अवैध क्लीनिक में महिलाओं का अबॉर्शन कर लाखों में बेचे जा रहे नवजात

Edited By Vatika,Updated: 04 Jun, 2020 09:10 AM

illegal clinics and buying and selling of newborns

घरों में अवैध तौर पर चलाए जा रहे क्लीनिक गर्भवतियों के अबॉर्शन के साथ-साथ नवजात बच्चों की खरीद-फरोख्त के अड्डे बनते जा रहे हैं।

फिल्लौर(भाखड़ी) : घरों में अवैध तौर पर चलाए जा रहे क्लीनिक गर्भवतियों के अबॉर्शन के साथ-साथ नवजात बच्चों की खरीद-फरोख्त के अड्डे बनते जा रहे हैं। इन अवैध क्लीनिकों का एक अपना नेटवर्क है जो लिंग निर्धारण टैस्ट करवाने से लेकर गर्भवतियों का गर्भपात करवाने और नवजात बच्चों की खरीद-फरोख्त तक में लिप्त है। इस गोरखधंधे में हर किरदार का अपना रोल और अपनी कीमत तय है। यह सारा काम स्वास्थ्य विभाग की नाक के नीचे हो रहा है लेकिन न तो स्वस्थ्य विभाग को इसकी परवाह है और न ही समाज का इस तरफ ध्यान है।  नतीजा यह है कि इन अवैध क्लीनिक्स  पर लाई जाने वाली गर्भवतियों की जान हर वक्त जोखिम में रहती है।

सरकारी अस्पताल में स्टाफ की कमी, मजबूरी में  आते हैं लोग
सिविल अस्पताल में महिला डाक्टरों की कमी के चलते घरों में खुले इन अवैध क्लीनिकों का धंधा खूब फल-फूल रहा है। इन क्लीनिकों में अक्सर आशा वर्कर भी आती-जाती रहती हैं। सरकारी अस्पताल में घूमते दलाल गर्भवतियों को जब वहां डाक्टर नहीं मिलता तो वे उन्हें यहां ले आते हैं। इन्हीं डाक्टरों की लापरवाही से कई बार महिलाओं की जान खतरे में पड़ चुकी है और जन्म लेने वाले बच्चे भी अपाहिज पैदा हो रहे हैं।


नवजात लड़का है या लड़की, इसके हिसाब से तय होती है फीस
घरों में खुले इन अवैध क्लीनिकों में बैठी संचालिकाओं की कोई खुद की तय फीस नहीं होती। गर्भवती महिला अगर लड़के को जन्म देती है तो संचालिका उससे 10 से 12 हजार लेती है और अगर लड़की होती है तो उसकी फीस 5 से 6 हजार वसूली जाती है। इसमें 1000 रुपए अलग से आशा वर्कर के नाम से भी वसूल करती है।

30 से 40 हजार में किए जा रहे लिंग निर्धारण टैस्ट 
बेशक सरकार ने लिंग निर्धारण टैस्ट पर पाबंदी लगाई हुई है पर इसके बावजूद प्रदेश के कुछ शहरों में पड़ते गांव जहां अल्ट्रासाऊंड मशीनें लगी हैं, वहां 30 से 40 हजार रुपए लेकर यह टैस्ट चोरी-छुपे किए जा रहे हैं। उक्त अवैध क्लीनिकों में ब‘चों की खरीद-फरोख्त का भी धंधा फल-फूल रहा है।


गरीब महिलाएं दर्दनाक तरीके से दे रही हैं बच्चे को जन्म
उक्त क्लीनिकों में गर्भवती महिला की जो दुर्दशा होती है, उसको बयां करते वक्त रौंगटे खड़े हो जाते हैं। कई बार तो मां को अपनी जान तक दाव पर लगानी पड़ जाती है। उक्त संचालकों के पास न तो कोई स्ट्रैचर है और न ही उनके पास कोई औजार हैं। गर्भवती महिला को खून से सनी एक चारपाई पर इंजैक्शन लगा कर तड़पने के लिए छोड़ दिया जाता है। ऐसी ही पीड़ा से गुजरी महिला ने बताया कि 3 घंटे में अगर बच्चा नहीं होता तो फिर संचालिका गर्भवती महिला के पेट पर बैठ कर हर तरह के दर्द देती है जोकि बर्दाश्त से बाहर होता है। पंजाब के शहर नवांशहर, पठानकोट, जे. एंड के. में पड़ते कठुआ, राजस्थान के देहात इलाकों में आज भी लिंग निर्धारण टैस्ट हो रहे हैं।

सिविल अस्पताल बना रैफर अस्पताल
इस संबंध में सिविल अस्पताल के कार्यवाहक एस.एम.ओ. डा. अशोक से बात की गई तो उन्होंने बताया कि अस्पताल में गर्भवती महिलाओं के लिए एक ही महिला डाक्टर है। स्थायी डाक्टर न होने के कारण महिलाओं को रैफर करना पड़ता है। जब उनसे पूछा गया कि कुछ महिलाएं घरों में ही अवैध क्लीनिक खोलकर गलत कामों को अंजाम दे रही हैं तो उन्होंने कहा कि इसकी शिकायत ऊपर हैडक्वार्टर में की जाए तो ही सही मायने में नकेल कसी जा सकती है। जब उनसे पूछा गया कि एक गर्भवती महिला गरीब होने के चलते बच्चे को जन्म देने के लिए अपने घर में ही जिंदगी-मौत से जूझ रही है तो उन्होंने कहा कि उसे यहां लाकर जालंधर रैफर किया जाएगा।

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