पाक जेलों में बंद कैदियों की सुध नहीं लेती भारतीय एंबैसी

Edited By swetha,Updated: 14 Aug, 2018 10:34 AM

indian embassy does not take care of prisoners in pak jails

पाक की जेलों में बंद भारतीय कैदियों की भारतीय अंबैसी की तरफ से कोई सुध नहीं ली जाती है। इसका जीता जागता उदाहरण सर्बजीत सिंह व किरपाल जैसे कैदियों की हत्या के रुप में सामने आ चुका है।

अमृतसर (नीरज): पाक की जेलों में बंद भारतीय कैदियों की भारतीय अंबैसी की तरफ से कोई सुध नहीं ली जाती है। इसका जीता जागता उदाहरण सर्बजीत सिंह व किरपाल जैसे कैदियों की हत्या के रुप में सामने आ चुका है। उक्त घटनाओं के बाद भी अंबैसी की तरफ से अपने कैदियों की परवाह नहीं की जा रही है। पाकिस्तान की कोटलखपत जेल से रिहा होकर आए फिरोजपुर निवासी हरजिन्दर मसीह व दिल्ली निवासी रहमान ने बताया कि वह सवा दो साल की सजा काटकर आए हैं, लेकिन इस जेल व पाकिस्तान की अन्य जेलों में ऐसे दर्जनों भारतीय कैदी हैं, जो अपनी सजा पूरी कर चुके हैं। पाकिस्तान की सरकार उनको रिहा नहीं कर रही है, ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि भारतीय अंबैसी की तरफ से इन कैदियों की पैरवी नहीं की जाती है यदि अंबैसी इन कैदियों की पैरवी करे तो यह कैदी भी अपने परिवार के पास लौटकर वापस आ सकते हैं।  

कैदियों पर प्रयोग की जाती है थर्ड डिग्री
मसीह ने बताया कि भारतीय कैदियों के साथ पाकिस्तानी जेल प्रबंधन की तरफ से अमानवीय अत्याचार किए जाते हैं। जब तक भारतीय कैदी जमीन पर गिर नहीं जाते हैं, तब तक उनको दवा नहीं देते हैं। इतना ही नहीं थर्ड डिग्री का आम तौर पर प्रयोग किया जाता है। इस कारण ज्यादातर भारतीय कैदी अपना मानसिक संतुलन तक खो चुके हैं। रहमान ने बताया कि 36 वर्ष बाद लौटकर आए गजानंद शर्मा के साथ भी पाकिस्तानी जेल प्रबंधकों ने बहुत बुरा सलूक किया है। इसी कारण वह चल फिर नहीं सकते हैं। इस समय कोटलखपत जेल में कुलदीप सिंह, कुलदीप कुमार, शमशेर सिंह सहित कई ऐसे भारतीय कैदी हैं, जो 25-25 वर्ष से जेल में कैद हैं, लेकिन उनकी रिहाई नहीं की जा रही है। दोनों कैदियों ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज व पी.एम. नरेन्द्र मोदी से अपील की है कि भारतीय कैदियों की रिहाई के लिए सख्त प्रयास किए जाएं ताकि सजा पूरी कर चुके भारतीय कैदी रिहा हो सकें। 

जंगी कैदियों को रखा है गुप्त जेलों में 
वर्ष 1965 व 1971 के 54 जंगी कैदियों के बारे में रिहा होकर आए कैदियों ने बताया कि इसके बारे में सुना जरूर है कि पाकिस्तानी सेना ने भारतीय जंगी कैदियों को किसी गुप्त स्थान पर छिपाकर रखा हुआ है और इतनी यातनाएं दे रहे हैं कि ज्यादातर जंगी कैदी पागल हो चुके हैं। रहमान ने बताया कि वह पाकिस्तान अपनी रिश्तेदार से मिलने गया था, जहां उसका वीजा एक्सपायर हो गया, लेकिन पाकिस्तानी अंबैसी ने उसे भारत भेजने की बजाय जेल में ठूस दिया, जबकि वह जासूसी करने के लिए पाकिस्तान नहीं गया था।

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गजानंद को 2 महीने की हुई थी सजा, पाक ने किया 36 साल बाद रिहा

भारतीय कैदियों के साथ पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी आई.एस.आई. की तरफ से अमानवीय व्यवहार व अत्याचार करने का एक और मामला सामने आया है। पाकिस्तान की तरफ से रिहा किए गए 29 कैदियों में से 68 वर्षीय गजानंद शर्मा भी रिहा होकर भारत आए हैं, जिनको 2 साल की सजा हुई थी, लेकिन पाकिस्तान की सरकार ने उसे बिना कारण 36 वर्ष तक जेल में रखा। वह जयपुर के फतेहराम का टिब्बा नाहरगढ़ थाना क्षेत्र का रहने वाला है, जो 36 वर्ष पहले रहस्यमयी परिस्थितियों में गायब हो गया था। उसका परिवार भी गजानंद को मरा समझ चुका था लेकिन उसकी पत्नी माखनी देवी को उम्मीद थी कि वह जिंदा है ।

लगभग एक माह पहले जब माखनी देवी को सुरक्षा एजैंसियों की तरफ से गजानंद के जिंदा होने का समाचार मिला तो पति की रिहाई की खबर सुनकर वह खुशी से नहीं समाई। गजानंद की रिहाई के लिए जयपुर से भाजपा सांसद रामचरण बोहरा व विधायक सुरेन्द्र पारिक ने परिवार के साथ जाकर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से भी मुलाकात की थी और विदेश मंत्री ने आश्वासन दिया था कि गजानंद शर्मा 13 अगस्त को भारत आ रहे हैं। अटारी बॉर्डर आते ही जिला प्रशासन के साथ-साथ विप्रो फाऊंडेशन पंजाब की तरफ से गजानंद शर्मा का स्वागत किया गया और इसी फाऊंडेशन की तरफ से गजानंद को जयपुर भी ले जाया जा रहा है। गजानंद के बेटे मुकेश का कहना है कि वह 37 वर्षों के बाद अपने पिता का चेहरा देखने जा रहा है और भगवान का शुक्र है कि उसके पिता जिंदा हैं।

आई.एस.आई. की थर्ड डिग्री से बोलने के काबिल भी नहीं है गजानंद
पाकिस्तानी जेल में मारे गए भारतीय कैदी सर्बजीत सिंह व किरपाल की भांति गजानंद शर्मा के साथ भी पाकिस्तानी खुफिया एजैंसी आई.एस.आई. व कोटलखपतजेल के कर्मचारियों ने अमानवीय अत्याचार किए हैं। हालात ये हैं कि गजानंद थर्ड डिग्री के कारण पूरी तरह से बोल भी नहीं पा रहा है और न ही सामान्य व्यक्ति की भांति चल-फिर सकता है। अटारी बॉर्डर पहुंचने पर भी गजानंद ने सिर्फ अपना सिर हिलाकर व हाथ खड़ा करके भारत सरकार का शुक्रिया अदा किया। 

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