3 लोकसभा हलके, जहां दशकों से कांग्रेस के नहीं टिके पैर

Edited By swetha,Updated: 09 Apr, 2019 12:56 PM

lok sabha election 2019

देश में 17वीं लोकसभा चुनावों के लिए सभी पार्टियां दमखम लगा रही हैं।

मलोट(जुनेजा): देश में 17वीं लोकसभा चुनावों के लिए सभी पार्टियां दमखम लगा रही हैं। यह चुनाव पंजाब में मई में होने जा रहे हैं। इसमें दोनों प्रमुख दल कांग्रेस व अकाली-भाजपा गठबंधन के अतिरिक्त नए गठजोड़ अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। अब तक हुए चुनावों के इतिहास पर नजर दौड़ाए तो अधिकतर सीटों पर मुकाबला अकाली दल गठबंधन व कांग्रेस पार्टी के बीच होता है। पर पंजाब के 3 लोकसभा हलके ऐसे हैं, जहां दशकों से कांग्रेस पार्टी के पैर नहीं टिके। शायद इसलिए ही दोनों प्रमुख गुटों द्वारा इन सीटों पर उम्मीदवार की घोषणा करने के लिए देरी की जा रही है।

इन प्रमुख सीटों पर ऐसा है कांग्रेस का इतिहास

इतिहास देखें तो पता चलता है कि हर लोकसभा चुनाव में बनते-बिगड़ते समीकरणों कारण अब तक कांग्रेस की पंजाब में लोकसभा मतदान में 1977 और 1998 में सबसे बुरी कारगुजारी रही, तब उसे किसी सीट पर भी जीत हासिल नहीं हुई थी। पार्टी का बेहतर प्रदर्शन 1971 में 10 सीटों पर जीत और सबसे बेहतर 1992 में 12 सीटों पर जीत हासिल करने का था। इस बार मुख्य विरोधी पार्टी अकाली दल की बेअदबी मामले में साख कम होने तथा आम आदमी पार्टी में बनी गुटबंदी के कारण कांग्रेस पार्टी के लिए हालात अनुकूल लगते हैं। इसलिए समझा जा रहा है कि अगर कांग्रेस पार्टी का उम्मीदवारों का सही चयन और अंदरूनी विरोधियों पर काबू रहा तो वह अधिक से अधिक सीटें जीतकर 1992 वाला इतिहास दोहरा सकती है। शायद इसलिए ही दोनों मुख्य गुटों और कांग्रेस की तरफ से खासकर इन सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान करने में देरी की जा रही है, जिन सीटों पर कांग्रेस के लिए रास्ता कभी आसान नहीं रहा।

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संसदीय सीट फिरोजपुर 
फिरोजपुर ऐसा लोकसभा हलका है, जहां 34 साल पहले 1985 में हुए चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी को जीत नहीं नसीब हुई। 1969 के बाद हुए कुल 13 चुनाव में से 7 बार अकाली दल, 3 बार कांग्रेस, 2 बार बसपा व 1 बार अकाली दल मान के आजाद उम्मीदवार ने जीत हासिल की है। इस कारण इस हलके पर अकाली दल का हाथ ज्यादा समय ऊपर रहा है। पंजाब में 1991 में कांग्रेस पार्टी ने राज्य में 13 में से 12 सीटों पर जीत हासिल की थी परंतु फिरोजपुर से 1991 में भी कांग्रेस के उम्मीदवार की हार हुई थी। यहीं बसपा के मोहन सिंह फलियावाला ने जीत हासिल की थी। अंतिम बार यहां 1985 में कांग्रेस के गुरदयाल सिंह ढिल्लों ने अकाली दल के इन्द्रजीत सिंह को हराया था। अब 34 सालों बाद जब अकाली दल की स्थिति राज्य में बहुत मजबूत नहीं है, तो यदि कांग्रेस के सर्वप्रवानित नेता को टिकट मिले तो इस सीट पर कांग्रेस की वापसी हो सकती है।

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संसदीय सीट बठिंडा
बठिंडा सीट से भी 1991 के बाद कांग्रेस को जीत नसीब नहीं हुई। इस सीट पर 1952 व 1957 में 2-2 उम्मीदवार जनरल तथा रिजर्व के चुनाव होते रहे तथा कांग्रेस विजेता रही परंतु 1961 में यह सीट अकाली दल के धन्ना सिंह गुलशन ने हथिया ली। अधिक समय अकाली दल का उम्मीदवार इस सीट से विजेता रहा, परंतु 1971 व 1999 में सी.पी.आई. का भान सिंह भोरा तथा 1980 व 1991 में कांग्रेस के उम्मीदवार विजेता रहे। 1991 के बाद लगातार 1996, 1998, 2004, 2009, 2014 में अकाली दल के उम्मीदवार ही जीत हासिल करते रहे। इस कारण पिछले 28 सालों से यह सीट कांग्रेस पार्टी  के हाथ से निकल रही है। इस बार अब तक भले दोनों पार्टियों ने अपने उम्मीदवार घोषित नहीं किए परंतु संभावना है कि अकाली दल द्वारा अब तीसरी बार केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ही उम्मीदवार हो जिनके मुकाबले कोई घाग कांग्रेसी मैदान में उतर सकता है।

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संसदीय सीट श्री खडूर साहिब
1952 से लेकर 2008 तक पहले यह तरनतारन व बाद में कुछ बदलाव से बने श्री खडूर साहिब हलके में कुल 16 चुनावों में अकाली दल ने 8 बार, कांग्रेस ने 6 बार, यूनाइटिड अकाली दल व मान अकाली दल ने 1-1 बार चुनाव जीता। 1957 से 1971 तक हुए 5 चुनाव कांग्रेस ने जीते, परंतु उसके बाद यह हलका अकाली दल के हाथ चला गया। 20 सालों बाद एक चुनाव कांग्रेस के सुरिंदर सिंह कैरों ने जीता, परंतु उसके बाद कांग्रेस को जीत नसीब नहीं हुई। अब 28 सालों बाद बने नए समीकरण के तहत कांग्रेस ने मांझा के धल्लेदार नेता जसबीर सिंह डिम्पा को मैदान में उतारा है, जिनका मुकाबला अकाली दल की बीबी जागीर कौर व पंजाबी एकता पार्टी के परमजीत कौर  से है। परंतु इस बार बदले हालातों कारण इन तीनों सीटों पर जीतकर कांग्रेस 1992 वाला इतिहास दोहराना चाहती है। इसलिए श्री खडूर साहिब से कांग्रेस के उम्मीदवार का ऐलान हो चुका है परंतु बठिंडा व फिरोजपुर से उम्मीदवार उतारते समय कांग्रेस हाईकमान अकाली दल के पत्ते जरूर देखेगी।

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