हाईकोर्ट ने पूर्व DGP सैनी की जमानत याचिका पर फैसला रखा सुरक्षित, परिवार समेत अभी भी हैं Under Groun

Edited By Vatika,Updated: 07 Sep, 2020 04:59 PM

ex dgp sumedh singh saini

बहुचर्चित मुल्तानी अगवा मामले में पंजाब के पूर्व डी.जी.पी. सुमेध सिंह सैनी की पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में जमानत और एफ.आई. आर को रद्द करने

चंडीगढ़ः बहुचर्चित मुल्तानी अगवा मामले में पंजाब के पूर्व डी.जी.पी. सुमेध सिंह सैनी की पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में जमानत और एफ.आई. आर को रद्द करने की याचिका पर सुनवाई हुई। दोनों ही याचिकाओं पर कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख दिया है। बहरहाल जब तक इस फैसले को सार्वजनिक नहीं किया जाता तब तक उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी रहेगी। गौरतलब है कि सैशन कोर्ट से जमानत याचिका खारिज होने के बाद पुलिस जगह-जगह उनकी गिरफ्तारी के लिए छापेमार रही है। इस बीच उन्होंने अपनी जमानत याचिका हाईकोर्ट में दायर की थी जिसकी सुनवाई करने से जस्टिस सुवीर सहगल ने शुक्रवार को इंकार कर दिया था। इससे पहले बीते बुधवार को भी जस्टिस अनमोल रतन ने भी याचिका पर सुनवाई से अपने हाथ पीछे खींच लिए थे। 

इसलिए सुनवाई से इंकार
हाईकोर्ट का जज बनने से पहले उक्त दोनों जस्टिस पंजाब सरकार की ओर से हाईकोर्ट में पैरवी कर रहे थे। इसके अलावा चंडीगढ़ प्रशासन के स्टैंडिंग काऊंसिल थे। यह वजह थी कि दोनों ने याचिकाओं पर सुनवाई से इंकार कर दिया था। 

क्या कहा था याचिका में..
सैनी ने जमानत याचिका में कहा कि उन्होंने इंटैलीजैंस विंग और विजीलैंस विंग के प्रमुख रहते हुए पी.पी.एस.सी., लुधियाना सिटी सैंटर, अमृतसर इम्प्रूवमैंट ट्रस्ट जैसे करोड़ों के घोटालों का पर्दाफाश किया था और वर्तमान सरकार के कई मंत्रियों व नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज किए थे, जिन्हें रफा-दफा करने के लिए उन पर दबाव बनाया गया था, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया था। यही वजह है कि उन पर बदले की भावना से केस दर्ज किया गया था। उन्होंने कहा था  कि 29 वर्ष पुराने मुल्तानी केस में 2 पूर्व इंस्पैक्टरों के बयानों के अलावा पुलिस के पास उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है। याचिका में कहा गया है कि दोनों इंस्पैक्टरों को भी धमका कर वायदा माफ गवाह बनाया गया है, जिसकी ऑडियो रिकॉर्डिंग मौजूद है। दूसरी याचिका में सैनी ने कहा कि चूंकि मुल्तानी किडनैपिंग मामले की जांच सी.बी.आई. कर चुकी है और सुप्रीम कोर्ट भी उन्हें आरोपमुक्त कर चुकी है, ऐसे में उसी मामले की एक और एफ.आई.आर. दर्ज करना असंवैधानिक है, जिसे रद्द किया जाए। 

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