Edited By Punjab Kesari,Updated: 28 Sep, 2017 01:58 PM
नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा बढ़ते प्रदूषण को मुख्य रखते हुए समस्त देश में फसलों के अवशेषों को खुले में जलाने पर पाबंदी लगाने के कारण जिला प्रशासन एवं कृषि विभाग द्वारा किसानों को लगातार जागरूक करने हेतु किए गए प्रयासों का असर दिखाई देना शुरू हो...
पठानकोट (आदित्य, कंवल, नीरज): नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा बढ़ते प्रदूषण को मुख्य रखते हुए समस्त देश में फसलों के अवशेषों को खुले में जलाने पर पाबंदी लगाने के कारण जिला प्रशासन एवं कृषि विभाग द्वारा किसानों को लगातार जागरूक करने हेतु किए गए प्रयासों का असर दिखाई देना शुरू हो गया है।
पठानकोट में पिछले वर्ष किसानों ने धान की पराली को जलाने की बजाय पशु पालकों को चारे के तौर पर बेचा। गेहूं की कटाई के बाद कुछ किसानों द्वारा नाड़ को आग लगाए बगैर धान की बिजाई की गई जिसके काफी सार्थक परिणाम सामने आए हैं। ऐसे ही ब्लॉक पठानकोट के गांव जगतपुर के बलविन्द्र सिंह ऐसे किसान हैं, जिन्होंने गेहूं की नाड़ को आग लगाकर जलाने की बजाय उसे खेतों में जोतकर धान की बिजाई की है।
किसान बलविन्द्र सिंह ने कहा कि गांव जगतपुर के बहुत से किसानों ने धान की पराली को पिछले लम्बे समय से कभी भी आग नहीं लगाई। उन्होंने कहा कि धान की पराली को इलाके के पशु पालक मूल्य पर खरीद लेते हैं तथा गेहूं की बिजाई पराली को आग लगाए बगैर कर ली जाती है। नाड़ को खेत में जोतने से खेत की तासीर बदल गई और पानी भी कम लगाना पड़ा तथा यूरिया खाद की भी कम जरूरत पड़ी है।
उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि इस बार पिछले वर्ष से पैदावार अधिक निकलेगी।
नाड़ को खेत में जोतने पर तकरीबन 3 हजार रुपए प्रति एकड़ अधिक खर्च किसान को सहना पड़ता है, जिससे किसान की आर्थिकता पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने पंजाब सरकार से मांग की कि गेहूं व धान के अवशेषों को आग न लगाने वाले किसानों को उत्साहित करने हेतु 100 रुपए प्रति क्विंटल धान एवं गेहंू पर बोनस देना चाहिए। उन्होंने किसानों को भी अपील की कि फसलों के अवशेषों को आग लगाकर जलाने की बजाय खेत में तविया या रोटावेटर से जोत दें।