अलर्ट: हैवी मैटल व कैमिकल युक्त पानी से बेऔलाद रह सकती है आने वाली पीढ़ी

Edited By Vatika,Updated: 13 Aug, 2018 11:49 AM

ludhiana buddha nala

लुधियाना के बुड्ढे नाले में पिछले 12 साल से गिर रहे हैवी मैटल व कैमिकल युक्त पानी के कारण आने वाली पीढ़ी बेऔलाद रह सकती है जोकि एक गंभीर चिंता का विषय है, लेकिन सरकार या पंजाब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और नगर निगम लुधियाना के अफसरों को इस बात की कोई...

लुधियाना(नितिन धीमान): लुधियाना के बुड्ढे नाले में पिछले 12 साल से गिर रहे हैवी मैटल व कैमिकल युक्त पानी के कारण आने वाली पीढ़ी बेऔलाद रह सकती है जोकि एक गंभीर चिंता का विषय है, लेकिन सरकार या पंजाब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और नगर निगम लुधियाना के अफसरों को इस बात की कोई परवाह नहीं है कि आने वाली पीढ़ी को किन हालात में जीना पड़ेगा।

PunjabKesariबुड्ढे नाले के प्रदूषण के कारणों को जानने के लिए पंजाब स्टेट ह्यूमन राइट्स कमीशन ने प्रदूषण की एक्सपर्ट कमेटी से वर्ष 2006 में एक रिपोर्ट तैयार करवाई थी जिसमें पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डा. के.एस. औलख, बाबा फरीद यूनिवर्सिटी ऑफ  हैल्थ साइंसिस के पूर्व वाइस चांसलर डा. एल.एस. चावला और दयानंद मैडीकल कालेज के प्रिंसीपल राजू सिंह छिन्ना ने मिलकर नैशनल एन्वायरनमैंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीच्यूट (नीरी) के सहयोग से प्रदूषण की जांच की थी। 

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इस कमेटी ने अलग-अलग पैरामीटर के आधार पर बुड्ढे नाले में गिर रहे पानी को जांचा और पाया कि इसमें इलैक्ट्रोप्लेटिंग इंडस्ट्रीज से निकलने वाले हैवी मैटल्स-क्रोम, निक्कल व लैड आदि और डाइंग से निकलने वाले कैमिकल इंसानी शरीर के लिए काफी घातक हैं। इन पर जल्द ही रोक न लगी तो आने वाली पीढ़ी बेऔलाद रह सकती है। एक्सपर्ट्स की टीम ने रिपोर्ट में यह भी लिखा कि इनके सीधे प्रभाव से बच्चे गर्भ में भी मर सकते हैं और अगर पैदा हो गए तो वे अपंग होंगे। इतनी खतरनाक चेतावनी के बाद भी न तो सरकार जागी और न ही सरकार का पंजाब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और नगर निगम के अधिकारी। सब ने कागजों में रिपोर्ट बनाकर सिर्फ  हाईकोर्ट को गुमराह करने के अलावा कोई काम नहीं किया। उधर, इंडस्ट्री भी पैसे कमाने के चक्कर में लोगों की जान से खेलने में पीछे नहीं हट रही।

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रिपोर्ट आने के 12 साल बाद भी जहरीले पानी का बुड्ढे नाले में गिरना जारी
रिपोर्ट आने के 12 साल बाद भी बुड्ढे नाले में इलैक्ट्रोप्लेटिंग और डाइंग इंडस्ट्री का जहरीला पानी गिरने से नहीं रुका। ये दोनों इंडस्ट्रीज बिना ट्रीट किए पानी को चोरी-छिपे बुड्ढे नाले में डाल रही हैं। पी.पी.सी.बी. के अधिकारी सब जानते हुए भी जेबें गर्म करने के चक्कर में इन्हें देखकर भी नजरअंदाज कर रहे हैं। इसके लिए मजबूरन नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को पिछले सप्ताह एक आर्डर पास करना पड़ा कि प्रदूषण की मॉनीटरिंग के लिए एक कमेटी गठित की जाए जिसमें पी.पी.सी.बी., सी.पी.सी.बी. और राजस्थान पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अधिकारी पर्यावरणविद् संत सीचेवाल के सहयोग से एक टीम बनाएं। यह टीम ट्रिब्यूनल को बुड्ढे नाले की स्थिति की सही जानकारी देगी। अभी इस टीम ने बुड्ढे नाले की स्थिति जानने के लिए अगले सप्ताह लुधियाना आना है। 

बोर्ड के पास 291 डाइंग रजिस्टर्ड जबकि 400 के करीब हैं डाइंग यूनिट 
पी.पी.सी.बी. के पास 291 डाइंग यूनिट रजिस्टर्ड हैं जबकि शहर में इनकी संख्या 400 के करीब है। शेष 110 डाइंग कहां पानी डाल रही हैं, इसकी जानकारी देने में पी.पी.सी.बी. नाकाम है। इसका खुलासा विधायक संजय तलवाड़ ने किया। उनके मुताबिक उक्त डाइंग यूनिट सीधा बुड्ढे नाले में कैमिकल युक्त पानी को डिस्चार्ज कर रहे हैं। डाइंग्स ने नगर निगम से पानी की कम मात्रा दिखाकर सीवरेज में ट्रीटेड पानी छोडऩे की इजाजत ले रखी है जबकि पानी काफी अधिक मात्रा में छोड़ा जा रहा है, वो भी बिना ट्रीट किए। इतना ही नहीं पी.पी.सी.बी. के पास शहर में डाइंगों का सही आंकड़ा भी नहीं है। विधायक तलवाड़ की बात की जब पंजाब केसरी ने छानबीन की तो सामने आया कि बहादुरके रोड, राहों रोड, ताजपुर रोड, फोकल प्वाइंट में 190 डाइंग यूनिट हैं जो 105 एम.एल.डी. (मिलियन लीटर डेली) पानी के लिए ट्रीटमैंट प्लांट लगा रहे हैं। इसके अलावा इंडस्ट्रीयल एरिया ए में करीब 27 यूनिट हैं जो पूरी तरह आधुनिक तकनीक से लैस हैं। इसके अतिरिक्त 14 बड़ी डाइंग इंडस्ट्रीज हैं बाकी बोर्ड के मुताबिक विभिन्न जगहों पर डाइंग यूनिट लगे हुए हैं। विधायक तलवाड़ और बोर्ड के आंकड़ों में आ रहा फर्क ही जताता है कि बोर्ड को सही तरीके से पता ही नहीं कि कितने यूनिट हैं और वह कितना पानी छोड़ते हैं। बोर्ड पर यह बहुत बड़ा सवालिया निशान है कि जब प्रदूषण की असलियत ही नहीं मालूम तो वह इसे रोकने के लिए क्या काम कर रहा होगा। 

प्रदूषण बोर्ड के पास इलैक्ट्रोप्लेटिंग इंडस्ट्री का सही डाटा  नहीं
लुधियाना में कितने इलैक्ट्रोप्लेटिंग यूनिट हैं इसका डाटा भी सबके पास अलग-अलग है। प्रदूषण बोर्ड के मुताबिक उनके पास लुधियाना की इलैक्ट्रोप्लेटिंग इंडस्ट्री के 841 यूनिट रजिस्टर्ड हैं। इसी तरह इलैक्ट्रोप्लेटिंग का पानी सी.ई.टी.पी. तक पहुंचाने वाली लुधियाना एफुलैंट ट्रीटमैंट सोसायटी के पास 1056 यूनिट की लिस्ट है। प्लांट में रोजाना करीब 40 लाख लीटर पानी ट्रीट कर उसे दोबारा इस्तेमाल करने लायक बनाया जाता है। यानी 215 यूनिट पी.पी.सी.बी. के साथ रजिस्टर्ड नहीं हैं और उन्होंने सिर्फ  लेट्स के साथ रजिस्ट्रेशन करवाकर पानी को बुड्ढे नाले में फैंकना शुरू कर दिया है। लेट्स की रजिस्ट्रेशन को इलैक्ट्रोप्लेटिंग कारोबारी पी.पी.सी.बी. की कंसैंट से ’यादा महत्व देते हैं। पी.पी.सी.बी. ने भी कभी लेट्स की सूची जांचने की जहमत नहीं उठाई। प्लांट तक पानी पूरा पहुंच रहा है या नहीं इसकी जानकारी बोर्ड के पास कैसे होगी जबकि उसके पास इलैक्ट्रोप्लेटिंग यूनिट का सही आंकड़ा तक नहीं है। यानी कुल मिलाकर 2006 में एक्सपटर््स ने जो रिपोर्ट तैयार की थी उसकी स्थिति में आज तक कोई बदलाव नहीं आया।

जैड.एल.डी. के मामले में बोर्ड ने कोर्ट को किया गुमराह
पंजाब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अधिकारियों ने आम जनता के साथ-साथ पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट को भी जीरो लिक्यूड डिस्चार्ज के मामले में गुमराह किया है। कैदी निर्भय सिंह वाले केस में वर्ष 2005 से ही बोर्ड कोर्ट को कहता आ रहा है कि जमीनी पानी को बचाने के लिए जैड.एल.डी. तकनीक आधारित डाइंग व इलैक्ट्रोप्लेटिंग इंडस्ट्री के लिए प्लांट लगाए जाएंगे जबकि जमीनी हकीकत है कि शहर में लगने वाले डाइंगों के तीनों प्लांट जैड.एल.डी. तकनीक पर नहीं बनाए जा रहे। इसलिए प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है।

प्रदूषण के खिलाफ इस तरह जुड़ें मुहिम से
पंजाब केसरी द्वारा प्रदूषण के खिलाफ शुरू की गई मुहिम से सैंकड़ों लोग जुड़ रहे हैं। इस मुहिम से जुडऩे व सुझाव देने के लिए  support@punjabkesari.in पर सम्पर्क करें। 

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