चुनाव आयोग के डंडे ने ठंडा किया चुनावों का माहौल

Edited By swetha,Updated: 14 May, 2019 08:44 AM

election commission strictness

पिछले कुछ वर्षों से भारत के चुनाव आयोग द्वारा चुनावों के दौरान प्रत्याशियों के खर्चों और चुनाव प्रचार के तरीकों संबंधी कई नियम  बनाकर उन्हें सख्ती से लागू करवाए जाने से बहुत से स्थानों पर चुनाव प्रचार का तरीका बदल गया है।

गुरदासपुर  (हरमनप्रीत): पिछले कुछ वर्षों से भारत के चुनाव आयोग द्वारा चुनावों के दौरान प्रत्याशियों के खर्चों और चुनाव प्रचार के तरीकों संबंधी कई नियम  बनाकर उन्हें सख्ती से लागू करवाए जाने से बहुत से स्थानों पर चुनाव प्रचार का तरीका बदल गया है। इसके अंतर्गत चुनाव आयोग के डंडे ने न सिर्फ चुनावों का माहौल ठंडा किया दिया है, बल्कि इससे गांवों-शहरों में लोगों को ऊंची आवाज वाले स्पीकरों तथा शोर-शराबे से भी बड़ी राहत मिली है।

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गौरतलब है कि देश के चुनाव आयोग ने प्रत्येक चुनाव के दौरान संबंधित प्रत्याशी द्वारा किए जाने वाले खर्चे की एक सीमा तय कर दी है। इसके अंतर्गत उस प्रत्याशी को निर्धारित सीमा से अधिक खर्च करने की अनुमति नहीं है। इस फैसले को सख्ती से लागू करवाने हेतु चुनाव आयोग ने प्रत्येक क्षेत्र में खर्चा टीमों का गठन किया है, जो चुनाव प्रचार के दौरान प्रयोग की जाने वाली छोटी से छोटी चीज के खर्चे का भी हिसाब-किताब रखती है। इस दौरान प्रत्याशियों ने खुद ही कई तरह के खर्च घटा दिए हैं। इनमें गाडियों के बड़े-बड़े काफिलों का रुझान, प्रत्येक गली-मोहल्ले और बाजार में स्पीकर वाले रिक्शा तथा टैंपो के माध्यम से प्रचार समेत कई तरीकों को बदल दिया है। 

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खत्म हुए कई रुझान
चुनाव आयोग द्वारा की गई सख्ती से प्रत्याशियों द्वारा विज्ञापन, बैनर, झंडियां व ऐसी अन्य सामग्री प्रकाशित करवा कर उन्हें बांटने और दीवारों पर चिपकाने वाला पुराना रुझान भी अब खत्म होता दिखाई दे रहा है। इस बार चुनिंदा स्थानों पर ही किसी प्रत्याशी का कोई बैनर या विज्ञापन दिखाई दे रहा है। यहीं बस नहीं, पहले गांवों में विभिन्न दलों के समर्थक लोग सार्वजनिक स्थानों और गलियों में झंडियां लगाने के लिए आपस में झगड़ते थे, मगर इस मामले में चुनाव आयोग द्वारा सख्ती से यह भी खत्म हो चुका है। इस बार प्रत्याशी की ओर से की जाने वाली छोटी से छोटी बैठक/रैली वाले स्थान पर ही अधिकतर बैनर और झंडे दिखाई देते हैं। कुछ समय पहले तक पार्टियों के वर्कर व नेता प्रत्याशियों को सिक्कों और लड्डुओं से तोल कर अपना समर्थन देते थे, मगर यह रुझान भी अब खत्म होता दिखाई दे रहा है। 

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प्रमुख तरीकों पर हावी होने लगा सोशल मीडिया
दूसरी तरफ समय के बदलाव से अब सोशल मीडिया चुनाव प्रचार के पुराने तरीकों पर हावी होता दिखाई दे रहा है। बहुत से प्रत्याशी पुराने तरीके अपनाने की बजाए अब सोशल मीडिया को भी हथियार बनाकर पूरी तरह इस का लाभ ले रहे हैं। भले ही चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया पर होने वाले प्रचार संबंधी होने वाले चुनाव खर्च व अन्य तथ्यों पर निगरानी रर्खी है, मगर फिर भी नियमों को अपनाकर प्रत्याशियों द्वारा इस माध्यम को अपने प्रचार के लिए प्रयोग किया जा रहा है। 

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