लोकसभा चुनाव 2019ः 26 लाख किसान परिवार तय करेंगे जीत-हार

Edited By Vatika,Updated: 19 Mar, 2019 10:17 AM

lok sabha election 2019

पंजाब के करीब 26 लाख किसान परिवार लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों की जीत-हार तय करेंगे। बेशक कांग्रेस ने सत्ता में आते ही कर्ज माफी की सौगात देकर लुभाने की कोशिश की, लेकिन किसानों की खुदकुशी से जुड़ी घटनाएं मुश्किलें बढ़ाती रहीं। विपक्ष के पास चुनावी...

चंडीगढ़ (अश्वनी कुमार): पंजाब के करीब 26 लाख किसान परिवार लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों की जीत-हार तय करेंगे। बेशक कांग्रेस ने सत्ता में आते ही कर्ज माफी की सौगात देकर लुभाने की कोशिश की, लेकिन किसानों की खुदकुशी से जुड़ी घटनाएं मुश्किलें बढ़ाती रहीं। विपक्ष के पास चुनावी रैलियों में इस मुद्दे को लेकर हमला करने का मौका होगा। शिरोमणि अकाली दल नेताओं ने विधानसभा सत्र दौरान स्पष्ट भी कर दिया है कि किसानों की खुदकुशी के मामलों को जनता की अदालत में लेकर जाएंगे। इसी कड़ी में आम आदमी पार्टी, पंजाब डैमोक्रेटिक अलायंस के नेता भी कांग्रेस के खिलाफ मोर्चाबंदी करेंगे। कांग्रेस के लिए पेचीदा स्थिति यह भी है कि दो साल सत्तासुख भोगने के बाद भी अब तक पंजाब राज्य किसान नीति लागू नहीं कर पाई है। वह भी तब जबकि पंजाब राज्य किसान और खेत मजदूर आयोग ने जून, 2018 में ड्राफ्ट पॉलिसी सरकार के सुपुर्द कर दी थी। इसमें किसानों को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाने के साथ-साथ कर्जे के मकडज़ाल से बाहर निकालने के कई नुक्ते बताए गए हैं।

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8% कर्ज बढ़ा, 1.11 फीसदी बढ़ी पैदावार
किसान नीति में कर्जे की मूल वजह पर मंथन किया गया है। बताया गया कि पंजाब में किसानी कर्जे की रकम 8 फीसदी की दर से बढ़ी, लेकिन पैदावार में महज 1.11 फीसदी का ही इजाफा हुआ। नीति में बताया गया है कि पंजाब के पास 100 लाख एकड़ जमीन खेती के लायक है। नियामानुसार औसतन प्रति सीजन किसानों को 24,000 करोड़ के कम अवधि ब्याज वाले ऋण की सुविधा निर्धारित है, लेकिन बैंकों ने 60,000 करोड़ का कर्जा दे दिया। हैरत की बात यह है कि पंजाब में 26 लाख किसान हैं, लेकिन बैंकों ने करीब 40 लाख किसान क्रैडिट कार्ड जारी कर दिए हैं। यह तथ्य कर्जे की गुणवत्ता, उपयोग और निगरानी से जुड़ी प्रणाली की अपूर्णता को दर्शाते हैं। इसलिए किसान नीति में कर्जा प्रणाली में बड़े सुधार की बात कही गई है, साथ ही प्राकृतिक स्रोतों के संरक्षण पर भी जोर दिया गया है।

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2 साल: 1000 किसानों ने की खुदकुशी
वर्ष 2017 से अब तक करीब 1000 किसान आत्महत्या कर चुके हैं। जाहिर है कि आंकड़ा चुनावी रैलियों में जमकर गूंजेगा। ऐसा इसलिए भी है कि विधानसभा चुनाव से पहले जुलाई, 2016 में कैप्टन अमरेंद्र ने किसान खुदकुशी मामलों को लेकर तत्कालीन शिअद-भाजपा सरकार पर तीखा हमला करते हुए ट्वीट किया था कि यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि कोई भी किसान कर्जे की वजह से खुदकुशी न करे। इसके ठीक उलट, दो साल के कार्यकाल दौरान कांग्रेस कर्ज माफी की घोषणा के बावजूद किसानों की आत्महत्या से जुड़ी घटनाओं पर अंकुश नहीं लगा पाई है।

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किसानों के वोट पर सभी सियासी दलों की नजर 
राजनीतिक विशेषज्ञ भी मानते हैं कि कृषि प्रधान रा’य होने के कारण पंजाब में किसानों के मुद्दे चुनावी रैलियों में खूब गूंजते हैं। किसानों के मर्ज का सही इलाज सुझाने वाले सियासी दल को ही वोट देंगे। कर्ज माफी के बाद कांग्रेस काफी बेहतर स्थिति में है, लेकिन अभी भी कई मामले हैं जिन्हें सुलझाना बाकी है। खासतौर पर किसानों को कर्ज मुक्त बनाने के मसले पर सियासी दलों को गंभीरता से अपनी बात कहनी होगी। किसानों के लिए फसल मुआवजा सुनिश्चित करना होगा। लैंड लीज एक्ट बनाना होगा ताकि पट्टेदार, बंटाइदार किसानों को सहकारी बैंक से आसानी से कर्जा मिल सके। भूमिहीन किसानों को पशुपालन के लिए आसानी से धन मिल सके। वहीं, किसानों को जो कर्जा मिलता है उस पर नजर रखने के लिए ऐसा प्रशासनिक ढांचा बने कि ब्याज के मक्कडज़ाल में न उलझें। राजनीतिक दलों को आश्वस्त करना होगा कि पेचीदा कानूनों में संशोधन किया जाएगा ताकि मूल कर्जे की रकम दोगुनी से ज्यादा अदा न करें। आढ़तियों के कर्ज तले दबे किसानों के लिए वन टाइम सैटलमैंट पॉलिसी और मुकम्मल कर्ज माफी जैसे प्रावधान सुनिश्चित करने होंगे।

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