इंजीनियर एसोसिएशन ने काली पट्टी बांध किया संशोधित बिजली बिल 2020 का विरोध

Edited By Tania pathak,Updated: 25 Sep, 2020 02:26 PM

engineers association protest against revised electricity bill 2020

कृषि विधेयकों के खिलाफ देशव्यापी बंद के समर्थन में शुक्रवार को पावरकॉम इंजीनियर्स एसोसिएशन ने समर्थन देते हुए....

होशियारपुर (अमरेन्द्र मिश्रा): कृषि विधेयकों के खिलाफ देशव्यापी बंद के समर्थन में शुक्रवार को पावरकॉम इंजीनियर्स एसोसिएशन ने समर्थन देते हुए संशोधित बिजली बिल 2020 के खिलाफ काली पट्टी बांध विरोध जताया है। पावरकॉम इंजीनियर एसोसिएशन के कार्यकारिणी सदस्य इंजीनियर हरमिन्द्र सिंह, रीजनल सैक्रेटरी इंजीनियर संदीप शर्मा के साथ इंजीनियर राजीव जसवाल, यशपाल ने कहा कि सरकार जिस तरह नियमों की उल्लंघना कर कृषि विधेयकों को पास कर देश के किसानों के हितों को नुक्सान पहुंचाने का फैसला किया है इसी तरह अब सरकार बिजली वितरण के क्षेत्र में भी निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए संशोधित बिजली बिल 2020 पास करने की योजना को अंतिम रुप देने की तैयारी कर रही है उसका हम विरोध करते हैं। 

मुख्य विरोध बिजली वितरण निजी कंपनियों को सौंपने का
इंजीनियर्स एसोसिएशन का कहना है कि बिजली बिल 2020 में मुख्य विरोध बिजली वितरण का काम प्राइवेट कंपनियों को सौंपने का है, लेकिन बिहार के भागलपुर, गया और समस्तीपुर, मध्य प्रदेश में ग्वालियर, सागर और उज्जैन, महाराष्ट्र में औरंगाबाद, नागपुर, जलगांव, झारखंड में रांची व जमशेदपुर में बिजली वितरण को निजी हाथों में देने के प्रयोग असफल रहे हैं। सरकार ने महाराष्ट्र में एनरॉन और उड़ीसा में एईएस के अनुभवों से कुछ नहीं सीखा। ऐसा फैसला लेने से पहले भारत सरकार को बिजली क्षेत्र के निजीकरण के अब तक के अनुभव पर श्वेत पत्र लाना चाहिए। नई व्यवस्था में नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर व रीजनल लोड डिस्पेंस सेंटर को निजी कंपनियों के लिए कलेक्शन सेंटर बनाने का प्रावधान है। द इलेक्ट्रिसिटी कांट्रैक्ट एन्फोर्समेंट अथॉरिटी का गठन सिर्फ निजी कंपनियों के व्यावसायिक हितों को बचाने के लिए किया जा रहा है।

बड़े उद्योगपतियों को लाभ व किसानों व ग्रामीणों का होगा नुक्सान
इंजी.हरमिन्द्र सिंह व इंजी.संदीप शर्मा ने कहा कि संशोधित बिजली बिल 2020 के जरिए सरकार एक ही झटके में बिजली सब्सिडी व क्रॉस सब्सिडी को खत्म करना चाहती है। पूर्व सरकारों के समय महंगे बिजली खरीद समझौतों को लागू करवाने के लिए इलेक्ट्रिसिटी ट्रिब्यूनल का गठन करने का प्रावधान किया गया है। अगर कोई विवाद है तो यह ट्रिब्यूनल ही हल करवाएगा। केन्द्र सरकार ने अब तक राज्यों को इस बिजली के वितरण की कोई योजना नहीं बताई है। उल्टा राज्यों पर पेनाल्टी लगाने की तैयारी है। लागत के आधार पर बिजली दरें निर्धारित करने से 400 केवी या 220 केवी की ग्रिड से बिजली आपूर्ति वाले औद्योगिक क्षेत्रों में बिजली दरें कम हो जाएंगी इससे बड़े उद्योगपतियों को लाभ व किसानों व ग्रामीणों का नुकसान होगा।

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