Edited By Suraj Thakur,Updated: 25 Dec, 2018 01:41 PM
पंजाब में नशा खत्म करने के दावे कांग्रेस सरकार के राज में आज भी उतने ही खोखले हैं जितना कि शिअद और भाजपा गठबंधन सरकार के समय थे। विशेषज्ञों की माने तो पंजाब में नशे के कारोबार और राजनीति का चोली दामन का साथ है। यह कहना वाजिब होगा कि पंजाब 'नशीले...
पंजाब डेस्क। (सूरज ठाकुर) पंजाब में नशा आज भी बड़ी चुनौती है। चुनावों से पूर्व कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने हाथ में गुटका साहिब लेकर कसम खाई थी, कि सत्ता में आने के बाद वह चार हफ्तों में पंजाब से नशा खत्म कर देंगे। हालांकि पौने दो साल होने के बाद भी यह बीमारी ठीक नहीं हो पाई। सत्ता में आने के बाद कैप्टन ने नशों के खिलाफ पुलिस को कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए, लेकिन नशे के कारोबारियों में राजनेता होने के कारण इस बीमारी का इलाज नहीं हो पाया। पूर्व IAS अधिकारी शशिकांत ने इस बाबत शिअद भाजपा गठबंधन को भी एक रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें दावा किया गया था कि 'पंजाब पुलिस, नारकोटिक्स नियंत्रण ब्यूरो, खुफिया ब्यूरो एवं सीमा सुरक्षा बल के जवान भी कानूनी वर्दी की आड़ में इस धंधे में संलिप्त हैं। नशे से आए दिन पंजाब में कई मौतें हो रही हैं। लाखों यवाओं को नशे के इंजेक्शन लगाने की लत पड़ चुकी है। अब देखना यह होगा कि क्या कैप्टन सरकार पंजाब से नशे का अंत कर पाएगी? या फिर उसे भी शिअद भाजपा सरकार की तरह आलोचना का सामना करना पड़ेगा।
ड्रग्स और राजनीति....
अगर ड्रग्स और राजनीति के कनेक्शन की बात की जाए तो आपको बता दें कि जनवरी, 2014 में पहलवान से ड्रग तस्कर बने जगदीश सिंह भोला ने दावा किया था कि पंजाब के पूर्व राजस्व मंत्री ब्रिक्रम सिंह मजीठिया कई करोड़ रुपये की ड्रग तस्करी के रैकेट में संलिप्त थे। यह मामला अभी अदालत में विचाराधीन है, और इसमें कई राजनीतिज्ञ आरोपी भी बनाए गए हैं।
सरकार प्रयास तो कर रही है लेकिन, स्थिति वहीं...
ऐसा भी नहीं है कि सरकार पौने दो साल बीत जाने के बाद कुछ भी नहीं कर रही है। सरकार ने इस समस्या के निपटने के लिए कई उपाय अपनाए हैं। सरकार ने पंजाब के विभिन्न हिस्सों में नशामुक्ति केंद्र खोल रखे हैं। स्वास्थ्य विभाग ने पिछले साल अक्टूबर में तीन जिलों में विशेष क्लिनिकों की शुरुआत की है। बाद में अन्य जिलों में भी इन्हें खोला गया है। इससे पहले की एनडीए सरकार ने भी साल 2014 में इस तरह की कोशिश की थी। नशे की लत के शिकार लोगों को बसों में भर-भर कर नशा मुक्ति केंद्र पहुंचाया जाता था। ये काम अक्सर पुलिस वाले करते थे और उन्हें नशे के आदि मरीजों के टारगेट दिए जाते थे। पर हैरत की बात तो यह है इतने प्रयास करने के बावजूद स्थिति वहीं की वहीं है।
नशा करने वालों के आंकड़ों का उतार चढ़ाव....
अक्टूबर 2017 से जुलाई 2018 तक नशामुक्ति केंद्रों में आने वाले मरीजों की कुल संख्या 21,263 थी। इनमें से केवल जुलाई में 13,589 मरीज यहां इलाज करवाने पहुंचे थे। राज्य के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक सूबे में 2014 में ऐसे मरीजों की संख्या करीब 2.89 लाख थी। 2015 में नशा मुक्ति केंद्र में आने वाले मरीजों की संख्या 1.89 लाख थी। 2016 में संख्या में और गिरावट देखी गई और आंकड़ा 1.49 लाख पर पहुंच गया। वहीं 2017 में मरीजों की संख्या 1.08 लाख हो गई। पंजाब में सालाना 7500 करोड़ के ड्रग्स की खपत होती है, जिसमें 6500 करोड़ की सिर्फ हेरोइन ही शामिल है। सूबे में 8.60 लाख लोग अफीम के आदी हैं। करीब 1 लाख 23 हजार लोग हेरोइन का नशा करने वाले हैं। हेरोइन का नशा करने वाले का एक दिन का औसतन खर्च लगभग 1400 रुपए है।
पंजाब में नशे की लत वालों को सप्लाई के लिए किया जा रहा है इस्तेमाल...
कांग्रेस सरकार के नशे के खिलाफ छेड़े गए अभियान के तहत कुछ तस्करों समेत नशा करने वाले हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया। यहां आपको यह बताना जरूरी है कि एनडीपीएस कानून के वर्तमान प्रावधानों के अनुसार पांच ग्राम से कम मात्रा में हेरोईन की जब्ती पर छह महीनों तक की कैद एवं 10,000 रुपये तक के जुर्माने का ही प्रावधान है। अब कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आते ही छोटे-मोटे नशेड़ियों को जेलों में बंद करना शुरू कर दिया। तस्करी के बाद पंजाब में हेरोईन पहुंच जाने के बाद बड़ी मात्रा में इसकी आपूर्ति नहीं की जाती। ज्यादातर मामलों में, नशे की लत वाले लोगों को ड्रग्स सप्लाई करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। नशा करने वालों को कम मात्रा में नशे की सप्लाई के लिए बाध्य किया जाता है ताकि पकड़ जाने पर बड़े तस्कर का ज्यादा नुकसान न हो। ऐसे हालात में पुलिस विभाग ने नशे से निपटने के लिए ऐसे 485 लोगों की फेहरिस्त बना रखी है, जो सीधे तौर पर नशे की तस्करी से जुड़े हुए हैं।
पंजाब के पूर्व IPS अधिकारी ने किया था अहम खुलासा....
पूर्व IPS अधिकारी शशि कांत ने दावा किया था कि बड़ी राजनीतिज्ञ पार्टियों की नशे के सौदागरों के साथ सांठ-गांठ है। उन्होंने अपने कार्यकाल में ड्रग्स की तस्करी में संलिप्त 90 व्यक्तियों की सूची बनाई थी और उसे तत्तकालीन शिरोमणि आकाली दल व भाजपा गठबंधन सरकार को सौंपा था। इस सूची में कुछ स्वयं सेवी संस्थाएं भी शामिल थीं। इस सूची पर सरकार खामोश ही रही। शशि कांत ने पंजाब उच्च न्यायालय के सामने बताया था कि राजनीतिक चुनाव अभियानों के बढ़ते खर्च की वजह से धीरे धीरे ड्रग धंधे के पैसे पर अधिक से अधिक निर्भर होते जा रहे हैं। कांत ने यहां तक दावा किया है कि 'पंजाब पुलिस, नारकोटिक्स नियंत्रण ब्यूरो, खुफिया ब्यूरो एवं सीमा सुरक्षा बल के जवान भी कानूनी वर्दी की आड़ में इस धंधे में संलिप्त हैं।'
2016 में नशे के कारोबारी 53 पंजाब पुलिस के जवान हुए थे गिरफ्तार...
पंजाब में कांग्रेस सरकार आने से पहले भी हालात संतोष जनक नहीं थे। 2016 में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजीजू ने भी जून 2016 में राज्यसभा में यह तथ्य स्वीकार किए थे कि पंजाब पुलिस, राज्य जेल विभाग, पंजाब होम गार्ड, बीएसएफ, रेल सुरक्षा बल एवं चंडीगढ़ पुलिस के कर्मचारी नशीली दवाओं के कारोबार में संलिप्त थे। राज्यसभा में उन्होंने तथ्य उजागर करते जानकारी दी थी कि नशीली दवाओं के कारोबार में शामिल इन विभागों के 68 कर्मचारियों को गिरफ्तार किया गया था। इनमें से 53 जवान पंजाब पुलिस के ही थे। 7 राज्य जेल विभाग के, 4 बीएसएफ के, 2 पंजाब होम गार्ड के एवं 1 चंडीगढ़ पुलिस का जवान भी इसी सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था।
ऐसे होती है सीमा पर निगरानी....
पंजाब में, भारत एवं पाकिस्तान के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा (आईबी) 553 किमी लंबी है। बीएसएफ की लगभग 18 बटालियनें नाइट विजन डिवाइस (एनवीडी), हैंड हेल्ड थर्मल इमेजर (एचएचटीआई), बैटल फील्ड सर्वेलेंस राडार (बीएफएसआर), लॉंग रेंज फाइंडर एवं हाई पावर्ड टेलीस्कॉप जैसे आधुनिक प्रौद्योगिकीय उपकरणों की सहायता से कांटेदार सीमा रेखा की निगरानी करती है। अब सवाल यह उठता है कि क्या वर्तमान सरकार के उठाए गए कदम पंजाब को ड्रग्स मुक्त बना पाएंगे? या फिर ये उपाय राजनीतिक शोर में गुम हो जाएंगे।