मां के दावों पर कालख पोत रहे बेटे,फिर भी मुंह से निकलती है दुआ

Edited By Sonia Goswami,Updated: 12 May, 2018 05:41 PM

mothers day

भारतीय नारी आज भी बेटे के ही गुन गाती है। बेटियां चाहे चांद पर पहुंच चुकी हैं लेकिन वे बेटे को लेकर अकसर चिंतित रहती हैं। उनका मानना है कि बेटा घर की बुनियाद होता है जिसके कंधों पर घर की वागडोर चलती है।

जालंधर(सोनिया):  भारतीय नारी आज भी बेटे के ही गुन गाती है। बेटियां चाहे चांद पर पहुंच चुकी हैं लेकिन वे बेटे को लेकर अक्सर चिंतित रहती हैं। उनका मानना है कि बेटा घर की बुनियाद होता है जिसके कंधों पर घर की वागडोर चलती है। 


अकसर दावे करती मां कि मेरा बेटा मेरे हाथ का ही खाना पसंद करता है,मेरे धुले कपड़ों के अलावा उसे किसी और के धुले कपड़े पसंद नहीं आते, ये तक भूल जाती है कि उसका बेटा बड़ा हो चुका है। उसकी आजादी भरी लाईफ शुरु हो चुकी है। उसे खुद खाना आ गया है। वे बाहर अकेला जा सकता है। मां के इन्हीं दावों पर बेटा कालिख पोत रहा है। मां उसके इंतजार में रात भर बैठी रहती है लेकिन बेटा उसकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रहा। बेटे के पैदा होते ही मां की कसौटी शुरु हो जाती है क्योंकि वो एक अच्छा इंसान बने उसके लिए वो पूरा जीवन उसपर न्योछावर कर देती है बदले में उसे मिलता है एक अंधेरा कमरा जहां बैठ कर भी वे उसके लिए दुआ मांगती है। ये अंधेरा कमरा उसके घर का ही एक कोना या कोई वृद्ध आश्रम हो सकता है क्योंकि बेटा बड़ा होते ही उसकी संभाल को लेकर हाथ खड़े कर देता है। 

 

मां लोरी सुनाती नहीं थकती बेटे बात पुछने पर होने लगा गुस्सा

बचपन में जब बेटा कई तरह के सवाल करता है मां उसे उलट-पुलट कर जवाब देती है। चाहे उसे उसके प्रशन का उत्तर न भी आता हो वे उसे जवाब जरूर देती है। मां आज बूढ़ी हो चुकी है,उसे अपनी दवाईयों के लेबल दिखाई नहीं देते। बेटे से बार-बार पुछती है क्योंकि वे भूलने जो लगी है लेकिन आज के बेटे को उसका जवाब देना मुश्किल लगता है। क्योंकि वो बड़ा जो हो चुका है उसके पास मां से बढ़कर दफ्तर की जिम्मेदारी है। अगर वे दफ्तर की जिम्मेदारी नहीं संभालेगा तो घर कैसे चलेगा। ये बात उसकी मां ने ही उसे सिखाई है कि बेटा तेरे कंधे पर घर चलता है। मां की इसी बात को वो हर बार मोहरा बना इस्तेमाल करने लगा है। बचपन में मां तब तक लोरी गाती जब तक बेटा सो न जाता ,पर आज मां के बार-बार कुछ पूछने पर बेटे को गुस्सा आ जाता है।

 

अपने बच्चों के सामने मां बनी बोझ

जब बेटा बाप बन जाता है उसके लिए मां के मायने खत्म। यही हो रहा है आजकल। अपने बच्चों को लेकर बेटा ज्यादा सीरियस हो गया है। मां की सलाह देना उसे अच्छा नहीं लगता । मां की दखलअंदाजी भी उसे नागवार गुजरने लगी है। इतना ही नहीं उसे लगने लगा है कि मां का साया उसके बच्चों पर न पड़े इसलिए वे उसे वृद्ध आश्रम छोड़ आता है। जहां वे उसका पूरा खर्च देने को तैयार रहता है लेकिन उसे वक्त नहीं दे सकता। यही मां के जीवन के आखरी पड़ाव होते हैं जब उसे उसका साया छोड़ जाता है। तब भी मां उसे आगे बढ़ने की दुआ देता है। 

 

 

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