मतदान के लिए लंबा इंतजार,प्रत्याशियों को सता रही अधिक खर्च की चिंता

Edited By swetha,Updated: 08 Apr, 2019 12:35 PM

lok sabha election 2019

पंजाब की लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ने वाले सभी प्रमुख दलों के प्रत्याशियों के लिए यह चुनाव इस बार ‘महंगा’ पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि आचार संहिता लागू होने के 70 दिन बाद पंजाब में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होगा। हालांकि पड़ोसी राज्य हरियाणा में 12 मई...

चंडीगढ़(रमनजीत सिंह):पंजाब की लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ने वाले सभी प्रमुख दलों के प्रत्याशियों के लिए यह चुनाव इस बार ‘महंगा’ पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि आचार संहिता लागू होने के 70 दिन बाद पंजाब में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होगा। हालांकि पड़ोसी राज्य हरियाणा में 12 मई को चुनाव संपन्न हो जाएगा, जबकि पंजाब को 19 मई तक मतदान के लिए इंतजार करना होगा।

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प्रत्याशियों को यह 7 दिन इस लिहाज से भी भारी पड़ेंगे। नामांकन से लेकर मतदान का दिन आने के दौरान ग्रामीण अपने खेतों में फसल की कटाई और उत्पादन को मंडियों में बेचने में व्यस्त रहेंगे। इस कारण मतदान से पूर्व अहम माने जाने वाले दिनों में बड़ी रैलियों में भीड़ जुटाने का संकट बना रहेगा। चुनाव प्रचार के मामले में पहले से ही महंगे माने जाने वाले पंजाब में इस बार प्रत्याशियों को अपनी जेबें और ज्यादा ढीली करनी पड़ेंगी। कई सीटों पर प्रत्याशी घोषित हो चुके हैं। तकरीबन सभी पार्टियां इसी सप्ताह अपने बाकी बचे प्रत्याशियों का ऐलान करने के प्रयास में हैं ताकि उन्हें प्रचार का पूरा समय हासिल हो सके।

चुनाव तारीख की घोषणा होते ही लगने लगता है समर्थकों का तांता 
चुनाव के ऐलान के बाद से ही उनके पास समर्थकों का तांता लगना शुरू हो जाता है और कई तरह के ऐसे खर्चे शुरू हो जाते हैं जो दरकिनार नहीं किए जा सकते। इसमें समर्थकों की आवभगत से लेकर प्रचार के दौरान उनके खान-पान का इंतजाम करना तक शामिल है। चुनाव आयोग द्वारा इस बार बढ़ाई गई सख्ती के मद्देनजर प्रत्याशियों को इस बात की भी चिंता अधिक सता रही है कि कहीं उनके अपने ही समर्थकों की वजह से उनका सांसद बनने का ख्वाब खटाई में न पड़ जाए क्योंकि इस बार चुनाव आयोग द्वारा सी-विजिल नामक एप भी जारी की हुई है जिसके जरिए कोई भी वोटर किसी भी प्रत्याशी द्वारा की जा रही चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत कर सकता है। ऐसे में चुनाव आयोग से छिप-छिपाकर की जाने वाली समर्थकों की आवभगत भी खतरे से खाली नहीं रहेगी।     

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मतदाताओं को आकर्षित करना भी खर्च से ही जुड़ा
चुनाव प्रचार के लिए शहरी हलकों को छोड़कर अन्य लोकसभा हलकों में औसतन 800 से 1000 गांवों में पहुंच बनाना और मतदाताओं को आकर्षित करना भी खर्च से ही जुड़ा है। हालांकि कई बार समय कम होने के चलते कई-कई गांवों का कार्यक्रम एक ही कॉमन जगह आयोजित कर लिया जाता था, लेकिन इस बार प्रचार का समय ज्यादा मिलने से यह फॉर्मूला भी बदलना होगा, जिससे स्वाभाविक तौर पर खर्च में इजाफा होगा। चुनाव आयोग द्वारा इस बार हालांकि हर प्रत्याशी को चुनाव प्रचार के लिए 70 लाख रुपए खर्च करने की छूट दी गई है, लेकिन पंजाब के पिछले चुनावों को देखते हुए यह खर्च सीमा काफी कम पडऩे वाली है।
 
क्या है प्रत्याशियों की परेशानियों का सबब

  •  चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित कुल खर्च - 70 लाख।
  •  चुनाव आचार संहिता लागू होने से मतदान तक 70 दिन का समय।
  •  शहरी हलकों को छोड़ बाकी हलकों में 1000 गांवों तक पहुंच बनाना।
  •  एन्वायरनमैंट फ्रैंडली प्रचार सामग्री प्लास्टिक सामग्री से पड़ेगी महंगी।
  •  सी-विजिल जैसी मोबाइल एप हर हाथ में चुनाव आयोग का जासूस।
  •  फसल की कटाई और मंडीकरण का सीजन।

 
चुनावी रैलियों के लिए भी कड़ी मेहनत
इसके साथ ही, इस बार प्रत्याशियों को मतदान से पहले की जाने वाली चुनावी रैलियों के लिए भी कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी, क्योंकि अप्रैल-मई माह के दौरान पंजाब के ज्यादातर इलाकों में गेहूं की फसल की कटाई का काम चलता है। ऐसे में इलाके में अपना रसूख व समर्थन जताने के लिए की जाने वाली चुनावी रैलियों में भीड़ जुटाना भी प्रत्याशियों व राजनीतिक पार्टियों के लिए आसान नहीं होगा। 

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