Edited By Vatika,Updated: 09 Jan, 2019 09:07 AM
आपने ‘लैला-मजनूं’ की कहानियां तो सुनी होंगी। हो सकता है मोहब्बत की यह फिल्म भी देखी हो। ‘शीरी-फरियाद’ के किस्से भी याद होंगे। लेकिन ‘पंजाब केसरी’ आपको ऐसी ‘पाकिस्तानी लैला’ से मिलाने जा रहा है जो ‘मजनूं’ की मोहब्बत में पाकिस्तान से बिना ‘पासपोर्ट’...
अमृतसर(सफर): आपने ‘लैला-मजनूं’ की कहानियां तो सुनी होंगी। हो सकता है मोहब्बत की यह फिल्म भी देखी हो। ‘शीरी-फरियाद’ के किस्से भी याद होंगे। लेकिन ‘पंजाब केसरी’ आपको ऐसी ‘पाकिस्तानी लैला’ से मिलाने जा रहा है जो ‘मजनूं’ की मोहब्बत में पाकिस्तान से बिना ‘पासपोर्ट’ और ‘वीजा’ जब चाहे तब चली आती है, कुछ घंटे भारत में रहती है और बाद में ‘सरहद’ लांघ वापस पाकिस्तान चली जाती है।
अमृतसर पुलिस में पहुंची शिकायत
सरहद पर सैनिक उसे रोक नहीं पाते, गुप्तचर एजैंसियां उसका ठिकाना तक नहीं ढूंढ पातीं। लेकिन इस बार पाकिस्तानी लैला के खिलाफ अमृतसर पुलिस में शिकायत हुई है। शिकायत में कहा गया है कि वह 24 घंटे पहले पाकिस्तान से आई थी, लेकिन अब पाकिस्तान नहीं लौट रही है। मामला कुछ यूं है जीरा दबाज (मजनूं) अमृतसर के रतन सिंह चौक स्थित चौकी वाली गली में रहता है। जोनसरी (लैला) पाकिस्तानी है। दोनों के बीच मोहब्बत ‘आसमां’ पर हुई और जमीं पर दोनों कुछ महीनों मिलने लगे। पहले तो दोनों सूरज अस्त होने के पहले अक्सर अमृतसर की छत पर मिलकर मोहब्बत की ‘गुटर गू-गुटर गू’ करते रहते थे।
7 जनवरी को अमृतसर आई पाकिस्तानी लैला
2019 में पाकिस्तानी लैला पहली बार 7 जनवरी को अमृतसर आई। शायद ‘हैप्पी न्यू ईयर’ कहने आई थी। लेकिन अब वह पाकिस्तान जाने का नाम ही नहीं ले रही है। हालांकि उसकी आवभगत हो रही है लेकिन मामला पाकिस्तान से जुड़ा था, ऐसे में बात अमृतसर पुलिस तक जा पहुंची। बता दें, दरअसल हम बात कर रहे थे पाकिस्तान की उस कबूतरी की जो पिछले कुछ समय से आसमां में उडऩे वाले भारतीय कबूतर के संग अमृतसर के रतन सिंह चौक स्थित चौकी वाली गली निवासी बौबी के घर की छत पर आने लगी थी। वह अक्सर सुबह आती और शाम होने से पहले उड़ जाती थी लेकिन इस बार जब नहीं गई तो पुलिस तक बात पहुंच गई।
‘पंछी-नदियां-पवन के झोंके कोई सरहद इन्हें न रोके’
2000 में अभिषेक बच्चन की प्रदर्शित फिल्म ‘रिफ्यूजी’ में ‘पंछी, नदियां, पवन के झोंके कोई सरहद इन्हें न रोके’ लिखने वाले जावेद अख्तर के गीत के बोल इस कबूतरी पर 18 साल बाद चरितार्थ होते हैं। ‘पंजाब केसरी’ से बातचीत करते हुए कबूतर पालने के शौकीन बौबी, लवली व पिंदा कहते हैं कि भारत-पाकिस्तान की सरहद पर अमृतसर बसा है। कबूतर जब उड़ाए जाते हैं तो अक्सर सरहद के उस पार चले जाते हैं तो उधर से इधर आ जाते हैं। पाकिस्तानी कबूतरों पर पाकिस्तान का नक्शा हरे रंग से बना दिया जाता है, यही उसकी पहचान है। भारत व पाक दोनों देशों में लाहौर व अमृतसर 2 ऐसे शहर ‘अखंड पंजाब’ में होते थे जहां हरेक साल कबूतर उड़ाने की प्रतियोगिता देखने दुनिया भर से लोग आया करते थे। दोनों देशों के बीच इंसानों के लिए पासपोर्ट-वीजा हैं लेकिन पक्षी सरहदों के गुलाम नहीं होते।
पाकिस्तानी ‘कबूतरी’ व भारतीय ‘कबूतर’ की अनोखी मोहब्बत
जीरा दबाज (मजनूं) व जोनसरी (लैला) यह इनके प्रजाति नाम हैं। प्रजाति नामों की उनके रंगों से पहचान होती है। ‘जीरा दबाज’ ऐसा ‘जांबाज’ है जो सबसे ज्यादा हवा में उड़ता है उधर जोनसरी (लैला) प्रजाति की ज्यादा पसंद ‘जीरा दबाज’ ही होते हैं। ‘जीरा दबाज’ 10 घंटे तक आसमां में उडऩे का साहस रखता है, जीरा दबाज पिछले दिनों जब हवा में उड़ा तो लौटते समय उसके साथ ‘जोनसरी’ भी थी। कई बार जोनसरी भारत आई लेकिन दिन में ही लौट जाती। जीरा दबाज व जोनसरी एक साथ ही दाना चुगते हैं और एक साथ ही पानी पीते हैं। दोनों की मोहब्बत पर इन्हें ‘लैला-मजनूं’ नाम दिया गया है। क्योंकि इनकी मोहब्बत अनोखी है।