प्रताप बाजवा के साथ राजनीतिक जंग में जाखड़ बने थे कै. अमरेन्द्र के सारथी

Edited By swetha,Updated: 27 Apr, 2019 10:29 AM

partap singh bajwa and captain amarinder singh

कै. अमरेन्द्र से उभरे मतभेद के चलते 2019 के लोकसभा चुनावों में गुरदासपुर हलका से कांग्रेस प्रत्याशी सुनील जाखड़ की दिक्कतें बढ़ सकती हैं।

जालंधर(चोपड़ा):  कै. अमरेन्द्र से उभरे मतभेद के चलते 2019 के लोकसभा चुनावों में गुरदासपुर हलका से कांग्रेस प्रत्याशी सुनील जाखड़ की दिक्कतें बढ़ सकती हैं। गुरदासपुर से संबंधित पंजाब प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रधान व राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा अभी तक जाखड़ के प्रचार अभियान में शामिल नहीं हुए हैं। 2017 के पंजाब विधानसभा चुनावों से पूर्व कै. अमरेन्द्र सिंह व प्रदेश कांग्रेस प्रधान प्रताप सिंह बाजवा के बीच हुई राजनीतिक जंग में जाखड़ ही कै. अमरेन्द्र के सारथी बने थे। 

जिक्रयोग्य है कि 2012 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के उपरांत कांग्रेस हाईकमान ने प्रदेश कांग्रेस की कमान कै. अमरेन्द्र से लेकर प्रताप बाजवा के हाथों में सौंप दी थी। परंतु 2017 के चुनावों के दौरान कै. अमरेन्द्र ने प्रधानगी को लेकर बाजवा के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद कर लिया। कै. अमरेन्द्र ने उन्हें प्रदेश प्रधान न बनाने पर पार्टी नेतृत्व को अपने समर्थक कांग्रेस विधायकों के साथ अलग नई पार्टी बनाने तक की धमकी दे दी थी। इस दौरान पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता सुनील जाखड़ ने भी कै. अमरेन्द्र का खुलकर साथ दिया था। 2017 के चुनावों को देखते हुए दबाव में आते हुए कांग्रेस हाईकमान ने बाजवा के स्थान पर कै. अमरेन्द्र को पंजाब कांग्रेस का प्रधान बनाया। 

विधानसभा चुनावों में अबोहर विधानसभा हलका से हार का सामना करने वाले जाखड़ का राजनीतिक भविष्य एक तरह से अंधकारमय हो गया था परंतु पंजाब में 117 हलकों में से 77 सीटें जीत कर मुख्यमंत्री बने कै. अमरेन्द्र ने जाखड़ का हाथ थामा और उन्हें अपने स्थान पर प्रदेश कांग्रेस प्रधान बनवाया। गुरदासपुर से सांसद विनोद खन्ना के अकस्मात् निधन के उपरांत हुए उपचुनाव में जाखड़ को टिकट दिला कर उन्हें राजनीतिक अर्श तक पहुंचा दिया। परंतु अब लोकसभा के आम चुनावों में जाखड़ की स्थिति दोधारी तलवार पर खड़े होने समान हो गई है। एक तरफ मुख्यमंत्री खेमा उनसे खासा नाराज है वहीं दूसरी तरफ प्रताप बाजवा गुट उनसे खासी दूरी बनाए हुए है। अगर मौजूद हालात इसी स्थिति में रहे तो जाखड़ के लिए जीत हासिल करना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। 

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