सुनने की क्षमता भी खोने लगे ‘पंजाबी’, 8 फीसदी आबादी प्रभावित

Edited By Vatika,Updated: 12 Apr, 2018 01:40 PM

noise pollution in punjab

किसी समय अच्छी खुराक तथा अपनी तंदरुस्ती के लिए जाने जाते पंजाबी आज भागदौड़ वाली जीवनशैली के चलते सुनने की क्षमता खो रहे हैं। पहले ये समस्या बड़ी उम्र के लोगों में ही देखने को मिलती थी परन्तु आज बच्चे और युवा भी बहरेपन की समस्या से जूझ रहे हैं।...

बठिंडा (परमिंद्र): किसी समय अच्छी खुराक तथा अपनी तंदरुस्ती के लिए जाने जाते पंजाबी आज भागदौड़ वाली जीवनशैली के चलते सुनने की क्षमता खो रहे हैं। पहले ये समस्या बड़ी उम्र के लोगों में ही देखने को मिलती थी परन्तु आज बच्चे और युवा भी बहरेपन की समस्या से जूझ रहे हैं। बहरेपन की समस्या के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं। माहिरों के अनुसार आधुनिक जीवनशैली ने जहां हमें कई सुविधाएं दी हैं वहीं इससे हमें कई समस्याएं भी सौगात में मिल रही हैं। 


निम्न कारणों से होता है बहरापन 
ईयरफोन (ईयर प्लग्स) का अधिक प्रयोग करने से भी बहरेपन की समस्या अधिक हो रही है। वर्तमान में युवाओं में ईयरफोन के प्रयोग का चलन अधिक बढ़ा है। तेज ध्वनि ईयर ड्रम को क्षति पहुंचाकर उसे पतला कर देती है। ईयरफोन से निकलने वाली तेज ध्वनि के कारण शुरू में कानों की रोम कोशिकाएं अस्थायी रूप से क्षतिग्रस्त होती हैं। बाद में एक कान में सुनाई देना बंद हो जाता है लेकिन इसका अधिक प्रयोग करने से यह बहरेपन का कारण भी बन सकता है। इसके अलावा माथे पर चोट लगना, कान में मैल का जमा होना, कान पकना या किसी प्रकार की कान की बीमारी होना, कान में संक्रमण, कुनीन का अधिक मात्रा में सेवन से सुनने की क्षमता कम हो सकती है। किसी बीमारी के उपचार के दौरान दवाओं का अधिक सेवन करने के कारण भी यह रोग हो सकता है। 


बच्चे सुनेंगे नहीं, तो बोलेंगे कैसे? 
यदि ब‘चे सुन नहीं पाएंगे तो बोलना भी नहीं सीख पाएंगे इसलिए ब‘चों के सुनने की क्षमता प्रभावित न हो, इसका ध्यान रखना बेहद जरूरी है। बहरेपन की समस्या आनुवांशिक भी हो सकती है, इसलिए ब‘चे के पैदा होने के कुछ दिनों बाद ही उसके सुनने की क्षमता की जांच जरूर करवानी चाहिए। इसके अलावा बच्चों को अधिक तेज म्यूजिक या अन्य आवाजों से दूर रखना चाहिए ताकि उसके कानों को कोई नुक्सान न पहुंचे। 

ध्वनि का स्तर अधिक होने के कारण बढ़ रही समस्या 
पिछले कुछ वर्षों से लोगों में बहरेपन की समस्या में काफी इजाफा हुआ है। पहले यह समस्या महज एक से दो फीसदी लोगों में होती थी, परन्तु आज पंजाब की 8 फीसदी आबादी इस समस्या से ग्रस्त है, जिनमें काफीसंख्या बच्चों और युवाओं की भी है। इसका मुख्य कारण हर जगह पर कानफोड़ू आवाजें, तेज संगीत, वाहनों व मशीनों का शोर है जो हम पूरा दिन सुनने को मजबूर हो जाते हैं। चिकित्सकों की मानें तो 100 डैसीबल तक की ध्वनि ही मनुष्य के लिए सुरक्षित है। 125 डैसीबल से ऊपर की तेज आवाज खतरनाक हो जाती है। गौरतलब है कि डी.जे. के म्यूजिक से निकलने वाली सामान्य आवाज 580 डैसीबल तक हो सकती है, इससे कान की परत तक फट सकती है।

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