चुनावी माहौल में पंजाब के किसानों को ‘प्रवासी मजदूरों’ की चिंता

Edited By swetha,Updated: 26 Mar, 2019 12:51 PM

farmer tension

एक तरफ प्रदेश में राजनीतिक माहौल गर्मा रहा है और राज्यभर में एक्टिव लोग राजनीति में दिलचस्पी ले रहे हैं। दूसरी तरफ किसान वर्ग अजब स्थिति में खुद को घिरा हुआ देख रहा है। मौसम में ठंडक के कारण ज्यादातर स्थानों पर गेहूं की फसल प्रफुल्लित हो रही है।...

चंडीगढ़(रमनजीत सिंह): एक तरफ प्रदेश में राजनीतिक माहौल गर्मा रहा है और राज्यभर में एक्टिव लोग राजनीति में दिलचस्पी ले रहे हैं। दूसरी तरफ किसान वर्ग अजब स्थिति में खुद को घिरा हुआ देख रहा है। मौसम में ठंडक के कारण ज्यादातर स्थानों पर गेहूं की फसल प्रफुल्लित हो रही है। संभावना है कि इस बार कटाई का काम अप्रैल मध्य से शुरू होकर मई मध्य तक चलेगा।

चुनावी सीजन के चलते फसल कटाई का सीजन सांसत में है। इसका कारण लोकसभा चुनाव ही हैं। पंजाब में फसल कटाई में किसानों का हाथ बंटाने वाले ज्यादातर दूसरे राज्यों के मजदूर होते हैं, जो चुनावी व्यस्तता दौरान अपने-अपने इलाकों में मिलने वाले ‘फायदों’ के लिए और पसंदीदा नेताओं के समर्थन के लिए अपने राज्य में ही ठहरे रहेंगे। कई पंजाब से अपने मूल राज्यों की तरफ रुख कर चुके हैं। 

इस हालात में पंजाब के किसानों को कटाई के लिए सहयोगी हाथों का मिलना और भी मुश्किल बनता जा रहा है। राज्य की राजनीति में अहम भूमिका निभाने वाले दोनों ही प्रमुख राजनीतिक धड़ों के साथ-साथ इस बार आम आदमी पार्टी और खैहरा-बैंस-गांधी पर आधारित पंजाब डैमोक्रेटिक अलायंस के कारण चुनावी माहौल अत्यधिक गर्माया हुआ है। यही कारण है कि राज्य में बड़ी संख्या में मौजूद खेतीबाड़ी से जुड़े ग्रामीण मतदाताओं को रिझाने व उनको रैलियों में शामिल करने के लिए सभी धड़े पूरा जोर लगा रहे हैं, जबकि खेतीबाड़ी से जुड़े ग्रामीण मतदाताओं की चिंता का विषय यह न होकर कुछ और ही है। किसानों को कटाई के बाद फसल खेत से मंडी तक ले जाने, संभाल, तूड़ी को ठिकाने लगाने जैसे कई काम होते हैं, जिसके लिए सहयोगी हाथों की जरूरत रहती है। यही वजह है कि पंजाब के किसान अब चिंतित हैं, क्योंकि दूसरे राज्यों से इस बार मजदूरों के कटाई सीजन दौरान आने की संभावना न के बराबर है।

खेतीबाड़ी में लेबर की कमी
पंजाब के ग्रामीण इलाकों में बसे स्थानीय खेतीहर मजदूरों की भी मौजूदा माहौल में पौ-बारह होने वाली है। एक तरफ राजनीतिक दल उन्हें दिहाड़ी पर रैलियों तक में शमूलियत करवाने के लिए तैयार करेंगे तो दूसरी तरफ जिन किसानों की फसल पकने पर है, वे भी उन्हें अपने साथ काम करने के लिए मनाएंगे। जाहिर बात है कि जिस तरफ से ज्यादा अच्छा पैकेज हासिल होगा, काम उसी तरफ होगा। खेतीबाड़ी में लेबर की कमी को लेकर ग्रामीण आर्थिकता के माहिर प्रोफैसर रणजीत सिंह घुम्मन ने कहा कि ऐसे माहौल में यह स्वाभाविक-सी बात है, क्योंकि पहले से ही मनरेगा की वजह से बाहरी राज्यों के कई मजदूर स्थायी तौर पर ही अपने-अपने राज्यों में लौट चुके हैं। बचे-खुचे मजदूर भी चुनाव के दौरान अपने इलाकों में राजनीतिक ताकत का साथ और घर के नजदीक कमाई के लालच में लौट जाते हैं। 

 
 


 

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