Edited By Vatika,Updated: 24 Sep, 2019 09:50 AM
भाकियू राजेवाल द्वारा आज यहां किसान भवन में आयोजित राज्य स्तरीय सैमीनार में पंजाब की सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के नेता एक मंच पर
चंडीगढ़ (भुल्लर): भाकियू राजेवाल द्वारा आज यहां किसान भवन में आयोजित राज्य स्तरीय सैमीनार में पंजाब की सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के नेता एक मंच पर जुटे और अफसरशाही की भूमिका पर चर्चा करते हुए उन पर खूब बरसे। चर्चा का विषय ‘अफसरशाही, राजनेता और आम लोग’ था।
सैमीनार में पंजाब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील जाखड़, विपक्ष के नेता हरपाल चीमा, शिरोमणि अकाली दल के सीनियर उपाध्यक्ष डा. दलजीत सिंह चीमा, लोक इंसाफ पार्टी के अध्यक्ष और विधायक सिमरजीत सिंह बैंस, भाजपा के सीनियर नेता हरजीत सिंह ग्रेवाल पहुंचे। चर्चा की शुरूआत भारतीय किसान यूनियन राजेवाल के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल ने की। चर्चा दौरान लोक इंसाफ पार्टी के अध्यक्ष बैंस ने गुरदासपुर के डिप्टी कमिश्नर के साथ हुए विवाद पर अपना पक्ष रखा। चर्चा दौरान सत्तापक्ष व विपक्ष से संबंधित सभी नेता इस बात पर एकमत थे कि अफसरशाही सचमुच ही बेलगाम हो चुकी है और इसको उत्तरदायी बनाने के लिए सभी सियासी दलों को मिलकर प्रयास करने होंगे। नेताओं और अफसरशाही की मिलीभगत की बात भी सभी प्रवक्ताओं ने मानी। सभी इस बात पर भी एकमत थे कि अफसरशाही को लोकपक्षीय बनाने के लिए व्यापक सुधारों की जरूरत है। इस कार्य में सरकार महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
अफसरशाही को जवाबदेह बनाने की जरूरत : जाखड़
जाखड़ का विचार था कि अफसरशाही को लोगों के मामलों के प्रति जवाबदेह बनाने की जरूरत है और इसके लिए सबसे बड़ा हल यह हो सकता है कि अधिकारियों की ए.सी.आर. लिखने का अधिकार लोगों के चुने गए प्रतिनिधियों, सांसदों और विधायकों आदि को मिले। उन्होंने भ्रष्ट तंत्र को भी अफसरशाही के हावी होने का एक कारण माना। विपक्ष के नेता हरपाल चीमा ने कहा कि अफसरशाही 1990 के बाद ही हावी होने लगी है, जिसके सामने लोगों के चुने हुए प्रतिनिधि बेबस हैं। इस कारण लोगों की सुनवाई नहीं होती।
लोक सेवक की परिभाषा नहीं समझते अफसर : डा. चीमा
अकाली दल से डा. चीमा ने कहा कि अफसरशाही पर अभी भी अंग्रेजी कल्चर ही हावी है और ये लोक सेवक की परिभाषा नहीं समझते। वहीं बैंस ने कहा कि अफसरशाही के रवैए में सुधार के लिए फोरम कमीशन का गठन होना चाहिए। भाजपा से ग्रेवाल ने कहा कि लोगों के चुने प्रतिनिधियों को भी अपने अधिकारों संबंधी पूरी तरह जानकारी नहीं होती, जिस कारण विधायकों और सांसदों की भी विशेष ट्रेङ्क्षनग होनी चाहिए।