Edited By Anjna,Updated: 07 May, 2018 08:42 AM
देश-प्रदेश का अन्नदाता आज आर्थिक तंगी से गुजर रहा है। कई सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन किसानों की सुध लेने के नाम पर मात्र हो-हल्ला ही किया गया। सबका पेट भरने वाला जब दाने-दाने के लिए मोहताज हो जाता है तो उसे मौत को गले लगाने के सिवाय को रास्ता नजर...
मोगा (गोपी राऊंके): देश-प्रदेश का अन्नदाता आज आर्थिक तंगी से गुजर रहा है। कई सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन किसानों की सुध लेने के नाम पर मात्र हो-हल्ला ही किया गया। सबका पेट भरने वाला जब दाने-दाने के लिए मोहताज हो जाता है तो उसे मौत को गले लगाने के सिवाय को रास्ता नजर नहीं आता। गरीबी के कारण देश-प्रदेश का अन्नदाता सरकार की गलत नीतियों के कारण आत्महत्या करने के लिए मजबूर है। किसानों की बढ़ती आत्महत्याएं थमने का नाम ही नहीं ले रही हैं, अगर यही हाल रहा तो यह पूरे पंजाब के लिए घातक होगा। पीड़ित परिवारों की आंखों से अश्रु का प्रवाह नहीं थमता और हर समय उनका दिल द्रवित रहता है।
‘पंजाब केसरी’ की ओर से इस संबंध में एकत्रित की गई विशेष रिपोर्ट में यह तथ्य उभरकर सामने आया कि खेतीबाड़ी यूनिवॢसटी के आंकड़ों के अनुसार लगभग पिछले 7 वर्षों के समय दौरान राज्य भर में 16,606 किसानों व खेत मजदूरों ने मौत को गले लगाया है, जिनमें से 5,500 किसानों व खेत मजदूरों की आत्महत्याओं संबंधी सारा रिकार्ड पंजाब सरकार व जिला प्रशासनिक अधिकारियों के पास दर्ज है। सूत्र बताते हैं कि पीड़ित परिवारों में से अधिकतर को अभी तक सिवाए नाममात्र पैंशन के लाभ के बिना और कोई भी सरकारी सहूलियत नहीं मिल रही, जिस कारण पीड़ितों के परिवार दुखी होकर सरकार-प्रशासन के दरबार में ठोकरें खा रहे हैं। इतना ही नहीं यहां से भी इन परिवारों को मात्र कोरे आश्वासन ही मिलते हैं।
जिला मोगा के गांव दौलतपुरा नीवां की छिन्द्र कौर का कहना था कि उसके 3 बेटे व पति आत्महत्या कर गए, अब घर में कोई भी पुरुष नहीं रहा है। छिन्द्र कौर की आंखों से आंसू खुद ही बह रहे हैं। छिन्द्र कौर कहती है कि बेटों व पति के बिना जिंदगी जीने का कोई मकसद ही नहीं रहा।