Edited By Vatika,Updated: 07 May, 2018 03:08 PM
कीचड़ में कमल खिलता हर किसी ने देखा और सुना होगा, पर कीचड़ से सोना निकलता शायद ही किसी ने देखा और सुना होगा। जी हां यह बात बिल्कुल सत्य है। छोटे से कस्बे अपरे की नालियों से रोजाना युवक सोना निकालकर अपना और परिवार का अच्छे से पालन-पोषण कर रहे हैं।
फिल्लौर/अपरा(भाखड़ी/दीपा): कीचड़ में कमल खिलता हर किसी ने देखा और सुना होगा, पर कीचड़ से सोना निकलता शायद ही किसी ने देखा और सुना होगा। जी हां यह बात बिल्कुल सत्य है। छोटे से कस्बे अपरे की नालियों से रोजाना युवक सोना निकालकर अपना और परिवार का अच्छे से पालन-पोषण कर रहे हैं।
सोने की मंडी के नाम से मशहूर फिल्लौर में पड़ता छोटा-सा कस्बा अपरा जहां प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश-विदेश से लोग शुद्ध सोने के गहने खरीदने और बेचने आते हैं। इस बाजार से निकलने वाली गंदे पानी की नालियों को साफ कर उसमें से कीचड़ निकालते आप को हर वक्त लोग दिखाई देंगे। यह लोग कोई सफाई कर्मचारी नही, बल्कि उक्त कीचड़ में से सोना निकालने वाले हैं।
ऐसे ही एक नौजवान युवक जो नाली से कीचड़ निकालकर इक्कठा कर रहा था, जब उससे पूछा तो उसने अपना नाम और पहचान गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि किचड़ से सोना निकालने का हुनर उसने अपने दादा से सिखा है। सोने का कारोबार करने वालों को लोग सुनियारा कहते हैं और उन्हें नियारीया, यह नाम उनका इसलिए पड़ा, क्योंकि पहले सुनियार जब अपनी दुकान में सफाई करते थे तो दुकान की सारी गंदगी एक बर्तन में डाल देते थे, उस बर्तन का नाम नियारीया होता था। शाम को जब हमारे बुजुर्ग दुकान पर जाते तो दुकानदार से नियारीया मांग सारी गंदगी लिफाफे में डाल घर ले आते, उसमें से सोने के कंकर निकाल लेते, जिसके बाद सभी दुकानदार उन्हें नियारीया नाम से ही पुकारने लग पड़े।
ऐसे किया जाता है कीचड़ से सोने व चांदी को अलग
अब सफाई कर्मचारी दुकान पर झाडू लगाकर दुकान से निकलने वाली मिट्टी को नाली में फैंक देते हैं, नाली की ढलान जहां खत्म होती है, वह वहां रूक कर उसमें से पूरी गंदगी बाहर निकाल उसे बोरियों में भर कर घर ले जाते हैं, जहां गंदगी को एक बर्तन में डालकर पहले उसमें तेजाब डाला जाता है, जिससे उन्हें गंदगी में सोना और चांदी कितनी मात्रा में उसका अनुमान लग जाता है। फिर उसमें एक कैमिकल डाल सोने और चांदी को अलग कर लिया जाता है। फिर उसमें पारा डाला जाता है, जिससे सोने की चमक साफ दिखाई देने लग पड़ती है, उसमें से सोना निकाल चांदी को अलग कर
लिया जाता है।
हर माह बेचता है 35 से 40 हजार का सोना-चादी
वह लुधियाना का रहने वाला है और रोजाना अपरा आकर चार से पांच घंटे नालियों में से सोने की गंदगी ढुंढकर निकाल वापस लुधियाना चला जाता है, जिससे वह माहभर में एक तोले से डेढ़ तोले सोना व आधा किलो के करीब चांदी इकट्ठी कर उसे दोबारा सुनियारे के पास 35 से 40 हजार में बेच अपना और परिवार का अच्छे से पालन-पोषण कर लेता है।
गंदगी से सोना निकालने वाले हर जिले व कस्बे में
गंदगी से सोना निकालने वाले उनकी बरादरी के लोग लगभग हर जिले के शहर और कस्बों में हैं। कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे के एरिया में जाकर इस प्रकार काम नहीं कर सकता, अगर पकड़ा जाए तो उसे कड़ा दंड लगाया जाता है। उसने बताया कि उनका यह धंधा अच्छा है, जहां पढ़े-लिखे नौजवान युवक रोजगार ढुंड रहे हैं, जबकि वह मात्र रोजान 4 घंटे काम कर हर माह का 40 हजार रुपए कमा लेते है।
पड़ोसी व रिश्तेदारों को नहीं बताते अपना धंधा
दुख की बात है कि वह अपने पड़ोस व पत्नी के रिश्तेदारों को उक्त काम के संबंध में नहीं बताते, उन्हें लगता है कि वह उन्हें बता देंगे तो हो सकता है कि दूसरे लोग भी उन्हें बुरी नजर से देखने लग पड़े। उसने खुद अपने रिश्तेदारों को अपना काम टैक्सी ड्राइवर का बताया हुआ है।
क्या कहते हैं कारोबारी?
इस संबंध में पूछने पर सोने के कारोबारी ने बताया कि कारगरों को जब वह सोना डिजाइन करने के लिए देते हैं तो सोने को तोड़ते वक्त उसके काफी कण जमीन पर गिर जाते हैं, जो सफाई के दौरान बाहर चले जाते हैं, जिसे यह लोग इस कीचड़ में से निकाल कर इकट्ठा कर दोबारा उन्हें के पास बेच जाते है। यह परंपरा शुरू से ही चलती आ रही है।