Edited By Vatika,Updated: 27 Jul, 2018 08:39 AM
पंजाब नशे के कारोबार का हब बन चुका है। एक तरफ सरकार व पुलिस विभाग नशा तस्करों की सप्लाई लाइन तोडऩे का दावा कर रहा है तो दूसरी तरफ लगातार नशे का कारोबार अपने पैर पसार रहा है और लगातार बरामदगी का खेल जारी है। अगर सप्लाई लाइन टूट गई तो नशा कहां से और...
जालंधर(रविंदर): पंजाब नशे के कारोबार का हब बन चुका है। एक तरफ सरकार व पुलिस विभाग नशा तस्करों की सप्लाई लाइन तोडऩे का दावा कर रहा है तो दूसरी तरफ लगातार नशे का कारोबार अपने पैर पसार रहा है और लगातार बरामदगी का खेल जारी है। अगर सप्लाई लाइन टूट गई तो नशा कहां से और कैसे आ रहा है, का पुलिस अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं है।
एक अनुमान के अनुसार पंजाब में हर साल नशे का कारोबार 2000 करोड़ के करीब है। जब इस कारोबार में इतनी बड़ी रकम शामिल हो तो फिर इस खेल में बड़ी मछलियों, राजनेताओं व खाकी वर्दी का शामिल होना भी कोई हैरानीजनक बात नहीं है। कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने सत्ता में आने से पहले गुटका साहिब हाथ में पकड़ कर जनता के सामने कसम खाई थी कि 4 सप्ताह में वह पंजाब से नशा खत्म कर देंगे, मगर सत्ता में आने के बाद सिर्फ एस.टी.एफ. बनाने के बाद सरकार ने अपनी ड्यूटी खत्म समझ ली थी और 15 महीने तक नशे का कारोबार बदस्तूर जारी रहा। इस दौरान पिछले 3 महीनों में जब 70 से ज्यादा मौतें पंजाब में नशे की ओवरडोज से हुई तो कांग्रेस सरकार पूरी तरह से जनता के कटघरे में खड़ी नजर आई। पिछले 15 माह में राज्यभर से पुलिस ने 337 किलोग्राम हैरोइन पकड़ी है, जिसकी अंतर्राष्ट्रीय कीमत 1885 करोड़ रुपए है।
इसके अलावा पिछले 15 माह में पुलिस ने 14.336 किलोग्राम स्मैक, 116.603 किलोग्राम चरस, 1040.531 किलोग्राम अफीम, 50588 किलोग्राम भुक्की, 44929 नशीले टीके और 48,10,540 नशीली गोलियां जब्त की हैं। चूंकि प्रदेश भर में नशा माफिया के साथ खाकी वर्दी का गठजोड़ पाया गया है तो नशा तस्करों व नशे पर लगाम लगाना सरकार के लिए आसान काम साबित नहीं होने वाला है। एक तरफ अगर सरकार गंभीरता से खाकी वर्दी पर कार्रवाई करती है तो काफी संख्या में पुलिस अधिकारी व कर्मचारी इसमें संलिप्त पाए जा सकते हैं। ऐसे में सरकार को पुलिस फोर्स में ही बगावत होने का डर सताने लगेगा। तभी निचले स्तर पर खाकी वर्दी पर शिकंजा कसा जा रहा है, मगर ऊपरी स्तर पर अधिकारियों के खिलाफ सिर्फ जांच बिठा कर मामले को ठंडे बस्ते में डाला जा रहा है। नशे का मुद्दा इस कदर प्रदेश में हावी हो चुका है कि मुख्यमंत्री व डी.जी.पी. को खुद आकर इस मामले में सफाई देनी पड़ रही है।
सुरिन्द्र चौधरी को पॉजीटिव रिपोर्ट के बाद नेताओं ने किए हाथ खड़े
डोप टैस्ट का खेल खेलकर चाहे सरकार ने कूटनीतिक तौर पर नशे के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डालने का प्रयास किया, मगर यह फार्मूला फिट नहीं होने वाला। सरकारी मुलाजिम साफ तौर पर डोप टैस्ट करवाने से मना कर चुके हैं। उनका कहना है कि 80 प्रतिशत से ज्यादा मुलाजिम कोई न कोई दवा लेते हैं और उनका डोप टैस्ट पॉजीविट आना लाजमी है जिससे उनकी नौकरी को खतरा हो सकता है। इस कार्य पर करोड़ों रुपए का खर्चा भी आएगा। दूसरी तरफ कांग्रेसी नेताओं में डोप टैस्ट करवाने की जो होड़-सी मची थी, वह विधायक सुरिन्द्र चौधरी के पॉजीटिव रिपोर्ट आने के बाद से थम गई है। अब नेताओं को डर सताने लगा है कि अगर उनका भी डोप टैस्ट पॉजीटिव आ गया तोसरकार व पार्टी की और ज्यादा किरकिरी हो सकती है।