कैसे होगा लुधियाना प्रदूषण मुक्तः अभी तक नहीं लग पाए CETP के बर्बाद हुए 40 करोड़

Edited By Anjna,Updated: 27 Jun, 2018 08:44 AM

ludhiana pollution free

प्रदूषण को लेकर पंजाब सरकार की गंभीरता केवल कागजों में ही सीमित है। लुधियाना इंडस्ट्रीयल जोन होने के कारण विश्व भर में सबसे ज्यादा प्रदूषित होने वाला शहर प्रचलित हो रहा है। लेकिन कोई भी सरकार या उसके सरकारी अदारे पिछले 10 सालों में प्रदूषण की असली...

लुधियाना(धीमान): प्रदूषण को लेकर पंजाब सरकार की गंभीरता केवल कागजों में ही सीमित है। लुधियाना इंडस्ट्रीयल जोन होने के कारण विश्व भर में सबसे ज्यादा प्रदूषित होने वाला शहर प्रचलित हो रहा है। लेकिन कोई भी सरकार या उसके सरकारी अदारे पिछले 10 सालों में प्रदूषण की असली समस्या को नहीं ढूंढ पाए हैं। हर संबंधित विभाग अपने बचाव के लिए दूसरे विभाग को जिम्मेदार ठहरा देता है और असली गाज इंडस्ट्री पर आकर गिर रही है।

डाइंग इंडस्ट्री जिसमें सबसे ज्यादा पानी का इस्तेमाल होता है, उसके लिए पिछले 10 सालों से कामन एफुलैंट ट्रीटमैंट प्लांट (सी.ई.टी.पी.) लगाने की योजना पंजाब सरकार की ओर से पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने दी। इस पर काम भी शुरू हुआ और इंडस्ट्री का 40 करोड़ भी लग गया। लेकिन आज यह प्लांट है कहां किसी को कुछ नहीं पता। लुधियाना में डाइंग इंडस्ट्री के लिए बहादुरके रोड, ताजपुर रोड और फोकल प्वाइंट में 155 करोड़ रुपए की लागत से 3 सी.ई.टी.पी. लगने थे।  

इस कुल प्रोजैक्ट में पंजाब सरकार और केंद्र सरकार ने सबिसडी भी देनी थी और कुछ पैसा इंडस्ट्री ने अपनी ओर से लगाना था, जो लग चुका है। सवाल यह है कि जब डाइंग यूनिटों ने अपनी फैक्टरियों में निजी एफुलैंट ट्रीटमैंट प्लांट (ई.टी.पी.) लगा रखे हैं तो सी.ई.टी.पी. की जरूरत क्यों पड़ी, क्या डाइंग इंडस्ट्री अपने निजी ई.टी.पी. नहीं चला रही है जिस कारण बुड्ढे नाले के जरिए गंदा पानी सतलुज दरिया में जा रहा है।  इस सवाल पर डाइंग इंडस्ट्री कहती है कि उसने लाखों रुपए लगाकर ई.टी.पी. लगाए है और उसके जरिए पानी साफ  करके बुड्ढे नाले में डालते हैं जबकि प्रदूषण बोर्ड कहता है कि डाइंग इंडस्ट्री बोर्ड के पैरामीटर के मुताबिक पानी साफ  नहीं कर रही। परंतु इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है कि अगर ई.टी.पी. सही चल रहे हैं तो इंडस्ट्री सी.ई.टी.पी. की सदस्य क्यों बन रही है।

दूसरी ओर यदि बोर्ड की बात को मान लिया जाए तो पैरामीटर के मुताबिक इंडस्ट्री पानी ट्रीट नहीं कर रही है तो बोर्ड ने डाइंग चलाने की कंसैंट क्यों दी। फिर 10 सालों में सी.ई.टी.पी. को लगवाने में प्रदूषण बोर्ड नाकाम क्यों रहा और यदि ई.टी.पी. नहीं चल रहे तो प्रदूषण बोर्ड  ने इंडस्ट्री को बिना ट्रीट किया पानी बुड्ढे नाले में फैंकने की इजाजत किसके इशारे पर दी। अगर बोर्ड ने इजाजत नहीं दी तो पानी कहां जा रहा है। उपरोक्त सवालों से साफ  होता है कि कमी प्रदूषण बोर्ड की है और वह अपनी कमी को छुपाने के लिए डाइंग इंडस्ट्री को बलि का बकरा बना रहा है। इसका हल कैसे निकलेगा इसका जवाब अभी तक स्पष्ट रूप से किसी के पास नहीं है। सवाल यह भी है कि कहीं सी.ई.टी.पी. की आड़ में जेबें गर्म करने का खेल तो नहीं खेला जा रहा।

प्रदूषण खत्म करने के लिए नहीं, अफसर अपनी सुविधा के लिए लगवा रहे हैं सी.ई.टी.पी. 
लुधियाना के चीफ  इंजीनियर प्रदीप गुप्ता कहते है कि जगह-जगह जाकर पानी की मोनिटरिंग करना आसान नहीं है। इसलिए सी.ई.टी.पी. लगाने की जरूरत है। यानी साफ है कि बोर्ड के अधिकारी प्रदूषण खत्म करने के लिए नहीं बल्कि अपनी सुविधा के लिए इंडस्ट्री और सरकार का करोड़ों रुपए बर्बाद करवाकर आराम से एयरकंडीशन कमरों में बैठना चाहते हैं। गुप्ता से जब पूछा गया कि निजी तौर पर ई.टी.पी. लगे हैं और इंडस्ट्री फिर भी गंदा पानी सीवरेज में डाल रही है तो उन्होंने कहा कि छोटी इंडस्ट्री के पास टैक्नीशियन नहीं है। यानी उनकी बात से स्पष्ट होता है कि डाइंग इंडस्ट्री का पानी गंदा है और उन्होंने इसे सीवरेज में डालने की सरकारी इजाजत दे रखी है।

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