Edited By Updated: 20 May, 2017 04:53 PM
नैशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी द्वारा स्टैंट की कीमत फिक्स करने पर भले ही बहुराष्ट्रीय कम्पनियां घाटे का रोना रोकर कह रही
लुधियाना(सहगल): नैशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी द्वारा स्टैंट की कीमत फिक्स करने पर भले ही बहुराष्ट्रीय कम्पनियां घाटे का रोना रोकर कह रही हों कि एन.पी.पी.ए. द्वारा तय की गई कीमतें वाणिज्यिक रूप से अपरिहार्य हैं परंतु ये जर्मनी, इटली, ब्रिटेन और कई अन्य यूरोपीय देशों में भारत में तय की गई कीमतों से कम दामों पर स्टैंट बेच रही हैं। स्टैंट ब्राइस की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों पर नजर डालने से पता चलता है कि भारत में दिल के मरीजों को विश्व से सबसे अधिक कीमत पर स्टैंट बेचे गए और किसी भी कीमत नियंत्रक अथवा कानून के अभाव में मरीजों की जेब में मानो जलाकर छेद कर दिए गए हैं। लोगों से करोड़ों से लेकर अरबों रुपए तक का धोखा किया गया।
भारत में मरीजों से अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी तथा इटली जैसे देशों में उपलब्ध स्टैंट की कीमत कई गुना अधिक वसूली गई। अब स्टैंट की कीमत फिक्स करने के बावजूद भारत में इसकी कीमत अन्य देशों से अधिक है, जिसमें सुधार की संभावना शेष है। उदाहरण के तौर पर अमरीका में ड्रग इल्यूटिड स्टैंट (डी.ई.एस.) की कीमत जो 62 हजार से 78 हजार रुपए बनती है, को भारत में 1 लाख 70 हजार रुपए तक बेचा जाता रहा। वहीं ब्रिटेन में उसकी कीमत 20 हजार से 30 हजार रुपए के बीच थी परंतु इटली में यह अधिकतम 33 हजार रुपए तथा जर्मनी में 14 हजार रुपए में उपलब्ध थे। इसी तरह घुलनशील स्टैंट जिन्हें बायोएब्जॉरेबल स्टैंट कहा जाता है, भारत में 2 लाख रुपए प्रति स्टैंट तक बेचा गया, जबकि अमरीका में यह 78 से 98 हजार रुपए, ब्रिटेन में 58 हजार से 83 हजार तथा जर्मनी में 63 हजार से 1 लाख 5 हजार तथा इटली में मात्र 56 हजार रुपए में मिल रहा था। हालांकि इनकी सुरक्षा और गुणवत्ता पर कई प्रश्नचिन्ह भी लगाए गए।
भारत में नजर मरीज की जेब पर
स्टैंट के खरीदारों में भारत एक बड़ा बाजार है परंतु फिर भी यहां खरीदारों को मुर्गा, बकरा समझकर हलाल किया जाता रहा, जबकि बड़े बाजार में कम्पनियां कम मार्जन पर अपना सामान बेचती हैं। बायोएब्जॉरेबल स्टैंट की 2014 की बिक्री के आंकड़े देखें तो यू.के. में मात्र 400 स्टैंट बिके, जबकि वर्ष 2013 में भारत में 8500 स्टैंट की बिक्री हो चुकी थी और हर स्टैंट 1.90 लाख से 2 लाख रुपए में बेचा गया। इसी तरह जर्मनी में ड्रग इल्यूटिड स्टैंट की कीमत 14 हजार रुपए है, जो भारत में तय की गई कीमत से आधी है।
राजू कलाम स्टैंट की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने ली थी बलि
स्टैंट निर्माण की दुनिया में भारत के पूर्व राष्ट्रपति, वैज्ञानिक और मिसाइल मैन के नाम से मशहूर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने भी देश के लिए एक स्टैंट का आविष्कार किया था, जिसकी कीमत 5 से 7 हजार रुपए (सारे खर्च डालकर) तय की गई थी। राजू कलाम स्टैंट नामक इस स्टैंट के बाजार में आने की घोषणा से ही अंतर्राष्ट्रीय स्टैंटों की कीमतों में रातों-रात कमी दर्ज की गई परंतु बाद में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के दबाव और कमीशन के चक्कर में इसे बलि का बकरा बना दिया गया। मेक इन इंडिया का नारा लगाने वालों की नजर शायद अभी इस ओर नहीं गई है।