मोबाइल एडिक्शन: युवा पढ़ाई की बजाय खतरनाक गेम्स खेलने में बिता रहे समय

Edited By Vatika,Updated: 09 Mar, 2020 11:07 AM

game in mobile addiction

वह दिन बीत चुके जब बचपन मिट्टी में खेलते हुए गुजरता था। मिट्टी की इसी सौंधी खुशबू के साथ जवानी की दहलीज पर कदम रखा जाता था। आलम यह रहता था कि खेलते हुए अगर कहीं चोट खा बैठें तो रिसते हुए खून को भी मिट्टी लगाकर ही रोका जाता था।

करतारपुर(साहनी): वह दिन बीत चुके जब बचपन मिट्टी में खेलते हुए गुजरता था। मिट्टी की इसी सौंधी खुशबू के साथ जवानी की दहलीज पर कदम रखा जाता था। आलम यह रहता था कि खेलते हुए अगर कहीं चोट खा बैठें तो रिसते हुए खून को भी मिट्टी लगाकर ही रोका जाता था। यानी कि जख्म की कोई टैंशन नहीं, ठीक हो जाया करता था। दोस्तों-मित्रों के साथ बाहर निकलकर खेलों का आनंद तो लिया ही जाता था, मगर इसी के साथ पढ़ाई में भी एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ भी रहती थी।

80-90 के दशक के सुनहरे पलों को लोग आज भी याद करते हैं। स्मृतियां ऐसी कि बार-बार उनमें खोने का मन करता है। कारण यह था कि उस दौर में अपनापन था। एक-दूसरे के प्रति संवेदनाएं थीं। एक-दूसरे का दुख-दर्द अपना था। स्कूली दोस्तों का सामंजस्य ऐसा कि आधी छुट्टी होते ही एक-दूसरे के साथ खेलने की इ‘छा रहती। उस दौर में खेल घर के अंदर घुसकर नहीं, बल्कि बाहर निकलकर मैदान में इकट्ठे होकर साथ-साथ खेले जाते थे और यही एक-दूसरे को जोड़े भी रहता था। फिर ये खेल कबड्डी, पतंगबाजी, कुश्ती, आंख-मिचौली, गुल्ली डंडा, कंचे खेलना हों, सब आनंद तो देते ही थे। इसी के साथ आपस में प्रेमभाव को भी यथावत बनाए रखते थे। ऐसे में देर होने पर बड़ों की डांट भी एक अनोखी आत्मीयता देती थी। पंजाब की अमीर विरासत शादी समारोहों में एक-दूसरे को जोड़े रहती।

अफसोस कि यह कल्चर अब हकीकत में नहीं बल्कि सिर्फ पंजाबी गीतों की शोभा बन कर रह गया है। इसका कारण यह है कि आज की युवा पीढ़ी पर पश्चिमी कल्चर लगातार हावी होता जा रहा है। युवा अपनी संस्कृति से लगातार दूर होते चले जा रहे हैं। आज डिजीटल युग में युवा भले ही स्मार्ट हो चुके हैं, मगर अपनों और अपनी संस्कृति से कोसों दूर हो गए हैं। मोबाइल ने ऐसा माहौल बना दिया है कि एकसाथ रहने की बजाय अकेले रहना ’यादा पसंद कर रहे हैं। मोबाइल दिलो-दिमाग पर इस कद्र हावी हो चुका है कि युवा सारी-सारी रात खतरनाक गेम्स खेलने में बिता रहे हैं। हालांकि मोबाइल मन मस्तिष्क पर उल्टा प्रभाव डाल रहा है। नतीजतन स्वास्थ्य से संबंधित कई प्रॉब्लम आ रही हैं, बावजूद इसके युवा इसके एडिक्टेड हो चुके हैं। लगातार बढ़ रहे डांस रियालटी शो में महज 3-4 साल के बच्चे इस कद्र नाचते हैं कि दांतों तले अंगुलियां दबाना पड़ती हैं। मोबाइल ने कबड्डी, आंख-मिचौली, क्रिकेट जैसे खेलों को तो जैसे निगल ही लिया है। यही कारण है कि कम उम्र में ही बच्चों की आंखों पर मोटे-मोटे चश्मे चढ़ रहे हैं। अभिभावकों को चाहिए कि अपने बच्चों को मोबाइल एडिक्टेड होने से बचाएं तभी स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा और संस्कार भी संजीदा रहेंगे।

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