Edited By Updated: 23 Feb, 2017 02:49 AM
एस.वाई.एल. यानी कि सतलुज यमुना लिंक नहर के पानी को लेकर
चंडीगढ़: एस.वाई.एल. यानी कि सतलुज यमुना लिंक नहर के पानी को लेकर हरियाणा व पंजाब दोनों राज्यों में तनाव की स्थिति तो बनी ही हुई है, वहीं दोनों प्रदेशों के राजनेताओं के बीच इस मुद्दे पर चल रहा वाक् युद्ध पानी की इस सियासत को उफान पर ले आया है। जहां हरियाणा विधानसभा में विपक्ष के नेता अभय सिंह चौटाला के 23 फरवरी से पंजाब में नहर खुदाई के अल्टीमेटम ने दोनों राज्यों की सरकारों को अलर्ट पर ला खड़ा किया है, वहीं राजनीतिक पर्यवेक्षक भविष्य में बनने वाले राजनीतिक परिदृश्य के मद्देनजर यह आकलन करने में लगे हैं कि यदि पंजाब में सत्ता परिवर्तन होता है तो उस स्थिति में एस.वाई.एल. के इस ‘पानी’ में सियासी ‘आग’ लगने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।
पर्यवेक्षक यह मानते हैं कि अब तक केंद्र व हरियाणा में भाजपा की सरकार होने के साथ-साथ पंजाब में अकाली दल के साथ उनकी गठबंधन सरकार थी, इस वजह से जल की सियासत तनावपूर्ण होने के बावजूद स्थिति नियंत्रण में रही और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद केंद्र सरकार हस्तक्षेप करके मामले का ठोस विकल्प निकाल सकती थी। इन पर्यवेक्षकों का यह अनुमान है कि यदि पंजाब में अगले माह सत्ता परिवर्तन होता है तो फिर जल पर चल रही सियासत कुछ नया मोड़ भी ले सकती है।
सियासत के आसरे कोर्ट तक पहुंचा मामला
गौरतलब है कि एस.वाई.एल. के पानी का यह संवेदनशील मामला यूं तो 80 के दशक से ही चला आ रहा है और इसे लेकर पहले भी कई मर्तबा पड़ोसी राज्य पंजाब के साथ विवाद हो चुका है मगर उस वक्त इस कदर हालात नहीं थे कि सीमा पर ‘सेना’ का पहरा बैठाना पड़े। हालांकि मामला सियासत के आसरे कोर्ट तक पहुंचा और जुबानी जंग चलती रही लेकिन इस बार पिछले वर्ष नवम्बर माह में सुप्रीम कोर्ट के हरियाणा के हक में आए फैसले के बाद से मामला किसी और दिशा में बढ़ गया।
अभय चौटाला ‘आक्रामक’, पंजाब सरकार के भी तेवर ‘स्पष्ट’
इनैलो नेता अभय सिंह चौटाला जहां प्रदेश के किसानों के हितों की दुहाई देते हुए आक्रामक हो गए हैं तो पंजाब सरकार ने भी तेवर स्पष्ट कर दिए हैं और हरियाणा को पानी देने से इंकार कर दिया है। हालांकि इस बारे में हरियाणा में सर्वदलीय बैठकें भी हुईं और सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में महामहिम राष्ट्रपति से भी मिला मगर इंतजार के बावजूद केंद्र सरकार की ओर से कोई प्रभावी कदम न उठाए जाने पर अंतत: प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल इनैलो को आंदोलन की राह पकडऩी पड़ी। अब इनैलो नेता वीरवार को नहर की खुदाई पर अडिग हैं तो दोनों राज्यों की सरकारों का यह प्रयास है कि किसी भी तरह से अभय चौटाला व इनैलो कार्यकत्र्ताओं को पंजाब सीमा में प्रवेश न करने दिया जाए।
सत्ता बदली तो बदलेंगे सारे गणित
राजनीतिक पर्यवेक्षक यह मानते हैं कि यदि पंजाब में सत्ता परिवर्तन होता है और प्रदेश में कांग्रेस या आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार बनती है तो ऐसे में पंजाब व हरियाणा की सरकारों में एस.वाई.एल. के मुद्दे पर निश्चित तौर पर टकराव की संभावना बन सकती है क्योंकि उस स्थिति में केंद्र व हरियाणा की भाजपा सरकारें इस दिशा में कोई रणनीति बना सकती हैं, जिस पर कांग्रेस या ‘आप’ से उसका सीधा टकराव हो सकता है और स्थिति तनावपूर्ण हो सकती है मगर इन परिस्थितियों में ‘आप’ संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को इस संवेदनशील अंतर्राज्यीय मुद्दे पर अपना एक-एक कदम संभल कर रखना होगा।
भले ही केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं मगर उनका गृह राज्य हरियाणा है और सियासी लिहाज से भी हरियाणा उनका अगला चुनावी निशाना हो सकता है। ऐसे में पंजाब में उनकी सरकार बनने की स्थिति में उनका कोई भी फैसला हरियाणा में उनका सियासी गणित बिगाड़ सकता है तो वहीं हरियाणा के हितों की दुहाई उनके लिए पंजाब में महंगी पड़ सकती है जिससे ‘आप’ की स्थिति सत्ता में आने के बाद भी दोराहे पर खड़े रहने जैसी हो सकती है। पर्यवेक्षकों के मुताबिक इन सब के बीच सत्ता परिवर्तन राज्यों के साथ-साथ केंद्र सरकार के लिए भी नई सिरदर्दी पैदा करने वाला साबित हो सकता है।
‘पानी’ की वजह से रिश्तों में ‘खटास’
एस.वाई.एल. नहर के मसले पर दोनों राज्यों के नेताओं में तो तनाव की स्थिति पैदा हुई ही और एक ही पार्टी के नेताओं की दोनों राज्यों में अलग-अलग भाषाएं भी बोली जाने लगीं, वहीं नहर के इस पानी ने राजनीतिक घरानों के वर्षों पुराने रिश्तों में भी दरार डाल दी। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल व देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री स्व. चौ. देवीलाल के राजनीतिक घरानों में 1950 के दशक से जो राजनीतिक व पारिवारिक रिश्ते चले आ रहे थे उनमें भी ‘पानी’ की वजह से ‘खटास’ पैदा हुई।
स्व. चौ. देवीलाल के पौत्र एवं हरियाणा में नेता प्रतिपक्ष अभय सिंह चौटाला ने पंजाब द्वारा हरियाणा को पानी की एक बूंद न देने की बात कहने के बाद न केवल बादल परिवार से राजनीतिक संबंध विच्छेद करने का ऐलान कर दिया, बल्कि इस बार पंजाब में अकाली दल बादल के लिए चुनाव प्रचार भी नहीं किया। यही नहीं इस नहर ने रिश्तों में इस कदर कटुता पैदा की या राजनीतिक विवशता कह लीजिए, पहला अवसर था जब हरियाणा के कांगे्रस व भाजपा नेताओं ने भी पंजाब में अपनी पार्टियों के उम्मीदवारों के पक्ष में चुनाव प्रचार से किनारा ही किया, ताकि प्रदेश हितों को लेकर आरोपों के घेरे में आने से बच सकें।