क्या खालिस्तान समर्थकों के खिलाफ कड़े कदम उठाएंगे बोरिस जॉनसन

Edited By Vatika,Updated: 26 Jul, 2019 03:49 PM

england prime minister boris johnson

इंगलैंड के बने नए प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन (55) के भारत के साथ कम से कम 2 संबंध हैं। पहला यह कि उनकी पूर्व पत्नी मैरिका व्हीलर आंशिक रूप से भारतीय मूल की थीं तथा दूसरा उनके छोटे भाई फाइनैंशियल टाइम्स के 2006-07 में भारतीय संवाददाता रहे हैं।

नई दिल्ली/जालंधर (सोमनाथ): इंगलैंड के बने नए प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन (55) के भारत के साथ कम से कम 2 संबंध हैं। पहला यह कि उनकी पूर्व पत्नी मैरिका व्हीलर आंशिक रूप से भारतीय मूल की थीं तथा दूसरा उनके छोटे भाई फाइनैंशियल टाइम्स के 2006-07 में भारतीय संवाददाता रहे हैं।
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जॉनसन के भारत के साथ रिश्तों के मद्देनजर भारत-ब्रिटेन के द्विपक्षीय संबंधों में मजबूती आने की संभावनाएं हैं, जो 2016 में यूरोपियन यूनियन से अलग होने के लिए वोट देने के साथ नरम पड़ गए थे। जॉनसन ने विदेश सचिव के रूप में जब भारत का दौरा किया था तो उन्होंने एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ एक मुक्त व्यापार समझौता करना था, जो हस्ताक्षर के लिए तैयार था जब मार्च 2019 में ब्रिटेन यूरोपीय संघ से अलग हो गया था। जॉनसन ने जनवरी 2017 में अपनी यात्रा के दौरान कहा था, ‘‘समय बहुत तेजी के साथ बदल रहा है।
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हमें एक नए व्यापार समझौते के रूप में संबंधों को आगे बढ़ाने की जरूरत है।’’ भारत और जॉनसन सरकार के बीच राजनीतिक संबंधों को और मजबूत किया जा सकता है अगर ब्रिटेन खालिस्तान आंदोलन के समर्थकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करता है, जो पंजाब का बंटवारा कर सिखों के लिए एक अलग रा’य की मांग करते हैं। पिछली ब्रिटेन सरकार ने रैफरैंडम 2020 के नाम पर एक बड़े प्रदर्शन की योजना बनाने वाले खालिस्तान समर्थकों को अनुमति देने से इंकार करने बारे भारतीय अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था। यह बात भारत के साथ बेहतर रिश्तों के लिए अ‘छी नहीं थी। ब्रिटेन ने कहा था कि उनका कानून लोगों को एक जगह इकट्ठे होकर अपने विचार प्रकट करने की अनुमति देता है, बशर्ते वे कानून के भीतर रहकर ऐसा करते हों। इसके साथ ही भारतीय भगौड़े आर्थिक अपराधियों विजय माल्या और नीरव मोदी का प्रत्यर्पण भी द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने में सहायक हो सकता है।  

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भारत-ब्रिटेन व्यापारिक समझौता वार्ता
जॉनसन के प्रधानमंत्री का पदभार संभालने के साथ एक मुक्त व्यापार सौदे पर जोर जारी रखने की संभावना है। निवर्तमान प्रधानमंत्री थैरेसा मे ने ब्रेग्जिट पूरा होने के बाद स्वतंत्र व्यापार सौदों के लिए भारत, चीन और अमरीका को प्रमुख सांझेदार के रूप में पहचाना था और एक बड़े व्यापार प्रतिनिधिमंडल के साथ नवम्बर 2016 में उन्होंने भारत का दौरा किया था। उस यात्रा को तब यूरोप के बाहर विदेश में मे की पहली द्विपक्षीय यात्रा के रूप में माना गया था, जो भारत-ब्रिटेन संबंधों से जुड़े महत्व को दर्शाती थी लेकिन ब्रिटेन और भारत के बीच व्यापारिक समझौते पर बातचीत सफल नहीं हो सकी क्योंकि भारत को उन नियमों और शर्तों को देखने का इंतजार है जिनके तहत ब्रिटेन इस साल अक्तूबर में नई समय सीमा के अनुसार यूरोपीय संघ से अलग होता है। ‘कोई डील’ ब्रेग्जिट (जिसके तहत ब्रिटेन यूरोपीय संघ के साथ संबंधों पर कोई समझौता किए बिना यूरोपीय संघ को छोड़ देता है) को ब्रिटेन के लिए हानिकारक माना जाता है।

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भारतीयों के लिए आसान आव्रजन मानदंड चाहता है भारत
भारत अपने लोगों के लिए आसान आव्रजन मानदंडों के साथ एक समझौता चाहता है लेकिन विदेशियों को बाहर रखने पर ब्रेग्जिट के आधार पर यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि इस तरह की कोई बातचीत कैसे आगे बढ़ सकती है जब जॉनसन ब्रेग्जिट पोस्टर ब्वॉय के रूप में देखे गए हों। भारतीय विदेश मंत्रालय की वैबसाइट के अनुसार ब्रिटेन 26.6 अरब अमरीकी डॉलर (अप्रैल 2000-जून 2018) के संचयी इक्विटी निवेश के साथ मॉरीशस, सिंगापुर और जापान के बाद भारत में चौथा सबसे बड़ा निवेशक है।

भारत ब्रिटेन में तीसरा सबसे बड़ा निवेशक
वहीं भारत ब्रिटेन में तीसरा सबसे बड़ा निवेशक है और ब्रिटेन में 1,10,000 से अधिक नौकरियां सृजित करने वाली भारतीय कंपनियों के साथ भारत दूसरा सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय रोजगार निर्माता बन गया है। वैबसाइट पर एक नोट में कहा गया है कि ब्रिटेन में भारतीय कंपनियों का कुल समेकित राजस्व तकनीकी और दूरसंचार क्षेत्र के साथ 47.5 अरब पौंड है, जिसका राजस्व 31 प्रतिशत है। ब्रेग्जिट की शर्तें स्पष्ट हो जाने के बाद ये आंकड़े बदल सकते हैं। ब्रेग्जिट को लेकर अनिश्चितता ने कई भारतीय कंपनियों को नीदरलैंड जैसे देशों में अपने संचालन की जगहों को बदलने के लिए प्रेरित किया है। यूरोपीय संघ से अलग होने को लेकर अनिश्चितताओं को देखते हुए ब्रिटेन में नए निवेशों को शुरू करने में भारतीय कंपनियों की गति धीमी रही है।   

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