गुरदासपुर में हार के बाद गुजरात और राजस्थान को लेकर छूटे पार्टी नेताओं के पसीने

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Oct, 2017 02:07 PM

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आम आदमी पार्टी की गुरदासपुर चुनाव में हार के बाद से राजनीतिक हलकों में चर्चा छिड़ी हुई है कि आखिर जिस प्रकार ‘आप’ का भविष्य दिल्ली के बाहर लगातार खतरे में पड़ रहा है उससे पार्टी का अस्तित्व ही कहीं खतरे में न पड़ जाए। सूत्रों के अनुसार पार्टी के लिए...

जालंधर (बुलंद): आम आदमी पार्टी की गुरदासपुर चुनाव में हार के बाद से राजनीतिक हलकों में चर्चा छिड़ी हुई है कि आखिर जिस प्रकार ‘आप’ का भविष्य दिल्ली के बाहर लगातार खतरे में पड़ रहा है उससे पार्टी का अस्तित्व ही कहीं खतरे में न पड़ जाए। सूत्रों के अनुसार पार्टी के लिए गुरदासपुर की हार बेहद परेशानियां पैदा कर गई है। पार्टी के उम्मीदवार सुरेश खजूरिया की जमानत जब्त हुई है और वह मात्र 23579 वोट ही हासिल कर पाए। 


गुरादसपुर सीट से हुर्इ पार्टी के उम्मीदवार की  जमानत जब्त
‘आप’ की पतली हालत ने पंजाब में पार्टी के भविष्य को साफ किया है। पार्टी के नेता सुखपाल खैहरा तो पहले ही कह चुके हैं कि नगर निगम चुनाव भी तकरीबन वही पार्टी जीतती है जिसकी सरकार हो। मतलब नगर निगम चुनावों में भी ‘आप’ का सूपड़ा साफ ही समझा जाए। ‘आप’ की हार से सियासी हलकों में कन्वीनर अरविंद केजरीवाल और पार्टी का सारा थिंक टैंक सवालों के घेरे में आ खड़ा हुआ है। गुरदासपुर चुनाव के लिए पार्टी की दिल्ली के बाद सबसे मजबूत इकाई के तौर पर जानी जाती पंजाब इकाई के सारे बड़े नेताओं, जिनमें भगवंत मान और सुखपाल खैहरा शामिल थे, ने पूरा जोर लगा दिया था कि चाहे पार्टी जीत न सके, पर कम से कम दूसरे नंबर पर तो आए, लेकिन हैरानीजनक तरीके से पार्टी के उम्मीदवार की तो जमानत ही जब्त हो गई। ऐसे में अब पार्टी के संगठनात्मक ढांचे पर सवाल खड़े हो रहे हैं। 


 पार्टी की दिल्ली में भी हो रही है हालत लगातार खराब
राजनीतिक माहिर मानते हैं कि अगर पंजाब जैसी मजबूत इकाई पार्टी के लोकसभा उम्मीदवार की जमानत जब्त होने से नहीं बचा पाई तो पार्टी किस आधार पर गुजरात और राजस्थान में जीत के सपने देख कर वहां चुनाव लडऩे जा रही है?पंजाब की इस गुरदासपुर सीट के लिए अगर हाईकमान पंजाब इकाई को जिम्मेदार ठहरा कर अपना पल्ला झाड़ भी ले तो पंजाब वि.स. चुनाव भी अभी 6 महीने पहले ही हुए हैं, उसमें तो सीधे केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह ने अपना पूरा जोर लगाया था फिर भी डेढ़ दर्जन सीटें मुश्किल से ही हासिल कर सके। ऐसे में अब पार्टी के लिए दिल्ली से बाहरी राज्यों में अपना आधार कायम रख पाना मुश्किल हो गया है। पार्टी की दिल्ली में भी हालत लगातार पतली हो रही है, क्योंकि न तो दिल्ली वालों को ट्रैफिक से निजात मिल पाई है और न ही दिल्ली में अपराध रुकने का नाम ले रहा है।


एल.जी. से पड़ा रहता है केजरीवाल का पंगा
दूसरा आए दिन केजरीवाल का एल.जी. से पंगा पड़ा रहता है, जिससे दिल्ली वालों में अब यह विचार घर करने लगा है कि अगर दिल्ली में किसी बड़ी पार्टी की सरकार हो, जिसका केंद्र में हाथ पड़ता हो तो ही दिल्ली का विकास हो सकेगा। ऐसे में केजरीवाल और उनके साथी नेताओं के पसीने छूटने स्वाभाविक हैं, क्योंकि बिना किसी ठोस आधार के गुजरात और राजस्थान में पार्टी को क्या नतीजे मिलेंगे, ये भी पार्टी के नेता जानते हैं। अगर पार्टी ने अपनी दिल्ली की सत्ता बचानी है और अन्य राज्यों में अपना आधार मजबूत करना है व 2019 लोकसभा चुनावों में कोई करिश्मा करना है तो जरूरत है कि पार्टी अपनी रणनीतियों में उचित बदलाव लाए, वर्ना पार्टी को भविष्य में अपने अस्तित्व के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ सकता है।

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