के मुताबिक 10 मई से पहले धान के बीजों की बुआई पर रोक लगा दी गई और 10 जून से पहले खेतों में धान की बिजाई नहीं की जा सकती थी। 2009 में पंजाब भू-जल संरक्षण अधिनियम कानून पारित हो गया। कानून में कृषि विभाग के अधिकारियों को अधिकार दिया गया कि 10 मई से पहले अगर वे खेतों में धान के पौधे पाते हैं तो उसे नष्ट कर सकते हैं। 

कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग के चलते विदेश में कम हो रही भारतीय चावल की मांग
कीटनाशकों से बचाने और उपज बढ़ाने की खातिर धान पर अंधाधुंध रसायन का छिड़काव किया जा रहा है जो कि चावल खाने वालों में बीमारियां पैदा कर रहा है। इस कारण विदेश में इस तरह के चावल को नापसंद किया जाने लगा है। अपर कृषि निदेशक व मिशन निदेशक राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन कृषि विभाग अधिकारियों और किसानों को चेता चुके हैं कि चावल में कीटनाशकों की अधिक मात्रा होने पर ऐसे चावल का निर्यात प्रतिबंधित हो सकता है। उन्होंने कहा है कि भारत चावल का एक बड़ा निर्यातक देश है लेकिन विदेशी लोग ऐसे चावल को नापसंद करने लगे हैं। कारण है कि भारत से निर्यात हुए चावल में कीटनाशकों के अवशेष अधिकतम सीमा से ज्यादा पाया जाना। अफसरों का भी मानना है कि पिछले 3 सालों में चावल का निर्यात घटा है। अगर निर्यात घटा तो किसानों को नुक्सान होगा और अच्छे दाम पर नहीं बेच पाएंगे।  

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