Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Nov, 2017 02:57 AM
पैदाइश और बनावट भले ही एक पुरुष की है लेकिन माइंड में कही न कहीं यह है कि भगवान ने गलत शरीर में पैदा कर दिया है। मैडीकल फिल्ड में हो रही एडवांसमैंट आज इतनी बढ़ गई है कि सर्जरी के जरिए आज एक पुरुष को औरत बनाया जा सकता है या महिला को पुरुष का रुप दिया...
चंडीगढ़(पॉल): पैदाइश और बनावट भले ही एक पुरुष की है लेकिन माइंड में कही न कहीं यह है कि भगवान ने गलत शरीर में पैदा कर दिया है। मैडीकल फिल्ड में हो रही एडवांसमैंट आज इतनी बढ़ गई है कि सर्जरी के जरिए आज एक पुरुष को औरत बनाया जा सकता है या महिला को पुरुष का रुप दिया जा सकता है।
पी.जी.आई. एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के हैड प्रो. अनिल भंसाली ने बताया कि अब तक सैक्स चैंज ऑप्रेशन के लिए भारत के लोग थाईलैंड और इरान जाया करते थे लेकिन अब पी.जी.आई. में भी सैक्स चैंज जैसी सर्जरी की सुविधा उपलब्ध हो गई है। पी.जी.आई. में हर महीने 3 से 4 मरीज आ रहे हैं जो जैंडर डिस्फोरिया ट्रांसजैंडर्स से जूझ रहे हैं। डाक्टर्स की माने तो जैंडर डिस्फोरिया का सामना कर रहे लोग शारीरिक तौर पर बिल्कुल ठीक होते हैं उनमें किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होती, लेकिन उनका माइंड में कहीं न कहीं अपनी बॉडी से प्यार नहीं होता या यूं कहें कि उनका मन एक औरत व पुरुष का होता है, जो उनके जैंडर से उलटा होता है।
दुनिया में पहली बार हो रही गोनाड्स पर कांफ्रैंस
पी.जी.आई. में 24 से 25 नवम्बर के बीच गोनाड्स (महिला और पुरूष के प्रजनंन अंगों) पर कांफ्रैंस का आयोजन किया जा रहा है। अब तक एक वक्त पर या तो महिला या फिर पुरुष गोनाड्स पर कांफ्रैंस होती आई है। पी.जी.आई. एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के हैड प्रो. भंसाली की माने तो विश्व भर में यह अपनी तरह की पहली कांफ्रैंस है। देश-विदेश से 300 के करीब डैलीगेट्स इस में हिस्सा लेने वाले हैं। पी.जी.आई. के एंडो विभाग में डायबीटिज व थायरॉड के बाद गोनाड्स की समस्या को लेकर ही (15 प्रतिशत) मरीज सबसे ज्याद पहुंचते हैं।
पिछले तीन साल में हुए 8 ऑप्रेेशन
पी.जी.आई. के प्रो. भंसाली की माने तो अस्पताल में पिछले 3 सालों में 8 लोगों को सैक्स चेंज ऑप्रेशन किए जा चुके हैं जिसमें 2 महिलाओं को सर्जरी के जरिए पुरुष बनाया गया जबकि 6 लोगों को पुरुष से महिला बनाया गया है। पी.जी.आई. एंडोक्राइनोलॉजी विभाग की ही प्रो. संजय बडाडा ने बताया कि पी.जी.आई. ने अपना लास्ट सैक्स चेंज ऑप्रेशन पिछले वर्ष ही किया है जिसके एक शहर के ही एक व्यक्ति को सर्जरी की मदद से पुरुष से महिला बनाया गया है।
डाक्टर्स की माने तो यह ऑप्रेशन कोई आसान नही हैं। इससे कम से एक वर्ष या इससे ज्यादा का वक्त लगता है। बकायदा मरीज का साइकैट्रिक एनालिसस होता है जिससे 4 या 5 महीने के फॉलोअप के बाद पेरैंट्स का कंसेंट लेने के बाद यूरोलॉजी विभाग में यह ऑप्रेशन किया जाता है। प्रो. बडाडा के मुताबिक इसका प्रोसैस लंबा होने की वजह है भी कि मरीजों को कई स्टेज से गुजरना पड़ता है। उनके पास कई ऐसे मरीज भी आते हैं जो शुरूआती दौर में तो सैक्स चैंज करवाना चाहते थे लेकिन साइकैट्रिक काऊंलिंग के बाद उनका माइंड सैट चेंज हो गया। डाक्टर्स की माने तो कई बार मरीज सर्जरी का फैसला इस लिए भी ले लेते हैं क्योंकि वह अपने सेम सैक्स पार्टनर को पंसद करते हैं जिसके साथ वह लाइफ बिताना चाहते हैं लेकिन काऊंलिंग से जब गुजरते हैं तो उन्हें एहसास होता है कि वह सिर्फ माइंड का फ्रेज था।
तीन तरह की बीमारियों पर होगी चर्चा
1. पॉलीसिस्टिक ओवेरी सिंड्रोम (पी.सी.ओ.)
पी.सी.ओ. के बारे में बात करते हुए डा. अनिल भंसाली ने कहा कि ये बीमारी हॉर्मोन के संतुलन बिगडऩे से होती है। इस बीमारी में लड़कियों का शरीर में फीमेल हॉर्मोन एस्ट्रोजन की जगह पुरुष हॉर्मोन टैस्टोस्ट्रेरोन बनाने लगता है। जिससे उनके शरीर में बदलाव आने लगते हैं जैसे उनके शरीर का विकास लड़कियों की तरह नहीं होता और चेहरे पर बाल आने लगते हैं। उन्होंने कहा कि आज ये बीमारी इतनी इतनी बढ़ रही है कि हर 6-7 लड़कियों में से एक लड़की को इस बीमरी का सामना करना पड़ रहा है।
2. डिसोडर्स ऑफ सैक्स डिवैल्पमैंट (डी.एस.डी.)
इस बीमारी में पैदा होने वाले बच्चे का जन्म के बाद सैक्स ओर्गन डिवैल्पमैंट नहीं पाते हैं। ऐसे बच्चों को पहचानने में दिक्कत होती है कि वह लड़का या लड़की। पी.जी.आई. में अब तक 250 ऐसे बच्चों को रजिस्टर किया जा चुका है। डाक्टर्स की माने तो सैक्स एसैस्मैंट करने के बाद इन बच्चों के शरीर में कम या ज्यादा वाले हारमोन्स को चैक किया जाता है। इसके बाद सर्जरी की मदद से उनको लड़का बनाना है या लड़की यह तय किया जाता है। प्रो. भंसाली का माने तो ज्यादातर लोगों को लगता है कि इसका कोई इलाज नहीं है लेकिेन मैडीकल फिल्ड में इसका इलाज आज संभव है।
3. लेट एंड अर्ली प्यूबर्टी
लड़कियों में 8 वर्ष व लड़कों में 9 वर्ष से पहले प्यूबर्टी(किशोरअवस्था) आना सही नहीं है। हारमोन्स में दिक्कतों की वजह से यह होता है। लोगों में अवेयरनेस नहीं है इसलिए वह अपने बच्चों को डाक्टर्स के पास नहीं लाते हैं। डा. रमा वालिया की माने तो इन मामलों में बच्चों की हाइट काफी कम रह जाती है, साथ ही उनकी बोन्स भी ऩॉर्मल बच्चों के मुकाबले कमजोर होती है। जल्दी प्यूबर्टी जहां सही नहीं है वहीं लेट प्यूबर्टी आना भी सहीं नहीं है। 10 से 12 साल में लड़कों में दाड़ी मूंछ व लड़कियों की बॉडी में भी बदलाव आने लगते हैं लेकिन जो कि सही उम्र है लेकिन अगर यह कइयों में यह उम्र निकल जाने के बाद भी प्यूबर्टी नहीं आती। इन मामलों में डाक्टर्स को खासकर एंडोक्राइनोलॉजी विभाग में चैक करवाने की जरूरत है। पी.जी.आई. में सवा 100 बच्चों की रजिस्टरी है जो इन डिसऑर्डर का सामना कर रहे हैं।