अंतराष्ट्रीय महिला दिवस: महिला सशक्तिकरण की अनूठी मिसाल है यह लेडी सिंघम ऑफिसर

Edited By Tania pathak,Updated: 07 Mar, 2021 03:02 PM

international women s day meet unique example of women s empowerment

आज समाज में महिलाओं का विशेष दर्जा है। महिला घर संभालने के साथ-साथ राजनीतिक, धार्मिक और कई उच्च पदों पर अपने दायित्व निभा रही है।

लुधियाना (बेरी): आज समाज में महिलाओं का विशेष दर्जा है। महिला घर संभालने के साथ-साथ राजनीतिक, धार्मिक और कई उच्च पदों पर अपने दायित्व निभा रही है। बड़ी से बड़ी मुश्किलों का सामना कर महिलाएं, पुरुषों के मुकाबलें आगे निकल रही है। अगर देखा जाए तो आज देश में चाहे राजनीतिक पद हो, या उच्चाधिकारी का पद हो, महिलाएं, पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपना कर्तव्य निभा रही है। 

इस बात में भी कोई दोराय नहीं कि भले ही आज जमाना कितना भी आगे क्यों न बढ़ गया हो लेकिन महिलाओं को घर संभालने और पारिवारिक जिम्मेदारियों के लिए ही उत्तम माना जाता है। आज भी हमारे इर्द-गिर्द ऐसे कई लोग मौजूद हैं, जो घर की चारदीवारी में महिलाओं को कैद रखने को ही अपना धर्म मानते हैं। लेकिन, लुधियाना में ऐसी पांच पुलिस महिला अधिकारी है, जिन्होने सपने देखें और अपनी मेहनत और लगन से उन्हे साकार कर दिया। उच्च पदों पर बैठ कर अपनी ड्यूटी के साथ-साथ घर, बच्चों और परिवार का ध्यान रख रही है। यह महिला अधिकारी जिवंत मिसाल है कि महिलाएं किसी से कम नहीं है। पंजाब केसरी ने इन महिला अधिकारियों से विशेष बात कर चर्चा की।

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मैं 2014 बैच की आई.पी.एस. अधिकारी हूं। महिला का इस दुनिया में मान है, महिला ही एक बहन है, बेटी है और महिला ही पत्नी और मां है। महिलाओं को सामाज में पूर्ण मान सम्मान मिलना चाहिए। आज भी कई लोग महिलाओं को पुरुषों से पीछे समझते है। मगर महिलाएं, पुरुषों से आगे निकल रही है। हर वर्ग में महिला अपना दायत्व कायम कर रही है। इसलिए सामाज को चाहिए कि लड़कियों को उनका हक देकर अच्छे से पढ़ाए लिखाए और उन्हे समर्थ होने दें ताकि वह अपने फैसले आप कर सके और अपने पैरों पर खड़ी हो सके।
-सोमया मिश्रा, आई.पी.एस. (डी.सी.पी.) ट्रैफिक, लुधियाना

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मैं 2017 बैच की आई.पी.एस. अधिकारी हूं। इससे पहले मैं डॉक्टर की पढ़ाई कर रही थी। मैंने आई.पी.ए. बनने का सपना देखा और मेहनत एवं लगन से अपना मुकाम हासिल किया। अब ए.डी.सी.पी. (1) के पद पर तैनात हूं। घर और ड्यूटी दोनों मैनेज करती हूं। मेरी तीन साल की बेटी है, मगर परिवार का स्पोट भी साथ है। इसके अलावा ऐसे ही महिलाओं को चाहिए कि सपने देखें और अपनी काबलियत के दम पर उन्हे साकार करें।
-डॉ. प्रज्ञा जैन, आई.पी.एस.(ए.डी.सी.पी.-1) लुधियाना

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मैं 2016 बैच की आई.पी.एस. हूं। मेरा यही कहना है कि महिलाओं को मेहनत करनी चाहिए। आज भी महिलाएं को पुरुषों के मुकाबले कम ही माना जाता है। कोई भी काम हो, महिलाओं को कम और पुरुषों को ज्यादा क्रैडिट मिलता है। मगर महिलाओं को चाहिए कि वह अपनी काबलियत और मेहनत के दम पर अपना मुकाम हासिल करें। 
-अश्वनी गोटयाल, आई.पी.एस. (ए.डी.सी.पी.) हैडक्वाटर

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मैं 2012 बैच की पी.पी.एस. हूं। मैं ड्यूटी के समय चाहे अधिकारी हूं। मगर घर पर पत्नी, मां और बेटी होती हूं। मुझे परिवार का सहयोग पूरा मिलता है। इसलिए आज में इस मुकाम पर हूं। मेरा यही मानना है कि महिलाएं किसी भी काम में पुरुषों से कम नहीं है और यह देश के प्रत्येक परिवार का कर्तव्य है कि बालिकाओं को उनका उचित सम्मान मिले। उन्हे परिवार का सहयोग मिलना चाहिए और उन्हे कुछ बनने के लिए स्वतंत्र कर देना चाहिए कि वह मेहनत और लगन से अपना मुकाम हासिल कर सकें।
-रुपिंदर कौर सरां, पी.पी.एस. (ए.डी.सी.पी.-4) लुधियाना

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मैं 2012 बैच की पी.पी.एस. हूं। पति और परिवार का सहयोग हमेशा मिलता रहा है। इसलिए आज में ड्यूटी के साथ-साथ परिवार को भी संभाल रही है। मेरा कहना है कि लड़कियां सेल्फ डिपेंडिट हो। वह पढ़ लिखकर खुद फैसले ले सके और अपनी परिवार का सहयोग कर सके। महिलाओं को सामाज में हमेशा सम्मान मिलना चाहिए। लोगों को भी अपनी सोच बदलनी होगी। आज की महिला किसी से भी कम नहीं है। वह हर वर्ग में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही है। 
-रुपिंदर कौर भट्टी, पी.पी.एस. (ए.डी.सी.पी.) इंवेस्टीगेशन

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