जालंधर लोकसभा सीट:पूर्व सांसद के.पी., सरवण सिंह फिल्लौर ने टिकट पर दावा ठोका

Edited By swetha,Updated: 07 Feb, 2019 08:51 AM

jalandhar lok sabha seat

2019 के लोकसभा चुनावों में जालंधर हलका में स्थिति रोचक मोड़ पर पहुंच चुकी है।  पंजाब प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रधान व पूर्व सांसद मोहिन्द्र सिंह के.पी. तथा पूर्व विधायक सरवण सिंह फिल्लौर ने चुनाव लड़ने की अपनी दावेदारी ठोक दी है। दोनों नेताओं ने...

जालंधर(चोपड़ा): 2019 के लोकसभा चुनावों में जालंधर हलका में स्थिति रोचक मोड़ पर पहुंच चुकी है।  पंजाब प्रदेश कांग्रेस के पूर्व प्रधान व पूर्व सांसद मोहिन्द्र सिंह के.पी. तथा पूर्व विधायक सरवण सिंह फिल्लौर ने चुनाव लड़ने की अपनी दावेदारी ठोक दी है। दोनों नेताओं ने कांग्रेस भवन चंडीगढ़ में अपना नामांकन जमा करवाया जिसके उपरांत अभी तक जालंधर से एकमात्र दावेदार के तौर पर खुद को पेश कर रहे सांसद संतोख चौधरी की मुश्किलों में इजाफा होना तय माना जा रहा है।

दलित राजनीति पर है के.पी. की मजबूत पकड़

दलित राजनीति में मजबूत पकड़ रखने वाले मोहिन्द्र सिंह के.पी. जोकि वैस्ट विधानसभा हलके से पहली बार 1985 में चुनाव लड़कर विधायक बने थे जिसके उपरांत उन्होंने 1992 व 2002 में भी इसी सीट पर परचम लहराते हुए विधानसभा में अपना स्थान बनाया। वर्ष 2009 में के.पी. पर विश्वास जताते हुए पार्टी ने उन्हें लोकसभा चुनावों में उतारा और वह इस चुनाव में जीत हासिल कर जालंधर से सांसद चुने गए। 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस आलाकमान ने के.पी. के हलके को बदलते हुए उन्हें होशियारपुर शिफ्ट कर दिया जहां से वह चुनाव हार गए थे। 

पिछली बार संतोख सिंह पर पार्टी ने खेला था दाव

के.पी. के स्थान पर कांग्रेस ने फिल्लौर विधानसभा हलके से चुनाव हार चुके संतोख सिंह चौधरी पर दाव खेला और उन्हें यहां से चुनाव लड़वाया। संतोख ने अकाली दल के उम्मीदवार पवन टीनू को शिकस्त दी थी। अब ऑल इंडिया कांग्रेस वर्किंग कमेटी के मैंबर रहे के.पी. ने पुन: अपने होम डिस्ट्रिक्टमें वापसी करते हुए यहां से चुनाव लडने को हाईकमान के समक्ष अपना दावा ठोका है। उनका कहना है कि जालंधर उनका संसदीय क्षेत्र है, पार्टी के फैसले का सम्मान करते हुए उन्होंने एक सच्चे सिपाही की भांति होशियारपुर से चुनाव लड़ा था। उनके कामों की वजह से ही चौधरी को जीत हासिल हुई थी। अब 5 सालों के बाद वह जालंधर से ही अपना चुनाव लड़ेंगे। अंतिम फैसला कांग्रेस प्रधान राहुल गांधी ने करना है। 

सरवण सिंह फिल्लौर  ने 2017 में थामा था हाथ का दामन

इसी प्रकार 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले अकाली दल की दलित राजनीति के कद्दावर नेता सरवण सिंह फिल्लौर ने तकड़ी को छोड़ हाथ का दामन थाम लिया था। 1997 से फिल्लौर विधानसभा हलका से विधायक चुने गए फिल्लौर ने 1980, 1985, 1997 व 2007 के चुनावों में जीत दर्ज करवाई। 2012 में अकाली दल ने उन्हें करतारपुर से चुनाव लड़वाया जहां उन्होंने कांग्रेस के स्तम्भ माने जाते नेता चौधरी जगजीत सिंह को हराया था। फिल्लौर ने कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद फिल्लौर विधानसभा हलका से 2017 का विधानसभा चुनाव लडऩा चाहा था परंतु कांग्रेस हाईकमान ने उनके दावे को दरकिनार कर सांसद चौधरी के पुत्र विक्रमजीत चौधरी को टिकट दे दिया। सांसद के एड़ी-चोटी का जोर लगाने के बावजूद वह अपने पुत्र की जीत को सुनिश्चित नही कर सके और विक्रमजीत अकाली प्रत्याशी बलदेव सिंह खैहरा के हाथों पराजित हो गए थे। 

विधायक सुशील रिंकू भी टिकट पाने की दौड़ में

इसके अलावा अब वैस्ट विधानसभा हलका से विधायक सुशील रिंकू भी टिकट पाने की दौड़ में शामिल हैं। इससे पूर्व पार्षद रहे रिंकू ने विधायक बनने के उपरांत केवल 2 वर्षों में ही अपनी कार्यशैली से आम जनता विशेषतौर पर दलित समुदाय में अपनी खासी पैठ बनाई है। जालंधर से ही पूर्व सांसद रहे व पूर्व कैबिनेट मंत्री राणा गुरजीत सिंह के दाएं हाथ माने जाते रिंकू पर कैप्टन खेमे का पूरा आशीर्वाद है और वह भी टिकट मिलने को लेकर खासे आश्वस्त हैं और लगातार इस संदर्भ में अपनी गतिविधियां बढ़ाए हुए हैं। चूंकि 7 फरवरी लोकसभा चुनावों में टिकट अप्लाई करने का अंतिम दिन है अब देखना होगा कि इनके अलावा कौन-कौन से नेता चुनाव लडऩे को लेकर हाईकमान के समक्ष अपनी दावेदारी करते हैं। जिस ढंग से जालंधर हलका के लिए सशक्त दावेदारियां सामने आई हैं उससे लगता है कि मौजूदा सांसद के लिए टिकट हासिल करना और चुनाव लडऩा कोई आसान काम नही होगा। 

कांग्रेस का इतिहास, लोकसभा चुनावों में पार्टी ने हर बार उतारा नया चेहरा 

जालंधर लोकसभा हलका में पिछले दशकों में कांग्रेस का इतिहास रहा है कि पार्टी ने कभी भी अपने उम्मीदवार को रिपीट नहीं किया। हरेक चुनाव में नया चेहरा चुनाव मैदान में उतारा है। स्वर्गीय यश के निधन पर हुए उपचुनाव में उस समय पंजाब के कैबिनेट मंत्री उमराव सिंह को चुनाव लडऩे का मौका मिला जिसके उपरांत बलबीर सिंह, राणा गुरजीत सिंह, मोहिन्द्र सिंह के.पी व 2014 के चुनावों में संतोख चौधरी ने बाजी मारी। अब देखना होगा कि आलाकमान अपने इतिहास को दोहराते हुए चौधरी संतोख की बजाय कोई नया चेहरा आगे लाती है या पुरानी परम्परा को त्यागते हुए चौधरी को पुन: उम्मीदवार घोषित करती है। 

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