Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Dec, 2017 12:38 PM
राज्य में दवा कीमतों पर न तो सरकार का नियंत्रण है और न ही सरकार ने कभी इस मुद्दे पर गंभीर प्रयास किया है। जिससे मरीजों से रा’यभर में दवाओं के मनमाने दाम वसूले जा रहे हैं, मगर किसी भी विभाग का इन पर कोई नियंत्रण नहीं है। मरीजों को महंगी दवा से राहत...
जालंधर(रविंदर शर्मा): राज्य में दवा कीमतों पर न तो सरकार का नियंत्रण है और न ही सरकार ने कभी इस मुद्दे पर गंभीर प्रयास किया है। जिससे मरीजों से रा’यभर में दवाओं के मनमाने दाम वसूले जा रहे हैं, मगर किसी भी विभाग का इन पर कोई नियंत्रण नहीं है। मरीजों को महंगी दवा से राहत दिलवाने के लिए केंद्र सरकार ने कोशिश तो की मगर हकीकत यह है कि अब भी दवाइयों के उत्पादन मूल्य से सैंकड़ों प्रतिशत ज्यादा मुनाफा लिया जा रहा है। जो दवा रिटेल मैडीकल स्टोर पर 106 रुपए एम.आर.पी. पर बेची जा रही है, वही होलसेल स्टोर पर महज 23 रुपए में उपलब्ध करवाई जा रही है। इसका कारण यह है कि सरकार का सभी दवाइयों की कीमत पर नियंत्रण नहीं है।
नैशनल फार्मास्यूटिकल प्राइजिंग अथारिटी के मुख्यालय की जानकारी के मुताबिक ड्रग प्राइज कंट्रोल आर्डर 2013 में दवाइयों की एम.आर.पी. (अधिकतम खुदरा मूल्य) को लगातार कम किया जा रहा है। अब तक 822 कम्बीनेशन की एम.आर.पी. को नियंत्रित किया जा चुका है। अनिवार्य श्रेणी की अधिकतम दवाइयां इनमें शामिल हो चुकी हैं। जो दवाइयां मूल्य नियंत्रण से बाहर हैं, उनके निर्माता सालाना 10 फीसदी एम.आर.पी. बढ़ाकर बेचने को स्वतंत्र हैं। मरीजों को सस्ती दवाइयां मुहैया करवाने के लिए सरकार ने अपने स्तर पर सभी सिविल अस्पतालों में जैनेरिक दवाओं के काऊंटर खोले थे मगर इन जैनेरिक दवाओं के स्टोर की सरकार ने कभी सुध नहीं ली और यह स्टोर भी सफेद हाथी बन चुके हैं।
हर स्तर पर बंट रहा है कमीशन
दवा बाजार के पदाधिकारियों, होलसेलर्स और रिटेलर्स स्वीकार कर रहे हैं कि मनमानी एम.आर.पी. के कारण मरीजों को 400 से 500 गुणा अधिक पैसा देना पड़ रहा है। प्राइवेट अस्पतालों का हाल बेहद बुरा है। यहां मरीजों से इस कदर दवा के मनमाने दाम वसूले जाते हैं कि मरीज कंगाल तक हो जाता है। दरअसल दवाइयां लिखने से लेकर ग्राहक को बेचने तक में हर जगह कमीशन बंटता है। दवाइयों के विज्ञापन पर मोटी रकम खर्च की जाती है। जो डाक्टर दवा लिखता है उसे भी कमीशन दिया जाता है और जो रिटेलर दवा बेचता है उसे भी मोटा कमीशन और मुनाफा जाता है। इस कारण होलसेल रेट और एम.आर.पी. में अंतर रखा जाता है, ताकि हर स्तर पर मोटी कमाई की जा सके।
जैनेरिक ब्रांडेड की पहचान का कोई तरीका नहीं
मरीजों के हितों को ध्यान में रखकर लगातार जैनेरिक दवाइयां लिखने और उनका उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है लेकिननिजी मैडीकल स्टोर्स पर ये मरीजों तक नहीं पहुंच रही। प्राइवेट अस्पताल जैनेरिक दवाओं को ही मोटी रकम पर बेच रहे हैं और इन स्टोरों पर नजर रखने के लिए भी विभाग का कोई अधिकारी चौकस नहीं है। इसका कारण है कि जैनेरिक और ब्रांडेड दवाइयों में फर्क जानने- पहचानने का कोई तरीका नहीं है। ड्रग इंस्पैक्टरों से लेकर ड्रग कंट्रोलर तक इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि दोनों ही तरह की दवाइयों की पहचान करने में आम लोग ही नहीं, विभाग के अधिकारी तक सफल नहीं हो पाते, क्योंकि इन पर पहचान के लिए कुछ नहीं लिखा होता। उन पर कोई निशानी हो तो खरीदारों को राहत मिल सकती है।
एम.आर.पी. और होलसेल रेट में अंतर : सेहत मंत्री
सेहत मंत्री ब्रह्म मोहिंद्रा का कहना है कि दवाइयों के एम.आर.पी. और होलसेल रेट में अंतर है। दवाइयों का मूल्य नियंत्रण एन.पी.पी.ए. करता है। हाल ही में कुछ दवाइयों के मूल्य कम किए गए हैं। राज्य स्तर पर गुणवत्ता और दूसरे पक्षों पर जांच होती है। ब्रांडेड और जैनेरिक के अंतर के लिए कोई पहचान नहीं होती। सरकार ने अपने स्तर पर जैनेरिक स्टोर सभी सिविल अस्पतालों में खोले हैं। सरकार गंभीरता से इन स्टोरों और प्राइवेट अस्पतालों पर नजर रख रही है और इस दिशा में आने वाले दिनों में कुछ गंभीर प्रयास भी किए जाएंगे।