पंजाब में मोदी समर्थक लहर; बसपा कैडर बिगाड़ेगा कै. अमरेन्द्र के जीत के दावों का गणित

Edited By Vatika,Updated: 23 May, 2019 07:29 AM

lok sabha election 2019

लोकसभा 2019 के चुनावों में कांग्रेस के जीत हासिल करने के दावों का गणित बिगड़ता दिख रहा है। पंजाब में प्रधानमंत्री मोदी के समर्थन में अनदेखी सूक्ष्म लहर, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का पंजाब में पुन: उठ खड़ा होना और अपेक्षा के विपरीत कम मतदान का होना...

जालंधर (चोपड़ा): लोकसभा 2019 के चुनावों में कांग्रेस के जीत हासिल करने के दावों का गणित बिगड़ता दिख रहा है। पंजाब में प्रधानमंत्री मोदी के समर्थन में अनदेखी सूक्ष्म लहर, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का पंजाब में पुन: उठ खड़ा होना और अपेक्षा के विपरीत कम मतदान का होना इसके मुख्य कारण हैं। पंजाब में चुनाव प्रचार के दौरान बदले राजनीतिक समीकरणों के कारण मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह के 13 लोकसभा हलकों को फतह करने के दावों और पार्टी के आकलन की अपेक्षा विपरीत परिणाम सामने आ सकते हैं।

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प्रदेश में मतदान के दौरान विशेषकर हिंदुओं में मोदी समर्थक भावनाओं का प्रवाह होना, दलित वर्गों में बसपा का पुन: पैठ जमाना, राज्य में कांग्रेस की जीत की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है। चूंकि विगत दशकों से कहा जाता रहा है कि पंजाब में हिंदू और दलित कांग्रेस के समर्थक हैं। यदपि कांग्रेस अपने परम्परागत वोट बैंक को साथ रखने में कामयाब रही है मगर प्रधानमंत्री मोदी की लहर व राष्ट्रवाद के नारे ने हिंदू मतदाताओं की विचारधारा को प्रभावित किया है जिससे अधिकांश हिंदू वोट अकाली-भाजपा गठबंधन के उम्मीदवारों के पक्ष में गए हैं।एक लंबे अर्से के बाद बसपा ने जालंधर के साथ कुछ हद तक होशियारपुर में दलित मतदाताओं की काफी संख्या को प्रभावित करके अपने साथ मिला लिया है।

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इससे कांग्रेस को दोहरी मार झेलनी पड़ सकती है। ये दोनों महत्वपूर्ण लोकसभा हलके चुनावों की घोषणा से ही कांग्रेस के पक्ष में आते दिखाई दे रहे थे परंतु मौजूदा समीकरणों से जहां अकाली-भाजपा गठबंधन को लाभ हो सकता है वहीं इस रूझान ने दोआबा में दोनों निर्वाचन क्षेत्रों के कांग्रेसी उम्मीदवारों के लिए खतरा पैदा कर दिया है। शुरूआती दौर में कांग्रेस का इन दोनों निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस की निर्णायक बढ़त लेती दिखाई देती थी। मगर दलित वोटों का एक बड़ा वर्ग बसपा की और हिंदू मतदाताओं को एक वर्ग अकाली-भाजपा गठबंधन की ओर जाने से यहां मुकाबला बेहद करीबी और कठिन बन गया लगता है। लुधियाना और संगरूर हलकों में भी अकाली उम्मीदवार महेशइंद्र सिंह ग्रेवाल और परमिन्द्र सिंह ढींडसा के भी मैदान में स्थिति मजबूत होने की संभावनाएं दिख रही है।

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इन दोनों हलकों में भी त्रिकोना मुकाबला होना बताया जाता है और इसका कारण भी मोदी समर्थक भावनाओं का उभरना माना जा रहा है जोकि चुनाव अभियान के अंतिम दिनों में साफ दिखाई दिया अन्यथा ग्रेवाल और ढींडसा दोनों को कमजोर उम्मीदवार के तौर मानते हुए उन्हें तीसरे स्थान पर बताया जाता था। इसी प्रकार अमृतसर में अपेक्षाकृत कम मतदान होने और प्रधानमंत्री मोदी के पक्ष में बनी भावनाएं अंतिम परिणाम पर अनिश्चितता के बादल छाए हुए हैं। यदपि कांग्रेस उम्मीदवार गुरजीत सिंह ओजला लगातार जीत का दावा कर रहे है। पंजाब में 13 सीटों के मामले में अंतिम परिणाम चाहे कुछ भी हो, मगर अकाली-भाजपा गठबंधन को 2014 के लोकसभा चुनाव व 2017 के विधानसभा चुनावों की तुलना में मतदाताओं को अधिक समर्थन हासिल होने की संभावना है। जिस कारण पिछले चुनावों की भविष्यवाणियों की भांति अब की बार भी सही आकलन की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती परंतु जो भी हो प्रदेश की कुछ लोकसभा सीटों पर चुनाव परिणाम अंतिम समय में हैरतंगेज साबित होने की प्रबल संभावना बन चुकी है। 

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