कॉल ब्रेक व कनैक्टीविटी डिस्टर्बैंस से जूझ रहे देशवासी,उपभोक्ता 81 करोड़, मोबाइल टॉवर मात्र 4.5 लाख

Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Apr, 2018 12:38 PM

countrywide dealing with call break and connectivity disturbance

विश्व भर में मोबाइल टैक्नोलॉजी के पिछले वर्षों के दौैरान कई गुणा बेहतर होने के बावजूद भारत में पिछले 2 वर्षों से कॉल ब्रेक के कारण इसकी क्वालिटी का ग्राफ बराबर गिरता जा रहा है।

अमृतसर  (इन्द्रजीत, वड़ैच) : विश्व भर में मोबाइल टैक्नोलॉजी के पिछले वर्षों के दौैरान कई गुणा बेहतर होने के बावजूद भारत में पिछले 2 वर्षों से कॉल ब्रेक के कारण इसकी क्वालिटी का ग्राफ बराबर गिरता जा रहा है। यहां तक कि कॉल ब्रेक के साथ बार-बार कनैक्टीविटी का डिस्टर्ब हो जाना मोबाइल उपभोक्ताओं के लिए बड़ी समस्या बन रहा है। हालांकि इसके बारे में टैलीकॉम रैगुलेटरी ऑफ इंडिया (ट्राई) ने 29 फरवरी 2016 को इसके सुधारने के संकेत दिए थे। ट्राई के चेयरमैन आर.एस. शर्मा ने कहा था कि अप्रैल 2016 से इसमें सुधार शुरू कर दिया जाएगा और शीघ्र ही उपभोक्ताओं की समस्या दूर हो जाएगी, लेकिन अभी तक इसमें कोई सुधार नहीं हुआ। इसका मुख्य कारण उपभोक्ताओं की गिनती और मोबाइल के टॉवर में अंतर बढ़ गया है। वर्ष 2017 में देश भर में मोबाइल फोन के उपभोक्ताओं की संख्या 730.7 मिलीयन (73 करोड़ 70 लाख) थी, जोकि अब तक की गिनती में बढ़कर 811.59 मिलीयन (81 करोड़ 15 लाख 9 हजार) है। वहीं देश भर में मोबाइल के टॉवर 4.5 लाख हैं। 

 

क्या कहते हैं कोआई
सैलूलर आप्रेशन एसोसिएट ऑफ इंडिया ने भी माना है कि देश भर में मोबाइल सॢवस की धज्जियां उड़ चुकी हैं। को.आई. के डायरैक्टर जनरल ऑफ इंडिया राजन मैथ्यू ने तो यहां तक कह दिया है कि कमजोर कनैक्टीविटी और टॉवरों की कमी ने इस सॢवस को बेहद कमजोर कर दिया है। दूसरी ओर टैलीकॉम रैगुलेटरी आफ इंडिया ने इसके लिए अन्य विकल्प का सुझाव भी दिया है। ट्राई के चेयरमैन आर.एस. शर्मा ने बीत सप्ताह मीडिया को दी विज्ञप्ति में कहा कि मोबाइल यूजर्स कॉल के लिए अपने फोन के लिए ‘माईकॉल’ नैटवर्किंग का प्रयोग कर सकते हैं। इसे एप्लीकेट करने के बाद फ्रीक्वैंसी का समस्या समाप्त हो जाएगी, जबकि पहले यूजर्स जो अन्य सिस्टम में हैं उनके लिए उन्होंने कुछ नहीं कहा।

फ्रीक्वैंसी से कनफ्यूज हुए ट्राई के कई अधिकारी
‘पंजाब केसरी’ द्वारा टैलीकॉम रैगुलेटरी ऑफ इंडिया के दिल्ली स्थित मुख्यालय में फोन करने पर इनके अपने फोनों पर भी कॉल ड्रोप का कॉल देखा गया, जबकि आवाज और अन्य फ्रीक्वैंसी भी बाधित थी। प्रश्नों के उत्तरों में एक दर्जन अधिकारियों से बात करने पर पहले तो उन्हें समझ ही नहीं आती थी और समझ आने के बाद सभी ने कहा कि उनके पास फिलहाल जानकारी उपलब्ध नहीं है। ट्राई के चेयरमैन आर.एस. शर्मा लाइन पर नहीं मिल सके।

क्या कहते है कानून विशेषज्ञ?
बार-बार कॉल ड्रोप होने से उपभोक्ता को अधिक कालों का बिल देना पड़ता है, जो उपभोक्ता शोषण के अंतर्गत आता है। इसके लिए टैलीकॉम रैगुलेटरी ऑफ इंडिया के टैलीकॉम एक्ट-3-1997 व कनजूमर प्रोटैक्शन एक्ट के अंतर्गत आता है और उपभोक्ता इसके लिए कानूनी लड़ाई लड़ सकता है। 

बेस ट्रांसीवर स्टेशन 
मोबाइल सॢवस में सबसे बड़ा रोल बेस ट्रांसीवर स्टेशन का होता है, जो टॉवरों के साथ काम करते हैं। देश भर में इनकी संख्या 11 लाख 23 हजार 368 है। देखा जा रहा है कि कुछ स्थानों पर बी.टी.एस. की संख्या उचित होने पर इनमें फ्रीक्वैंसी ठीक बताई जा रही है। वहीं उपभोक्ता कॉल ब्रेक और कनेक्टीविटी डिस्टर्ब से चक्र में फंसे हुए र्हैं। इनकी संख्या देश भर के विभिन्न क्षेत्रों में इस प्रकार है:

हरियाणा    28672
यू.पी. ईस्ट    69047
हिमाचल प्रदेश    107730
यू.पी. वैस्ट    52320
जम्मू-कश्मीर    16207
वैस्ट बंगाल    39065
कर्नाटक    85875
महाराष्ट्र    95328
केरला    51078
मध्य प्रदेश    70695
मुंबई (सिटी)    39423
कोलकाता (सिटी)    30633
नॉर्थ ईस्ट क्षेत्र    13469
ओडिसा    29948
पंजाब    42710
आसाम    21464
राजस्थान    50723
बिहार    56051
तमिलनाड    100210
दिल्ली    57912
गुजरात    70761
आंध्र प्रदेश    90986

क्या कहते है चिकित्सक?
मोबाइल फोन रेडियो फ्रीक्वैंसी रेडिएशन छोड़ता है जो नॉन आइजोनिक रेज होती है। बार-बार कॉल ड्राप होने से इसका इफैक्ट भी बढ़ता जाता है जो अनटोल्ड डैमेज का कारण बन जाता है। 

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