Edited By Naresh Kumar,Updated: 26 Feb, 2019 09:15 AM
भारत-पाक सीमा के साथ सटी पंजाब की इस सीट के मौजूदा सांसद शेर सिंह घुबाया पिछले 3 वर्षों से पार्टी के साथ बगावत के मोड में हैं और इसी बगावत के चलते उनके बेटे ने कांग्रेस ज्वाइन की और फाजिल्का से विधायक बने। इस लोकसभा चुनाव के दौरान भी घुबाया का रुख...
जालन्धर(नरेश कुमार): भारत-पाक सीमा के साथ सटी पंजाब की इस सीट के मौजूदा सांसद शेर सिंह घुबाया पिछले 3 वर्षों से पार्टी के साथ बगावत के मोड में हैं और इसी बगावत के चलते उनके बेटे ने कांग्रेस ज्वाइन की और फाजिल्का से विधायक बने। इस लोकसभा चुनाव के दौरान भी घुबाया का रुख ही सीट का नतीजा तय कर सकता है।
कांग्रेस घुबाया को टिकट देती है तो वह तीसरी बार चुनाव जीतकर हैट्रिक करने की कोशिश करेंगे और यदि उन्हें टिकट नहीं मिलती तो वह अकाली दल की ही तरह कांग्रेस से नाराजगी भी जता सकते हैं। यदि उन्होंने पार्टी उम्मीदवार का विरोध न किया, लेकिन मदद भी न की तो भी सीट का नतीजा पलट सकता है।मतलब साफ है कि इस सीट पर एक्स फैक्टर घुबाया ही रहेंगे। हालांकि विधानसभा चुनाव से पहले एक महिला के साथ उनकी आपत्तिजनक वीडियो वायरल होने का उन्हें सियासी नुक्सान भी हो सकता है और इसी आधार पर उन्हें टिकट से इंकार भी हो सकता है। हालांकि पार्टी ने उन्हें टिकट के लिए मना नहीं किया है और उन्हें अगले कुछ दिनों में कांग्रेस में शामिल किया जा सकता है उनकी टिकट पर सस्पैंस बना हुआ है।
जनमेजा सेखों हो सकते हैं उम्मीदवार
अकाली दल के सरपरस्त मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की बहू व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल भी हलके में सक्रिय हैं और माना जा रहा है कि वह बठिंडा सीट की जगह फिरोजपुर से भी किस्मत आजमा सकती हैं। अकाली दल में इस बात पर मंथन चल रहा है कि यदि वह बठिंडा सीट छोड़ती हैं तो पार्टी कैडर में इसका गलत संदेश जा सकता है। लिहाजा उनके फिरोजपुर सीट से लडऩे पर सस्पैंस बना हुआ है। इस बीच अकाली दल की तरफ से पूर्व मंत्री जनमेजा सिंह सेखों और पूर्व सांसद जोरा सिंह मान के बेटे नरदेव सिंह मान भी अकाली दल के दावेदारों में से एक हैं।
कांग्रेस की तरफ से राणा सोढी भी दावेदार
हालांकि बताया जा रहा है कि इस सीट से मौजूदा सांसद शेर सिंह घुबाया जल्द ही कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं और पार्टी द्वारा उन्हें मैदान में उतारा जाना लगभग तय है लेकिन इसके बावजूद सीट के लिए खेल मंत्री राणा गुरमीत सोढी, उनके पुत्र हीरा सोढी के अलावा कै. संदीप सिंह सहित कांग्रेस के जिला स्तर के कई नेताओं ने भी इस सीट के टिकट के लिए आवेदन किया है। हालांकि इस बात का फैसला कांग्रेस हाईकमान द्वारा किया जाना है कि सीट से पार्टी का उम्मीदवार कौन होगा लेकिन घुबाया की हलके पर पकड़ को देखते हुए उनके नाम पर सहमति बन सकती है।
34 साल से नहीं जीत पाई कांग्रेस
वोटरों का मिजाज लगातार बदलता रहा है। हालांकि आजादी के बाद से यह सीट कांग्रेस के प्रभाव वाली थी लेकिन 1985 के बाद कांग्रेस पिछले 34 साल से इस सीट पर जीत के लिए तरस रही है। 1985 में आखिरी बार यहां पर कांग्रेस के उम्मीदवार गुरदियाल सिंह चुनाव जीते थे लेकिन उसके बाद हुए 8 लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस यह सीट जीत नहीं पाई है। पिछली बार कांग्रेस ने अपने हैवी वेट नेता सुनील जाखड़ को मैदान में उतारा था लेकिन वह भी चुनाव जीत नहीं पाए थे। विधानसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी ने इस सीट पर 2 लाख से ज्यादा वोट हासिल किए थे और मौजूदा दौर में आम आदमी पार्टी की हालत मजबूत न होने के कारण इस पार्टी के समर्थक वोटरों का रुझान इस सीट का नतीजा तय कर सकता है।
विधानसभा चुनाव में कमजोर हुआ अकाली दल
2014 के लोकसभा चुनाव में अकाली दल ने इस हलके के तहत फिरोजपुर ग्रामीण, गुरुहरसहाय, जलालाबाद, मुक्तसर व फाजिल्का सीटों पर बढ़त बनाई थी जबकि कांग्रेस फिरोजपुर शहरी, अबोहर, बल्लूआणा व मलोट सीटों पर आगे रही थी लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में अकाली दल की लीड जलालाबाद, अबोहर व मुक्तसर सीटों तक सीमित रह गई और कांग्रेस ने अन्य 6 हलकों पर कब्जा कर लिया। आम आदमी पार्टी को भी लोकसभा चुनाव के दौरान फिरोजपुर हलके में वोटों के लिहाज से फायदा हुआ था और उसे इस सीट के तहत 2014 में हासिल हुए 1,13,412 वोटों के मुकाबले 2017 में 2,43,886 वोट हासिल हुए। अकाली दल को वोटों के लिहाज से भी इस सीट पर विधानसभा चुनाव में नुक्सान हुआ। अकाली दल को 2014 में 4,87,932 वोट हासिल हुए थे जो 2017 में कम होकर 4,53,154 वोट रह गए।
फिरोजपुर सीट का इतिहास
साल |
विजेता |
पार्टी |
1957 |
इकबाल सिंह |
कांग्रेस |
1962 |
इकबाल सिंह |
कांग्रेस |
1967 |
एस. सिंह |
अकाली दल |
1971 |
महेंद्र सिंह |
कांग्रेस |
1977 |
महेंद्र सिंह |
अकाली दल |
1980 |
बलराम |
कांग्रेस |
1985 |
गुरदियाल सिंह |
कांग्रेस |
1989 |
ध्यान सिंह |
आजाद |
1992 |
मोहन सिंह |
बसपा |
1996 |
मोहन सिंह |
बसपा |
1998 |
जोरा सिंह |
अकाली दल |
1999 |
जोरा सिंह |
अकाली दल |
2004 |
जोरा सिंह |
अकाली दल |
2009 |
शेर सिंह |
अकाली दल |
2014 |
शेर सिंह |
अकाली दल |
संसद में शेर सिंह घुबाया
हाजिरी-66% |
सवाल पूछे-202 |
बहस में हिस्सा-44 |
प्राइवेट मैंबर बिल-0 |
फंड जारी-25 करोड़ |
ब्याज सहित फंड-25.90 करोड़ |
फंड खर्च-22.38 करोड़ |
फंड पैंडिंग-3.52 करोड़ |
मजबूत पक्षः |
हलके में बड़ी संख्या राय सिख वोटरों की है और घुबाया का इस वोट बैंक पर अ‘छा प्रभाव है। 2 बार सांसद रहने का भी फायदा होगा। |
कमजोर पक्षः |
वह लोगों के बीच नहीं गए। इसके अलावा 2017 में एक महिला के साथ आपत्तिजनक हालत में आया उनका वीडियो सियासी रूप से नुक्सानदायक साबित हो सकता है। |
आम आदमी पार्टी को मजबूत उम्मीदवार की तलाश
आम आदमी पार्टी ने पिछले चुनाव के दौरान इस सीट पर सतपाल कम्बोज को मैदान में उतारा था और वह एक लाख से ज्यादा वोट हासिल करने में कामयाब भी रहे थे। लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी के पास फिरोजपुर से मैदान में उतारने के लिए कोई सशक्त उम्मीदवार नहीं है। क्योंकि पार्टी के स्थानीय नेता गुरमीत बराड़ आम आदमी पार्टी के खैहरा धड़े में शामिल हो चुके हैं और खैहरा पंजाब एकता पार्टी की तरफ से उन्हें मैदान में उतार सकते हैं। लेकिन आम आदमी पार्टी द्वारा इस सीट से मजबूत चेहरे को मैदान में उतारने के लिए नेता की तलाश की जा रही है।