Edited By swetha,Updated: 17 Jun, 2018 01:18 PM
पंजाब विधानसभा में नेता विपक्ष व ‘आप’ नेता सुखपाल सिंह खैहरा ट्विटर पर दिए अपने बयान से मुकर गए हैं। उन्होंने कहा है कि वह रिफ्रैंडम-2020 के समर्थक नहीं हैं लेकिन यह स्वीकार करने में भी झिझक नहीं कि पंजाबियों खासकर सिखों के खिलाफ केंद्र सरकारों की...
चंडीगढ़(रमनजीत): पंजाब विधानसभा में नेता विपक्ष व ‘आप’ नेता सुखपाल सिंह खैहरा ट्विटर पर दिए अपने बयान से मुकर गए हैं। उन्होंने कहा है कि वह रिफ्रैंडम-2020 के समर्थक नहीं हैं लेकिन यह स्वीकार करने में भी झिझक नहीं कि पंजाबियों खासकर सिखों के खिलाफ केंद्र सरकारों की बेइंसाफी, अन्याय, पक्षपातपूर्ण रवैया ही इसका बड़ा कारण है। उन्होंने सिखों की ओर से अलग देश (खालिस्तान) की मांग करने वाले रिफ्रैंडम-2020 के समर्थन की खबरों को झूठा करार दिया है। उन्होंने कहा कि सिख भेदभावपूर्ण व अन्यायपूर्ण रवैये की वजह से अलग आजाद राज्य मांगने को मजबूर हो गए हैं इसलिए भारत सरकार को सिख विरोधी नीतियों पर पुर्नविचार करना चाहिए और सिखों के जख्मों पर मरहम लगाना चाहिए।
खैहरा ने कहा कि हालांकि अंग्रेजी हुकूमत ने सिखों को अलग राज्य देने की पेशकश की थी लेकिन सिखों ने देश के साथ ही रहने का फैसला किया। अफसोस की बात है कि बंटवारे का भी सबसे बड़ा दंश पंजाबियों को ही झेलना पड़ा। आजादी के बाद सबसे पहला झटका कटे हुए पंजाबी राज्य के रूप में मिला जिसे हासिल करने के लिए भी पंजाबी मोर्चा लगाना पड़ा था। इसके बावजूद कई पंजाबी भाषी इलाके दूसरे राज्यों में छोड़ दिए जबकि हरियाणा और हिमाचल को बिना संघर्ष के ही ज्यादा फायदा हासिल हुआ। सिखों को बड़ा झटका श्री दरबार साहिब परिसर में सेना हमले ने दिया जिसे केंद्र ने ऑप्रेशन ब्ल्यू स्टार का नाम दिया। इसमें न सिर्फ अकाल तख्त को नुक्सान पहुंचाया गया बल्कि हजारों बेकसूर श्रद्धालुओं का भी कत्ल किया गया। सेना ने सिख इतिहास से जुड़े अनमोल दस्तावेज व ग्रंथ अब तक नहीं लौटाए हैं।
शायद केंद्र के लिए यह काफी नहीं था कि फिर सरकारी शह पर देशभर में सिख दंगों की आड़ में कत्ल किया गया। महिलाओं से दुष्कर्म किए और आगजनी हुई लेकिन 34 वर्ष बाद भी मामले में इंसाफ नहीं मिला। यही कारण है कि सिखों के जख्म अभी भी हरे हैं। खैहरा ने अकाली नेताओं सुखबीर और मजीठिया पर कटाक्ष करते हुए कहा कि वे उनके खिलाफ बयान जारी करने की जल्दबाजी की बजाय अपने ही सरपरस्त प्रकाश सिंह बादल से जुड़ा शिअद इतिहास जरूर पढ़ लें। इसमें पता चलेगा कि बादल ने 1972 में आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए थे और संसद के बाहर संविधान की कापियां भी जलाई थीं। ऑप्रेशन ब्ल्यू स्टार के वक्त भारतीय सेना में तैनात सिख फौजियों को भी उकसाने में बादल का ही हाथ रहा है इसलिए पहले वह प्रकाश सिंह बादल को माफी मांगने के लिए कहें।