पंजाब वन विभाग बेबस फाइलों में धूल फांक रही शिकायतें,कार्रवाई के लिए करें सिर्फ इंतजार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 25 Oct, 2017 10:33 AM

due to dustfire complaints in punjab forest department helpless files

पंजाब लैंड प्रिजर्वेशन एक्ट (पी.एल.पी.ए.) से डी-लिस्ट भूमि संबंधित उल्लंघन के मामले पंजाब वन विभाग के लिए सिरदर्द बनते जा रहे हैं।

चंडीगढ़(अश्वनी कुमार) : पंजाब लैंड प्रिजर्वेशन एक्ट (पी.एल.पी.ए.) से डी-लिस्ट भूमि संबंधित उल्लंघन के मामले पंजाब वन विभाग के लिए सिरदर्द बनते जा रहे हैं। विभाग की फाइलों में सैकड़ों शिकायतें कार्रवाई का इंतजार कर रही हैं, लेकिन इनका निपटारा नहीं हो पा रहा। ऐसा इसलिए है कि विभाग इन शिकायतों को संबंधित विभागों के पास भेज तो देता है मगर इन पर कार्रवाई हुई या नहीं, इसका जवाब आमतौर पर नहीं मिल पाता। नतीजा, अमूमन शिकायतें विभाग की फाइलों में धूल फांकती रहती हैं।
विभाग चाहकर भी इन शिकायतों पर सीधे कार्रवाई नहीं कर सकता क्योंकि पंजाब सरकार ने 2010 में डी-लिस्ट भूमि को वन भूमि की श्रेणी से बाहर कर दिया था। हालांकि  केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के स्तर पर अभी भी डी-लिस्ट भूमि को वन भूमि ही माना जा रहा है। इसी के चलते डी-लिस्ट भूमि पर कोई भी व्यापारिक गतिविधि चलाने से पहले मौजूदा समय में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय से अनुमति लेनी पड़ती है।
ऐसे में आमतौर पर जब भी डी-लिस्ट भूमि पर कोई अवैध तौर पर व्यापारिक गतिविधि होती है तो शिकायतकत्र्ता इसकी शिकायत सीधे वन विभाग को करते हैं लेकिन विभाग 2010 के आदेश की वजह से चाहकर भी सीधे कार्रवाई नहीं कर पाता है।

 

होस्टल बनाने पर की थी शिकायत मगर जवाब तक नहीं मिला
मोहाली के डी.एफ.ओ. की तरफ से हाल ही में ग्रेटर मोहाली एरिया डिवैल्पमैंट अथॉरिटी को भेजी गई शिकायत, जिसका जवाब तक अथॉरिटी ने नहीं दिया है। पत्र में कहा गया है कि सिसवां में डी-लिस्ट व पंजाब लैंड प्रिजर्वेशन एक्ट के तहत क्लोज्ड एरिया पर अवैध तरीके से होस्टल का निर्माण किया जा रहा है इसलिए अनुरोध है कि कानूनी कार्रवाई की जाए।


 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हुई 2010 में बैठक

2010 में पंजाब के चीफ सैक्रेटरी ने रोपड़, नवांशहर, होशियारपुर व गुरदासपुर के डी-लिस्ट एरिया पर विचार-विमर्श के लिए बैठक बुलाई। इसमें सुप्रीम कोर्ट के 1996 में दिए गए आदेश का हवाला दिया गया, जिसमें बिना केंद्र की अनुमति किसी भी वन भूमि को गैर वन भूमि घोषित करने पर रोक लगाने की बात कही गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों से वन भूमि का ब्यौरा भी मांगा था। इसके तहत पंजाब सरकार ने कंडी एरिया में पंजाब लैंड प्रिजर्वेशन एक्ट के अधीन मैनेज की जा रही 1,65,000 हैक्टेयर वन भूमि की लिस्ट सौंपी थी। 1999 के दौरान पंजाब सरकार ने कंडी एरिया में आबादी व कृषि भूमि वाले क्षेत्र को फॉरैस्ट की श्रेणी से बाहर करने की मांग की, जिस पर यह मामला सैंट्रल इ पॉवर्ड कमेटी के पास चला गया। कमेटी ने आबादी व कृषि भूमि को फॉरैस्ट की श्रेणी से बाहर करने को हरी झंडी दिखा दी तो सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को निर्देश दिए कि वह पंजाब सरकार के प्रस्ताव पर गौर करे। मंत्रालय ने 2006 में कृषि व आबादी वाले एरिया को फॉरेस्ट लिस्ट से डी-लिस्ट करने की मंजूरी दी लेकिन कुछ शर्तें भी लगा दीं। सबसे अहम शर्त यह है कि राज्य सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि डी-लिस्ट एरिया पर कोई व्यापारिक गतिविधि न चलाई जाए। 

 

चीफ सैक्रेटरी की फॉरैस्ट लिस्ट से डी-लिस्ट किया एरिया
2010 में हुई बैठक में वन मंत्रालय की शर्तों को ध्यान में रखते हुए करीब 56,047.65 हैक्टेयर भूमि को वन भूमि की श्रेणी से बाहर करने का निर्णय लिया गया। बैठक में डी-लिस्ट किया गया एरिया वन भूमि नहीं कहलाएगा। साथ ही लैंड यूज को रैग्यूलेट करने व कानूनी कार्रवाई की पूरी जिम्मेदारी विभिन्न विभागों के जिम्मे होगी। मसलन अगर डी-लिस्ट एरिया टाऊन प्लानिंग के अधीन है तो टाऊन प्लानिंग जिम्मेदार होगा और यह लोकल बॉडी के अधीन है तो लोकल बॉडी उल्लंघन पर कानूनी कार्रवाई का जिम्मेदार होगा।


 

मंत्रालय ने चिट्ठी लिख कहा, वन भूमि कहा जाए
पंजाब की तरफ से डी-लिस्ट एरिया को वन भूमि की श्रेणी से बाहर किए जाने के बाद भी मौजूदा समय में डी-लिस्ट भूमि पर व्यापारिक गतिविधियों की मंजूरी मंत्रालय के स्तर पर लेनी पड़ती है। बाकायदा विभाग का आई.एफ.एस. अधिकारी सभी प्रस्ताव केंद्र को भेजता है। इसी दुविधा के चलते मंत्रालय के चंडीगढ़ स्थित क्षेत्रीय कार्यालय ने मंत्रालय को चिट्ठी लिख स्थिति स्पष्ट करने का आग्रह किया था, जिसके जवाब में मंत्रालय ने लिखा कि डी-लिस्ट एरिया को वन भूमि के तौर पर ही परिभाषित किया जाए। 

 

नियमानुसार निपटा रहे शिकायतें


पंजाब लैंड प्रिजर्वेशन एक्ट के अधीन भूमि से डी-लिस्ट किया गया एरिया वन भूमि नहीं है। बाकायदा यह निर्णय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के स्तर पर लिया गया है। बेशक डी-लिस्ट भूमि के इस्तेमाल को लेकर पर्यावरण मंत्रालय ने कुछ शर्तें लगाई हैं जिन्हें सख्ती से अमल में लाया जा रहा है। जहां तक बात शिकायतों के निपटारे की है तो उन्हें भी नियामानुसार निपटाया जा रहा है।
-जितेंद्र शर्मा, हेड ऑफ फॉरैस्ट फोर्स, पिं्रसीपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरैस्ट, पंजाब

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