अमरजीत सिंह समरा की चुनाव को ‘न’, नकोदर हलका खाली

Edited By Updated: 10 Jan, 2017 01:46 PM

former cabinet minister amarjit singh samra

नकोदर हलके से कई बार कांग्रेस की टिकट पर विधायक चुने गए पंजाब के पूर्व कैबिनेट मंत्री अमरजीत सिंह समरा द्वारा इस बार उक्त हलके से चुनाव लडऩे से मना किए जाने के बाद अब कांग्रेस के पास यहां से चुनाव मैदान में उतारने के लिए कोई ठोस प्रत्याशी नहीं है

जालंधर(महेश): नकोदर हलके से कई बार कांग्रेस की टिकट पर विधायक चुने गए पंजाब के पूर्व कैबिनेट मंत्री अमरजीत सिंह समरा द्वारा इस बार उक्त हलके से चुनाव लडऩे से मना किए जाने के बाद अब कांग्रेस के पास यहां से चुनाव मैदान में उतारने के लिए कोई ठोस प्रत्याशी नहीं है, जिसके चलते हलका अभी तक खाली पड़ा हुआ है। नूरमहल हलके के पूर्व विधायक गुरबिन्द्र सिंह अटवाल यहां से टिकट की मांग कर रहे थे लेकिन अमरजीत सिंह समरा के साथ उनका 36 का आंकड़ा रहा है, जिसके चलते कांग्रेस हाईकमान ने गुरबिन्द्र सिंह अटवाल को नाराज न करते हुए उन्हें जिला कपूरथला के हलका भुलत्थ में टिकट देकर चुनाव मैदान में उतार दिया है। ऐसा कर पार्टी हाईकमान ने अमरजीत सिंह समरा की भी बात रख ली है।

हालांकि गुरबिन्द्र सिंह अटवाल टिकट लेने के बाद हलका भुलत्थ के टकसाली कांग्रेसियों का लगातार विरोध झेल रहे हैं। अटवाल के भुलत्थ चले जाने के बाद हलका नकोदर अब बिल्कुल खाली पड़ गया है। कांग्रेस यहां से जालंधर छावनी के पूर्व विधायक जगबीर सिंह बराड़ या परगट सिंह को चुनाव मैदान में उतारना चाहती है लेकिन दोनों में से कोई भी नकोदर हलके से चुनाव लडऩे के लिए राजी नहीं है। ये दोनों ही पार्टी की टिकट जालंधर कैंट हलके से ही लेने की जिद किए बैठे हैं। जगबीर सिंह बराड़ को कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की सपोर्ट है और परगट सिंह के पीछे नवजोत सिंह सिद्धू हैं, जिनके सहारे वह कांग्रेस में शामिल हुए हैं।

हलके के कांग्रेसी भी दुविधा में
अमरजीत सिंह समरा जालंधर छावनी हलके से टिकट मांग रहे थे क्योंकि उनका पैतृक गांव व शहर का घर दोनों इसी हलके में पड़ते हैं लेकिन पार्टी द्वारा कोई बात न बनती देख, वह खुद ही पीछे हट गए। इस समय नकोदर हलके के कांग्रेसी भी दुविधा में हैं कि पार्टी हाईकमान उनके हलके में किस नेता को प्रत्याशी बनाकर भेजती है। उनका यह भी मानना है कि टिकट की घोषणा में हो रही देरी भी पार्टी के लिए नुक्सानदायक हो सकती है क्योंकि जिस भी नए चेहरे को चुनाव मैदान में उतारा जाएगा, उसे हलके के पार्टी वर्करों तथा आम लोगों में अपना आधार बनाने में भी समय लग सकता है, जबकि चुनाव में मात्र 25 दिन शेष रह गए हैं।

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