...तो हिम्मत सिंह का भी है जलियांवाला बाग कनैक्शन

Edited By swetha,Updated: 13 Apr, 2019 10:08 AM

jallianwala bagh

इतिहास में एक जिक्र है कि जलियांवाला बाग पंडित जल्ले का था। इतिहास के पन्ने कुछ और कहानी भी बयां करते हैं। जिला फतेहगढ़ साहिब की सरहिन्द तहसील का गांव जल्लां और जलियांवाला बाग का रिश्ता खास है।

अमृतसरः इतिहास में एक जिक्र है कि जलियांवाला बाग पंडित जल्ले का था। इतिहास के पन्ने कुछ और कहानी भी बयां करते हैं। जिला फतेहगढ़ साहिब की सरहिन्द तहसील का गांव जल्लां और जलियांवाला बाग का रिश्ता खास है। फतेहगढ़ साहिब से 14 कि.मी. की दूरी पर स्थित यह गांव सरहिन्द-भादसों मार्ग पर है। यह गांव महाराजा पटियाला के पुरोहित पंडित जल्ले ने बसाया था। 450 साल पुराने इस गांव की जागीर सरदार हिम्मत सिंह को मिली थी। सरदार हिम्मत सिंह होशियारपुर के गांव महिलपुर के चौधरी गुलाब राय बैंस जट्ट का बेटा था जिन्हें सिख मिसलों की चढ़त के समय सूबा सरहिन्द पर की गई कार्रवाई में हिस्सा लेने के लिए यह गांव जागीर के तौर पर मिला था।

इस गाव से सरदार हिम्मत सिंह जल्लेवालियां सरदार कहलाने लगे। इस गांव में बसने के समय सरदार हिम्मत सिंह नाभा रियासत में सेवाएं दे रहे थे। सन् 1812 में महाराजा रणजीत सिंह ने सरदार हिम्मत सिंह को अपनी सेवाओं में शामिल कर लिया। इन सेवाओं के बदले सरदार हिम्मत सिंह जल्लेवालियां को जालंधर का गांव अलावलपुर और अमृतसर का बाग वाला कटड़ा ईनाम के तौर पर दिए। इस स्थान पर सरदारों की तरफ से बाग लगाया गया जिसे जलियांवाला बाग के नाम से जाना गया। सरदार हिम्मत सिंह की मौत के बाद गांव अलावलपुर की जागीर सरदार के 4 बेटों में विभाजित कर दी गई। 

PunjabKesari

13 अप्रैल, 1919 को काले रविवार की खूनी बैसाखी के दिन इस बाग का नाम ही सिर्फ बाग था, पर इन सरदारों की समाधि के अलावा यहां पर सिर्फ एक कुआं था और बाकी स्थान खाली मैदान ही था। गांव जल्ले के लोगों को अपने इतिहास बारे पूरी तरह स्पष्ट जानकारी नहीं है। गांव वालों के मुताबिक गांव में सरदारों की समाधियां भी हैं और महाराजा रणजीत सिंह की शादी भी यहीं हुई थी। हालांकि उनकी शादी की कोई पुख्ता जानकारी नहीं है, पर जलियांवाला बाग के सरदार इसी गांव के थे। इसको लेकर इतिहास में काफी तथ्य मिलते हैं। लैपल ग्रिफन की किताब ‘‘चीफ एंड फैमिली ऑफ नोट इन द पंजाब (1890)’’ के मुताबिक भी यह तथ्य पुख्ता है। इसके अलावा भाषा विभाग पंजाब के पंजाब कोष डा. रत्न सिंह जग्गी की किताब ‘‘सिख पंथ विश्व कोष’’, पंजाबी यूनिवर्सिटी के ‘‘सिख धर्म विश्व कोष’’ और प्रोफैसर प्यारा सिंह परम की किताब ‘‘संक्षेप सिख इतिहास (1469-1979)’’ में भी इन सरदारों का और बाग को लेकर इतिहासिक हवाला मिलता है।

इन दिनों में फतेहगढ़ साहिब के हरप्रीत सिंह नाज की किताब ‘‘जिला फतेहगढ़ साहिब के शहर कस्बे व गांव’’ संक्षेप ऐतिहासिक जानकारी में भी गांव जल्ले और जलियांवाला बाग की रिश्तेदारी सामने आती है। 13 अप्रैल, 1919 के खूनी कांड के बाद एक यादगार कमेटी अस्तित्व में आई। इस कमेटी के अध्यक्ष मदन मोहन मालविया व सचिव मुखर्जी थे। इस बाग को 1923 में इसके 34 मालिकों से 5 लाख 65 हजार रुपए में खरीदा गया था। अब सवाल यह है कि 100 साल बाद यह बाग सैर-सपाटे और सैल्फियां लेने की जगह तो नहीं बन गया। इसे लेकर अभी तक सरकारी स्तर पर किसी तरह की व्यापक रूपरेखा सामने नहीं आई है। इतिहास के इतने बड़े खूनी कांड के प्रति इतनी उदासीनता क्यों है। 

पंजाबी नावलकार नानक सिंह, बाबा साहिब चौक के नजदीक गली पंजाब सिंह के निवासी रहे हैं। यहां से थोड़ी दूरी पर ही जलियांवाला बाग है। इस कांड में नानक सिंह के 2 मित्र गोली का शिकार हो गए थे और शवों के ढेर के नीचे दबे नानक सिंह इस गोली कांड में बच गए। पर उन्हें एक कान से सुनाई देना बंद हो गया था। 30 मई, 1920 में उन्होंने भाई नानक सिंह, कृपाल सिंह पुस्तकां वाले अपने प्रकाशन तहत खूनी बैसाखी रचना को प्रकाशित किया। यह रचना 25 पैसे में बेची गई थी। इसका जिक्र उन्होंने खुद 1949 में अपनी जीवनी ‘मेरी दुनिया’ में किया, पर यह किस्सा अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया और इसकी कोई भी कॉपी नानकसर सिंह के परिवार के पास भी नहीं रही।

PunjabKesari

अमृतसर के निवासी नानक सिंह के पुत्र कुलवंत सिंह सूरी अनुसार यह किस्सा उन तक प्रोफैसर किशन सिंह गुप्ता के जरिए पहुंचा। दूसरी तरफ इस किस्से में भारतीय राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की भी दिलचस्पी थी। उनके माध्यम से भी एक कॉपी उन्हें मिली जो शायद उनके दिल्ली स्थित सरकारी आर्काइव विभाग या लंदन की इंडिया ऑफिस लाइब्रेरी से हासिल की गई। इस किस्से बारे डाक्टर गुप्ता ने ही सबसे पहले पंजाब सरकार के लोक सम्पर्क विभाग के मासिक पत्र जागृति के अगस्त 1980 के अंक में लिखा था। इस किस्से की प्रस्तावना कैसी थी, यह हमें भाषा विभाग पंजाब के चेतन सिंह की किताब पुरातन सिख लेख के पन्ना नम्बर 113 से नसीब हुई। सारे हिन्दुस्तान ने कहा कि एक जान होकर रोलेट बिल का विरोध करना है। 

सारे हिन्द ने कहा एक जान हो के
रोलेट बिल नामूल मंजूर करना
असां वारेयां सब कुछ तुसां उत्तो
प्यार दा दिल वी दूर करना
रोलेट बिल घडिय़ा आन रोला
सारे हिन्द दे लोक उदास होए
वांग भट्ठे ते तपिया देश सारा
मानो सबदे लबां दे सास होए
पंज वजे अप्रैल दी तेरवीं नूं
लोकी बाग वल होए रवान चल्ले
दिलां विच इंसाफ दी आस रक्ख दे
सारे सिख, हिन्दू, मुसलमान चल्ले

 नानक सिंह की किताब खूनी बैसाखी में जलियांवाला बाग का पूरा किस्सा है। इस किताब को पुन: नानक सिंह के पोते नवदीप सूरी ने हार्पर कोलिन प्रकाशन के जरिए छपवाया है। इस किताब को लोक साहित्य प्रकाशन ने मूल पंजाबी रूप में भी प्रकाशित किया है। इसी किताब में जस्टिन रोलेट का बयान भी है। रोलेट एक्ट को बनाने वाले सिडनी रोलेट, जस्टिन रोलेट के परदादा थे। जस्टिन पेशे के तौर पर बी.बी.सी. के पत्रकार हैं पर अपनी भारत नौकरी दौरान वह खुद जलियांवाला बाग में हाजिरी लगवा कर गए। इस दौरान नवदीप सूरी ने उन तक पहुंच की और जस्टिन ने भी अपने बयान में अपने परदादा के एक्ट व जलियांवाला बाग की शहादत का जिक्र किया है। खूनी बैसाखी किताब 13 अप्रैल को दिल्ली, 15 अप्रैल को अमृतसर व 18 अप्रैल को अबुधाबी में प्रदॢशत की जाएगी। अबुधाबी में इस किताब के उद्घाटन के समय सिडनी रोलेट का पड़पोता जस्टिन रोलेट भी पहुंच रहा है। 

PunjabKesari

इतिहास का वह पन्ना जिसका जिक्र नहीं
एक शाम मोतिया रंग की पगड़ी, काली अचकन पहने हुए व्यक्ति हमारे घर आया। यह 1942-43 के वर्ष की बात है। उस व्यक्ति ने 100 रुपए पेशगी देते हुए मोटी पेशकश की क्योंकि वह जानता था कि नानक सिंह उस दौर के सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे व्यक्ति हैं और उन्हें यह पेशकश ‘अंग्रेज राज की बरकतां’ नामक किताब लिखने के लिए की गई जिसमें अंग्रेजों द्वारा भारत में किए गए विकास की विस्तार से व्याख्या करनी थी। इस किताब के प्रकाशक लाहौर के राय बहादुर मुंशी गुलाब सिंह थे लेकिन नानक सिंह अंग्रेजों की सच्चाई जानते थे क्योंकि 1920 में उनके द्वारा लिखी गई किताब खूनी बैसाखी जब्त की गई थी और 1927 में लिखी गई एक अन्य किताब जख्मी दिल भी जब्त हो गई थी। ऐसे में नानक सिंह अंग्रेजी राज की अच्छाई का प्रचार कैसे कर सकते थे। नानक सिंह ने लाहौर जाकर उन्हें 100 रुपए वापस कर दिए। यह जानकारी नानक सिंह के बेट कुलवंत सिंह सूरी के हवाले से सामने आई है। 

मिला खून हिन्दू-मुसलमान का यहां
बाबू फिरोजदीन शरफ
नादरगर्दी वी हिन्द नू भुल्ल गई है
चल्ले इंगलिशी ऐसे फरमान ऐत्थे
करां किहड़े अखरां विच जाहर
जो-जो जुल्म दे हुए समान ऐत्थे
एडवायर दी उत्तो उडवायर आई
कित्ते डायर ने हुक्म फरमान ऐत्थे
इक्को आन अंदर जालम आन के ते
दित्ती मेट पंजाब दी आन ऐत्थे
कित्ती राखी बैसाखी विच्च जेही साडी
लग्गे गोलियां मारन शैतान ऐत्थे
कोई खूह विच्च डिग्गे सी वांग यूसुफ
मर गए कई तिहाए इंसान ऐत्थे
मेहंदी लत्थी नहीं सी कई लाडियां दी
होवे लहू व लहूलुहान ऐत्थे
इतिहास दे ऐने सफियां विच
इह गल वी जिक्र विच है वी

पब्लिकेशन प्रोसक्राइब्ड बाय दा गवर्नर ऑफ इंडिया द ब्रिटिश लाइब्रेरी 1985 की किताब में उन किताबों का जिक्र है जो उस दौर में जब्त की गई थी। यह ग्राह्यम शॉ और मैरी लॉयड की तरफ से सम्पादित की गई है जो इंडिया ऑफिस लाइब्रेरी, दस्तावेज और ओरिएंटल मैन्यु स्क्रिप्ट व प्रकाशित किताबों का विभाग और ब्रिटिश लाइब्रेरी दस्तावेजों पर आधारित है। इसमें नानक सिंह की खूनी बैसाखी का जिक्र नहीं है कि यह किताब जब्त की गई है। इसके बावजूद नानक सिंह की किताब का एक सत्य यह है कि यह जब्त हुई किताब थी और उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य को ललकारा था। 

PunjabKesari

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!