जीरा एपिसोड के बाद पंजाब कांग्रेस में बगावत के आसार

Edited By Vatika,Updated: 17 Jan, 2019 09:37 AM

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प्रदेश कांग्रेस के भीतर आजकल कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा है। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस के भीतर बगावत के सुर उठने लगे हैं। नशे का मुद्दा उठाकर जनता व पार्टी के भीतर हीरो बने विधायक कुलबीर सिंह जीरा को जिस तरह से पार्टी से मुअत्तिल किया गया है,...

जालंधर(रविंदर): प्रदेश कांग्रेस के भीतर आजकल कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा है। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस के भीतर बगावत के सुर उठने लगे हैं। नशे का मुद्दा उठाकर जनता व पार्टी के भीतर हीरो बने विधायक कुलबीर सिंह जीरा को जिस तरह से पार्टी से मुअत्तिल किया गया है, उससे पार्टी के अधिकांश नेता नाखुश हैं।
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खास तौर पर माझा इलाके के कांग्रेसी नेता इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री व प्रदेश प्रधान की चुप्पी को लेकर खासे नाराज हैं। दूसरा पूर्व विधायक पंजगराईं के पार्टी को अलविदा कहने के बाद कैप्टन की नीतियों से नाराज दोआबा व माझा के कई नेता पार्टी को छोडऩे की तैयारी में हैं। दरअसल माझा के अधिकांश नेताओं ने सत्ता सुख ही नशे के मुद्दे पर हमेशा अकाली नेता बिक्रमजीत सिंह मजीठिया पर निशाना साधते रहने के बल पर पाया है। वे लोगों के बीच यही संदेश देते रहे कि कांग्रेस सरकार आने पर मजीठिया को सलाखों के पीछे डाला जाएगा, मगर पिछले 21 महीनों से कैप्टन सरकार मजीठिया व अन्य अकाली नेताओं के खिलाफ न तो सबूत जुटा पाई है और न ही कोई एक्शन ले पाई। माझा के कांग्रेसी नेता कई बार इस आवाज को उठा चुके हैं, मगर उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई।

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नशे के खिलाफ यही आवाज जब पार्टी विधायक कुलबीर सिंह जीरा ने मालवा से उठाई तो नशे के खिलाफ कार्रवाई करने की बजाय पार्टी ने जीरा के खिलाफ ही एक्शन ले लिया। पार्टी की जीरा के खिलाफ यह कार्रवाई अधिकांश पार्टी नेताओं को अच्छी नहीं लगी। सीनियर कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि 10 साल तक सत्ता से बाहर रहने वाली कांग्रेस नशे के मुद्दे पर ही प्रदेश की सत्ता में दोबारा आई है। अब अगर नशे के खिलाफ ही कड़ा एक्शन नहीं होगा और ब्यूरोक्रेसी को हर मामले में बचाने का प्रयास किया जाएगा तो फिर कांग्रेस किस मुंह से दोबारा जनता के बीच जाएगी। लोकसभा चुनाव सिर पर है और नशे के मुद्दे पर अकालियों को घेरने वाली कांग्रेस कैसे चुनाव प्रचार के दौरान नशे का मुद्दा उठा पाएगी। 
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दूसरी तरफ सत्ताधारी पार्टी को अलविदा कह कर जिस तरह से पूर्व विधायक पंजगराईं ने अकाली दल का दामन थामा, उससे भी पार्टी के भीतर एक भूचाल-सा आ गया है। मालवा से पार्टी छोडऩे की यह लड़ी जल्द ही दोआबा व माझा में भी देखने को मिल सकती है, क्योंकि पिछले 2 साल से न तो सरकार में पार्टी नेताओं की कोई सुनवाई हो रही है और न ही किसी वर्कर की। जालंधर की ही बात करें तो यहां कई सीनियर नेताओं की अनदेखी कर ऐसे नेताओं के हाथ प्रधानगी की कमान थमा दी गई, जिन्होंने पार्टी के खिलाफ ही बगावत का झंडा बुलंद किया हुआ था। ऐसे में पार्टी के प्रति लगातार पिछले कई सालों से सेवाएं देने वाले जिन नेताओं को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है, वे पार्टी छोडऩे की दहलीज पर पहुंच गए हैं। जालंधर जिले की ही बात करें तो 2 पूर्व विधायकों समेत एक मौजूदा पार्षद व कई सीनियर नेता अकाली दल व भाजपा के संपर्क में हैं और जाखड़ व कैप्टन की नीतियों से परेशान नेताओं का कभी भी कांग्रेस के भीतर इस्तीफों का जलजला आ सकता है। 

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